खुल गई थी नींद
तुम्हारे आने की आहट से
तबसे सपने गायब हैं
फ़िर नींद कभी आई ही नही.......
अपलक देखा था
तुम्हारी अरूप रूपराशि को
तबसे आँखों को और कुछ दिखा ही नही.......
उस दिन तुम्हारे द्वार पर
चखा था भिक्षान्न
व्यर्थ हैं छ्प्पन भोग तबसे
अब भूख कभी लगती ही नही.......
छलका था दो बूँद
कभी तुम्हारे मधु-कलश से
पीकर जो तृप्त हुआ
फ़िर प्यास कभी ऊठी ही नही.......
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
खुल गई थी नींद
तुम्हारे आने की आहट से
तबसे सपने गायब हैं
फ़िर नींद कभी आई ही नही.......
kya baat hai
छलका था दो बूँद
कभी तुम्हारे मधु-कलश से
पीकर जो तृप्त हुआ
फ़िर प्यास कभी ऊठी ही नही.......
"अती सुंदर , हर शब्द मे एक भाव "
Regards
बहुत खूब कहा ,आफरीन
रवि जी
बहुत ही भाव भरी कविता लिखी है आपने . पढ़कर आनंद आ गया . -
उस दिन तुम्हारे द्वार पर
चखा था भिक्षान्न
व्यर्थ हैं छ्प्पन भोग तबसे
अब भूख कभी लगती ही नही.......
इतनी सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई
अपलक देखा था
तुम्हारी अरूप रूपराशि को
वाह!
क्या बात है!
रविकांत जी,
सुंदर रचना है। १४ फरवरी नज़दीक आ रही है, आपने इसका भान करा दिया।
बधाई स्वीकारें।
बस मुझे "तबसे सपने गायब हैं" यह पंक्ति समझ नहीं आई।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
सजीव जी, सीमा जी, महक जी, शोभा जी एवं तन्हा जी आप सबका शुक्रिया कि आपने इस एहसास को स्वीकृति दी।
तन्हा जी, मनोविज्ञान कहता है कि जो चीज यथार्थ में नही मिल पाती मन उसकी पूर्ति सपने में कर देता है। जब यथार्थ प्रीतिकर नही होता तब हम सुखद स्वप्न सँजोते हैं। लेकिन जब यथार्थ सहज, सुन्दर एवं सुखद हो तब अलग से सपने की जरूरत नही रह जाती।
उस दिन तुम्हारे द्वार पर
चखा था भिक्षान्न
व्यर्थ हैं छ्प्पन भोग तबसे
अब भूख कभी लगती ही नही.......
बहुत खूब ....
सुंदर अभिव्यक्ति ...
रवि जी,
बधाई |
रवि कान्त जी आप की यह कविता एक प्रेमी का अपनी प्रेयसी को एक सुंदर उपहार है.
भावों को बेहद शालीनता और कोमलता से प्रस्तुत कर के कविता को एक नयी अदा दे दी है.
सुंदर अभिव्यक्ति!
छलका था दो बूँद
कभी तुम्हारे मधु-कलश से
पीकर जो तृप्त हुआ
फ़िर प्यास कभी ऊठी ही नही.
बहुत सुंदर लिखा है रवि जी आपने ..बधाई सुंदर रचना के लिए !1
रवि जी, बहुत सुन्दर लिखा है
छलका था दो बूँद
कभी तुम्हारे मधु-कलश से
पीकर जो तृप्त हुआ
फ़िर प्यास कभी ऊठी ही नही.......
कमाल लिखा है सर जी आपने,गजब का सुरूर है आपकी कविता में,मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"
अत्यंत साधारण रचना
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