हिन्द-युग्म की ओर से अब तक १४ बार यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता का आयोजन हो चुका है और लगभग ४-५ बार अमिता मिश्र 'नीर' ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया है। जनवरी महीने में भी इन्होंने हिस्सा लिया और १९ वाँ स्थान बनाया।
कविता- मौन
महा मौन तुम नहीं बोलते
क्यों अमृत में गरल घोलते
तम्हें नहीं बहला पाते हैं
ये हिमवर्षी सुन्दर दिन
रातें चन्द्र किरण रस भीनी
अतिरंजित सपने मानव के
अरे मौन ये भी अच्छा है
अन्धकार कितना सच्चा है
पर इसमें भी जुगनु जैसे
कोटि-कोटि तारे प्रदीप्त हैं
कहते हैं क्या निशि भर
जग कर ... टिम-टिम करते
महा मौन तुम नहीं बोलते
क्यों अमृत में गरल घोलते
मदमाते यौवन की पावस
कभी बनी जो मधुर विह्वला
किन्तु आज इस सूने पन में
इस एकाकी नीरवता में
क्यों न हृदय की ग्रंथि खोलते
महामौन तुम नहीं बोलते
अनाहूत क्षण क्यों टटोलते
क्यों अमृत में गरल घोलते
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰८
स्थान- दसवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰५, ६, ७॰८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰७६६७
स्थान- सातवाँ
तृतीय चरण के जज की टिप्पणी- शब्दों का चमत्कार है पर काव्यिक ऊँचाई की कमी है।
कथ्य: ४/२ शिल्प: ३/१ भाषा: ३/१॰५
कुल- ४॰५
स्थान- उन्नीसवाँ
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रिय अमिता
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति है। इसकी सबसे सुन्दर बात अलौकिकता लगी।
मदमाते यौवन की पावस
कभी बनी जो मधुर विह्वला
किन्तु आज इस सूने पन में
इस एकाकी नीरवता में
क्यों न हृदय की ग्रंथि खोलते
प्रभावी रचना । बहुत-बहुत बधाई
अमिता जी बहुत ही प्यारी रचना,बधाई स्वीकार करें,
आलोक सिंह "साहिल"
महा मौन तुम नहीं बोलते
क्यों अमृत में गरल घोलते
तम्हें नहीं बहला पाते हैं
ये हिमवर्षी सुन्दर दिन
" अच्छी कल्पना और मौन का मौन रहना एक प्रशन , बहुत खूब"
बहुत अच्छी बधाई
रातें चन्द्र किरण रस भीनी
अतिरंजित सपने मानव के
अरे मौन ये भी अच्छा है
अन्धकार कितना सच्चा है
बहुत सुंदर लिखा है आपने अमिता
इस एकाकी नीरवता में
क्यों न हृदय की ग्रंथि खोलते
महामौन तुम नहीं बोलते
अनाहूत क्षण क्यों टटोलते
क्यों अमृत में गरल घोलते
मौन इस पर आपने जो भाव लिखे हैं वह बहुत अच्छे लगे ..सुंदर रचना के लिए बधाई !!
रचना प्रीतिकर लगी।
अमिता जी आप के मौन की अभिव्यक्ति भी खूब बोल रही है.
बहुत सुंदर.
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति .....
मदमाते यौवन की पावस
कभी बनी जो मधुर विह्वला
किन्तु आज इस सूने पन में
इस एकाकी नीरवता में
क्यों न हृदय की ग्रंथि खोलते
महामौन तुम नहीं बोलते
अनाहूत क्षण क्यों टटोलते
क्यों अमृत में गरल घोलते
अमिता जी
शुभ-कामनाएं
स-स्नेह
गीता पंडित
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