इस बार हम आपको एक ऐसी कवयित्री से मिलवा रहे हैं जोकि प्रिंट में खूब छपती रही हैं लेकिन अंतरजाल पर प्रकाशित होना अब शुरू हुई हैं। कवयित्री विपिन चौधरी अक्टूबर २००७ में ही हिन्द-युग्म पर ये भुले भटके पहुँच गई थीं। यहीं से इन्होंने मुफ़्त यूनिप्रशिक्षण का लाभ लिया। हिन्द-युग्म को अक्टूबर से लगातार पढ़ती रहीं। काव्य-पल्लवन में हिस्सेदारी करती रहीं। पिछले महीने की 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' में भाग लिया। इस प्रतियोगिता में भाग लेने का इनका पहला अवसर था और खुशी की बात है कि ये टॉप १० में आ गईं । आज हम इनकी वही कविता प्रकाशित कर रहे हैं, जिसे सातवाँ स्थान मिला है। विपिन चौधरी आज विश्व पुस्तक मेले में हिन्द-युग्म के स्टैंड पर भी पधारी थीं, इन्होंने 'पहला सुर' खरीदकार हिन्द-युग्म की नई प्रतिभागियों का प्रोत्साहन किया।
परिचय
नाम- सुश्री विपिन चौधरी
जन्म स्थान- गाँव खड़कड़ी माखवान, जिला भिवानी हरियाणा।
जन्म दिवस- २ अपैल १९७६
शिक्षा- बी॰ एस॰ सी॰, एम॰ ए॰
प्रकाशित कृतियाँ- कादम्बिनी, समरलोक, संचेतना, अक्षर खबर, अनुभूति, काव्या, नारी-अस्मिता, उतरा, नवोदित स्वर,
सूत्र, ग्राम परिवेश, शीराजा, अन्यथा, अक्षर शिल्पी, सेतु, लेखन सूत्र, हलन्त, हिमपस्थ, कथा-देश, वागार्थ, दैनिक जागरण, दैनिक टिब्युन, नभ छोर आदि पत्रिकाओ में कविताएँ प्रकाशित।
कहानी- परिकथा, शुभ तारिका में कहानियाँ प्रकाशित।
नेट पत्रिका- साहित्य कुंज, सजृन गाथा, कृत्या, अनुभूति, रचनाकार, तहलका-हिन्दी आदि नेट पत्रिकाओ में कविताएँ प्रकाशित।
कविता संग्रह- अंधेरे के मध्य में, कविता संग्रह प्रकाशित।
पुरस्कार- प्रेरणा परिवार और हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रेरणा पुरस्कार
अखिल भारतीय दलित साहित्य अकादमी पुरस्कार
वागार्थ युवा कविता पुरस्कार २००७
सम्प्रति - एन जी ओ, हरियाणा संस्कृति मंच में उपाध्यक्ष और लेखन।
डाक पता- मकान न-१००८,
हाऊँसिग बोड कलोनी,
सेक्टर १५ ए,
हिसार,
हरियाणा
पिन १२५००१
पुरस्कृत कविता- बहुत दिन हुए
बहुत दिन हुये
मेरे सपनों ने
अपना मुलायम बिछौना
नहीं माँगा
आकाश ने
अपना सबसे चमकीला
तारा
नहीं माँगा
अधर में खड़ी
किश्ती ने अपना
छूटा हुआ
किनारा नहीं माँगा
ढ़ेरों इच्छाओं ने
कोई रंगीन दामन
नहीं माँगा
बहुत दिन हुये
ज़िन्दगी ने अपने
गुजरे हुये
पलों का
हिसाब-किताब
नहीं माँगा।
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰७
स्थान- सत्रहवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ७, ७॰७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰०६६६७
स्थान- नौवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-सहज और सरल मन को छू लेने वाली कविता।
कथ्य: ४/२॰५ शिल्प: ३/१॰५ भाषा: ३/१॰५
कुल- ५॰५
स्थान- नौवाँ
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
बहुत खूबसूरती से पाठक को कवि अपने मनोभावों की एक लड़ी पकड़ा पाने में कवि सफल हुआ है।
कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ७॰५/१०
कुल योग: १४॰५/२०
पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत दिन हुये
ज़िन्दगी ने अपने
गुजरे हुये
पलों का
हिसाब-किताब
नहीं माँगा।
" वाह बहुत खूब , इतनी सुंदर रचना के लिए बधाई "
"बहुत दिन हुये ,ज़िन्दगी ने गुजरती सांसों से करार नही माँगा , बहुत दिन हुए जिन्दगी ने अपने हिस्से का अभी तक प्यार नही माँगा ....."
