१५वें क्रम के कवि संजीव कुमार गोयल 'सत्य' हिन्द-युग्म की गतिविधियों में पिछले २ महीनों से बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। काव्य-पल्लवन और यूनिकवि प्रतियोगिता में ज़रूर भाग लेते हैं।
कविता- अस्तित्व-बोध
मैं-
मैं, क्या हूँ,
क्या चीज हूँ,
कितनी ऊंची हस्ती हूँ,
लोगों को-
कैसे बताऊं,
कैसे दिखाऊँ,
अपनी हैसियत,
अपनी ऊँचाई का,
आभास कैसे कराऊँ |
कैसे अहसास कराऊँ,
कि मेरा भी कुछ वजूद है,
मेरा भी अस्तित्व है,
तुम सबके बीच |
आख़िर-
मेरी पहचान क्या है,
मेरा अस्तित्व क्या है,
और मेरे इस अहम की,
तुष्टि कहाँ है |
सोचता हूँ-
कुछ नहीं,
इतना तो कर सकता हूँ,
सुगम पथ नहीं,
तुम्हारी राह में,
रोड़ा तो बन सकता हूँ |
तुमको होने वाली असुविधा,
पीड़ा, बोध कराएगी तुम्हें,
मेरे अस्तित्व का,
मेरी ऊँचाई का,
और तब कहीं जाके,
तुष्टि होगी,
मेरे अहम की |
यह सोच है-
उस विखंडित मन
और मस्तिष्क की,
जो रोजमर्रा की,
अनापेक्षित असुविधा से
त्रस्त है, टूट चुका है,
प्रतिशोध की अग्नि में,
झुलस रहा है ||
तब अंतर्मन-
व्यथित मन को,
सान्तवना देता है,
और समझाता है,
कि जो कष्ट तुम्हें हुआ,
दूसरों को देने से ,
तनिक कम न होगा,
क्षणिक,
तुष्टि तो हो सकती है,
किंतु अफ़सोस,
दीर्घ-कालीन होगा |
क्योंकि-
मैं का अस्तित्व,
जलने, सताने में नहीं,
अपितु,
दीप-सम जल,
राह दिखाने में होगा ||
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰२५
स्थान- दूसरा
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰१५, ५॰४, ८॰२५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰२६६७
स्थान- सोलहवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- बिंबात्मक प्रयोग की कमी है। भाव हल्का है।
कथ्य: ४/२ शिल्प: ३/१॰५ भाषा: ३/१॰५
कुल- ५
स्थान- तेरहवाँ
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
9 कविताप्रेमियों का कहना है :
मैं का अस्तित्व,
जलने, सताने में नहीं,
अपितु,
दीप-सम जल,
राह दिखाने में होगा ||
अच्छी रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मैं-
मैं, क्या हूँ,
क्या चीज हूँ,
कितनी ऊंची हस्ती हूँ,
लोगों को-
कैसे बताऊं,
कैसे दिखाऊँ,
अपनी हैसियत,
अपनी ऊँचाई का,
आभास कैसे कराऊँ |
कैसे अहसास कराऊँ,
कि मेरा भी कुछ वजूद है,
मेरा भी अस्तित्व है,
तुम सबके बीच |
आख़िर-
मेरी पहचान क्या है,
"अस्तित्व-बोध, अपने शीर्षक को सार्थक करती सुंदर रचना"
दूसरे छंद मे जो गहरे भाव का अहसास हुया है, सुंदर संदेश है |
सुंदर रचना....
अवनीश तिवारी
कि जो कष्ट तुम्हें हुआ,
दूसरों को देने से ,
तनिक कम न होगा,
क्षणिक,
तुष्टि तो हो सकती है,
किंतु अफ़सोस,
दीर्घ-कालीन होगा |
बहुत सुंदर संदेस देती कविता बधाई हो
अच्छी रचना है परंतु अभी सुधार अपेक्षित है!
संजीव जी अस्तित्व बोध से प्रेरित आपकी कविता जंची,और जैसा की हरबार कहा व सुना जाता है की गुंजाईश रह गई है बेहतरी की तो ये बात मैं भी कहना चाहूँगा,एक बेहतरीन प्रयास के लिए साधुवाद
आलोक सिंह "साहिल"
अहं की तुष्टि क्षणिक हो या दीर्घकालिक दोनो ही स्थितियाँ ग्राह्य नही हैं। दूसरॊ को राह दिखाना तो बाद में आता है पहले खुद को सही राह मिले इसकी फ़िक्र होनी चाहिए क्योंकि जिसे अपनी राह का ठीक से पता ना हो वो दूसरे को सही राह ही दिखा रहा है इसकी क्या गारंटी है??
मैं का अस्तित्व,
जलने, सताने में नहीं,
अपितु,
दीप-सम जल,
राह दिखाने में होगा
सुंदर रचना....
बधाई
स-स्नेह
गीता पंडित
संजीव जी,
हिन्दी साहित्य अब दर्शनपरक कविताओं से आगे निकल गई है। ऐसे में भी आपकी लेखनी में उसकी झलक पाकर प्रसन्नता हुई। वैसे आपकी कविता का कथ्य बहुत बार कहा गया है। सार्वभौमिकता सी है। कविता कुछ नया ढूँढ़ती है।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)