नेपाली कविताओं का हिन्दी अनुवाद हम कुमुद अधिकारी जी के सौजन्य से नवम्बर से प्रकाशित कर रहे हैं और पाठकों ने हमारे इस प्रयास की सराहना भी की है। हिन्द-युग्म चाहता है कि सभी भाषाओं के साहित्य का अनुवाद हम तक पहुँचे और हमारा साहित्य भी वहाँ तक जाये ताकि विचारों का सेतु बन सके। कुछ-एक प्रयास गुजराती में भी हुए, लेकिन फिलहाल हम नेपाली कविताओं का ही हिन्दी अनुवाद और हिन्द-युग्म की कविताओं का नेपाली अनुवाद स्थाई तौर पर प्रकाशित कर रहे हैं। इस माह साहित्य-सरिता में डॉ॰ मीनू की क्षणिकाओं का कुमुद अधिकारी द्वारा नेपाली रूपान्तरण प्रकाशित हुआ है।
आज कुमुद अधिकारी कवि श्रीधर शर्मा की कविता 'कुछ पल वसंत के संग' (हिन्दी में) लेकर आये हैं। मौसम भी वसंत का है, वैसे कुमुद अधिकारी का यह चयन आपको ज़रूर पसंद आयेगा।
श्रीधर शर्मा
जन्मः 1966 में कोशी अंचल धनकुटा जिले में
शिक्षाः एम.ए. (नेपाली)
प्रकाशनः 1. सुनजुँगे र कलजुँगे (बाल बोध-कथा संग्रह)
2. नेपाली वाङ्मय में पथिक कवि (स्मृति ग्रंथ) (प्रेस में)
3. एक कविता संग्रह 'जन्माउन सक्छौ भने जन्माइदेऊ' शीघ्र प्रकाश्य
संपादनः 1. कोशेढुङ्गा (साहित्यिक त्रैमासिक)
2. गोरेटो (वार्षिक स्मारिका)
आबद्धताः 1. संस्थापक सदस्य, साहित्यसञ्चार प्रतिष्ठान, इटहरी
2. सदस्य, वाणी प्रकाशन, विराटनगर
3. सदस्य, सुनसरी साहित्य प्रतिष्ठान, धरान
सम्पर्कः द्वारा सोनी पुस्तक पसल, इटहरी।
फोनः 00977-25-586604.
कुछ पल वसंत के संग
इस बार जब मेरे बगीचे में
वसंत आया
तो उसके कानों में मैंने धीरे से पूछा
'तुम्हारा यौवन तो फिर मुस्करा रहा है
पर अफ़सोस मेरा यौवन तो फिर आने से रहा !
कोमल फूलों को सहलाती अंगुलियाँ नचाते हुए
वसंत ने कहा-
'क्यों मेरी ईर्ष्या करते हो,
तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं है
जीवन जीने का तजुरबा नहीं है
पहाड़ की चढ़ाई में तुमने पसीना नहीं बहाया है
मैं जब चिलचिलाती गरमी से पक रहा होता हूँ
तब तुम ओस ओढ़े कमरे में पड़े रहते हो
मैं जब वर्षा से भीग रहा होता हूँ
तब तुम अपने को जलकवच से बचाते हो
और फिर जब मेरा बदन जम जाता है बर्फ़ में
तब तुम अग्नि से ख़ुद को सेंक रहे होते हो !
सच ! मेरे यौवन पर तुम यदि मर मिटे हो तो
आओ तोड़ दो कृत्रिम दीवारें
बाहर निकल आओ
ख़ुद को आज़ाद कर दो
दिल्लगी करो सूरज से,
खेलो पानी से
और थक जाओ, बेहाल !