Regards
बहुत दिन हुए,जिन्दगिने अपना हिसाब किताब नही माँगा,सुंदर कविता.
विपिन जी,
मुझे या तो आपकी कविता समझ नहीं आ रही है.. या आप जो कहना चाह रही है उसे कहने मै असफल रही है..
१) मुझे कविता के जितने भी पद से है.. अधूरे से लगे..मसलन
"बहुत दिन हुये
मेरे सपनों ने
अपना मुलायम बिछौना
नहीं माँगा " पर क्यों? क्या कहना चाह रही है?
२) बड़े सरल शब्दों का प्रयोग किया है,, पर अर्थ समझ नहीं आया..
३) बहुत कोशिश करने के बाद मै इस निष्कर्ष पर पंहुचा कही आप ये तो नहीं कहना चाह रही है की..
बहुत दिनों से ऐसे बातें हो रही है जैसे "बहुत दिन हुये
मेरे सपनों ने
अपना मुलायम बिछौना
नहीं माँगा " उसका कारण ये है की सब मै स्थिरता आ गयी है.. जो जहाँ पर है वही खुश है.. कुछ और पाने की चाह नहीं है.. आपकी जिंदगी.. खुश है..
पर ये सब मात्र मेरी कल्पना है.. आप कृपया साफ कीजिए आप क्या कहना चाह रही है..
कविता तभी पूर्ण हो सकती है जब उसका सही अर्थ पाठक तक पहुचे मेरा ये मानना है..
उम्मीद है आप मेरी टिप्पणियों को सकारात्मक लेंगी..
सादर
शैलेश
बहुत दिन हुये
ज़िन्दगी ने अपने
गुजरे हुये
पलों का
हिसाब-किताब
नहीं माँगा।
बहुत खूबसूरत है ये पंक्तिया
आपकी ये कविता मुझे बहुत पसंद आई
बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत दिन हुये
ज़िन्दगी ने अपने
गुजरे हुये
पलों का
हिसाब-किताब
नहीं माँगा।
you have expressed a lot in these two lines....beautiful
बहुत दिन हुये
मेरे सपनों ने
अपना मुलायम बिछौना
नहीं माँगा
आकाश ने
अपना सबसे चमकीला
तारा
बहुत खूब .....
सुंदर रचना ....
बधाई |
बहुत दिन हुये
मेरे सपनों ने
अपना मुलायम बिछौना
नहीं माँगा
आकाश ने
अपना सबसे चमकीला
तारा
नहीं माँगा
बहुत खूब ....
सुंदर रचना ....
बधाई |
बहुत दिन हुये
ज़िन्दगी ने अपने
गुजरे हुये
पलों का
हिसाब-किताब
नहीं माँगा।'
*सातवां स्थान पाने पर बधाई.
-अच्छा लिखा है.
-आशा है आप को आगे भी पढ़ते रहेंगे.
बहुत दिन हुये
मेरे सपनों ने
अपना मुलायम बिछौना
नहीं माँगा
आकाश ने
अपना सबसे चमकीला
तारा
नहीं माँगा
अधर में खड़ी
किश्ती ने अपना
छूटा हुआ
किनारा नहीं माँगा
- बहुत बढ़िया... बहुत बहुत बधाई..
बहुत ही प्यारी रचना.
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत अच्छी कविता. एकरस और हारी हुई ज़िन्दगी की एक उदास कविता. सच है हम लोग बस अब इसी तरह जिये जा रहें हैं न स्वपन न इच्छाऐं..
ठीक-ठाक कविता है, लेकिन जिस तरह की काव्य-उपलब्धियाँ कवयित्री के पास हैं, उसके स्तर की तो बिलकुल नहीं।
it is really very nice ,a dense expression with easy words,less words and lots u hav told...
rashmi singh
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