करो आलिंगन आँधी से
जीवन के हर पहलू को समेटकर
जितना शोर होना है होने दो
लड़ो बाधाओं से
आगे बढ़ो लगातार
पचादो अमृत और विष
तब,
चूमेगी प्रकृति तुम्हें
देगी आशीर्वाद धरती
तुम्हारे दिल के बगीचे में
खिलेंगे फूल गुलाब के
महक फैलेगी चारों तरफ़
तब मुस्करा उठेगा तुम्हारा यौवन।'
नेपाली से हिन्दी रूपान्तरः कुमुद अधिकारी
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
कोमल फूलों को सहलाती अंगुलियाँ नचाते हुए
वसंत ने कहा-
'क्यों मेरी ईर्ष्या करते हो,
तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं है
जीवन जीने का तजुरबा नहीं है
पहाड़ की चढ़ाई में तुमने पसीना नहीं बहाया है
मैं जब चिलचिलाती गरमी से पक रहा होता हूँ
तब तुम ओस ओढ़े कमरे में पड़े रहते हो
मैं जब वर्षा से भीग रहा होता हूँ
तब तुम अपने को जलकवच से बचाते हो
और फिर जब मेरा बदन जम जाता है बर्फ़ में
तब तुम अग्नि से ख़ुद को सेंक रहे होते हो
"बहुत खूब , अती कोमल भावनाओं का समावेश हर पंक्तियों मे "
प्रकृती से संवाद को रचना के रूप मे प्रस्तुत करना भाया |
बधाई
अवनीश तिवारी
तब,
चूमेगी प्रकृति तुम्हें
देगी आशीर्वाद धरती
तुम्हारे दिल के बगीचे में
खिलेंगे फूल गुलाब के
महक फैलेगी चारों तरफ़
बहुत सुंदर रचना ..शुक्रिया कुमुद अधिकारी जी इस सुंदर रचना का अनुवाद हम तक पहुचाने के लिए !!
कुमुद जी..
न केवल अनुवाद बेहतरीन है अपितु रचना भी सशक्त है...
करो आलिंगन आँधी से
जीवन के हर पहलू को समेटकर
जितना शोर होना है होने दो
लड़ो बाधाओं से
आगे बढ़ो लगातार
पचादो अमृत और विष
तब,
चूमेगी प्रकृति तुम्हें
वाह!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
कुमुद जी,
बहुत ही सुन्दर भाव भरी और साकारात्मक रचना...जीने का सलीका सीखाती हुई
श्रीधर शर्मा जी के शब्द और कुमुद जी द्वारा किया गया अनुवाद दोनों हीं बेहतरीन है। श्रीधर जी ने अपनी कविता में बड़े हीं कोमल भाव संजोये हैं और कुमुद जी ने इस तरह अनुवाद किया है मानो कविता वस्तुत: हिन्दी में हीं लिखी गई हो। इस हेतु दोनों हीं बधाई के पात्र हैं।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बहुत सुंदर कविता,सही अगर चिर चैतन्य पाना है तो प्रकृति में खुल कर साँस लो
प्राय: अनुवाद से असल काव्य की श्रेष्ठता का आभाष भर मिलता है. परंतु श्रीधर शर्मा जी की इस कविता का अनुवाद भी बहुत सुंदर बन पड़ा है. इतनी सुंदर रचना पढ़वाने के लिये कुमुद अधिकारी जी का हार्दिक आभार!
श्रीधर शर्मा जी और कुमुद अधिकारी जी, दोनों को इस सुन्दर कविता और अनुवाद के लिए बधाई । अनुवाद में भी काव्यत्व बनाए रखना एक चुनौती के समान होती है । वैसे हिन्दी और नेपाली स्वरूप में निकट की भाषाएँ होने के कारण यह चुनौती काफ़ी कम हो जाती है पर कविता की सुन्दरता को बनाए रखना तो चुनौती है ही । बहुत अच्छी तरह से इन्होंने प्रकृति से जुड़ने का सन्देश दिया है । पर्यावरण की अधिकतर समस्याएँ प्रकृति से तालमेल न बिठा पाने के कारण आती हैं ।
प्यारी रचना,कुमुद जी बहुत बहुत धन्यवाद कि हमें वक्त वक्त पे नेपाली साहित्य से अवगत कराते रहते हैं,
आलोक सिंह "साहिल"
अनुवाद में भी इतनी सरसता है तो मूल कविता कितनी सुन्दर होगी सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अच्छी रचना।
कुमुद अधिकारी जी !
इस सुंदर रचना का अनुवाद
हम तक पहुचाने के लिए..
आभार!
करो आलिंगन आँधी से
जीवन के हर पहलू को समेटकर
जितना शोर होना है होने दो
लड़ो बाधाओं से
आगे बढ़ो लगातार
पचादो अमृत और विष
तब,
चूमेगी प्रकृति तुम्हें
बहुत सुंदर रचना
बधाई
स-स्नेह
गीता पंडित
श्रीधर शर्मा की यह कविता बहुत ही सुंदर है। कुमुद जी, आप हर बार एक से एक मोती चुनकर हिन्द-युग्म को देते रहते हैं।
Meri kavita ki sarahana karte hue pratikriyayen denewale sabhi mitron ko Aabhar.
Shreedhar Sharma
Nepal
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