बिखरे सवालों को जबाब होने दो
मेरे किस्सों को किताब होने दो
दर्द की शिद्दत को पहचानेंगे वो
जर्रा-ए-दिल को आफ़ताब होने दो
माहताब कब तक छिपेगा पर्दों में
आज सच को बेनकाब होने दो
आंसू भारी पडेंगे हरसू दौलत पर
ठहरो आखिर को हिसाब होने दो
ढूंढा फ़िरेगा मुझको जमाने भर में
उदास मुहब्बत को अजाब होने दो
"मोह" की अब तक कटी ख्यालों में
बाकी बची को भी पुर-ख्वाब होने दो
=============================
शिद्दत = तेजी, तीव्रता, मात्रा
जर्रा-ए-दिल = दिल का टुकडा
आफ़ताब= सूरज, चमकता सितारा
माहताब = चांद की रोशनी, चांदनी
चिलमन = झीना पर्दा
हरसू = चारों तरफ़
अजाब = विशिष्ट, कम पाया जाने वाला
चमत्कारी
पुर-ख्वाब=स्वप्न भरी, स्वप्नमय
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
16 कविताप्रेमियों का कहना है :
आंसू भारी पडेंगे हरसू दौलत पर
ठहरो आखिर को हिसाब होने दो
खूब है ....
वाह वाह |
अवनीश तिवारी
मोहिन्दर जी अच्छी पकड़ है शब्दों पर..
बहुत बढिया..
आंसू भारी पडेंगे हरसू दौलत पर
ठहरो आखिर को हिसाब होने दो
मोहिंदर जी आपकी पंक्तियां बहर में नही हैं.. इसलिए गजल कहना मुनासिब नही है..
मोहिंदर जी आपकी पंक्तियां बहर में नही हैं.. इसलिए गजल कहना मुनासिब नही है..
बिखरे सवालों को जबाब होने दो
मेरे किस्सों को किताब होने दो
bahut badhiya.
माहताब कब तक छिपेगा पर्दों में
आज सच को बेनकाब होने दो
ढूंढा फ़िरेगा मुझको जमाने भर में
उदास मुहब्बत को अजाब होने दो
बहुत अच्छी लगे यह ..अच्छा लगा इन्हे पढ़ना !
माहताब कब तक छिपेगा पर्दों में
आज सच को बेनकाब होने दो
bahut badhiya panktiyan hai.bahut sundar rachana badhai.
मोहिंदर जी
दिल के जख्मो को ग़ज़ल के मध्यम से बयां किया है. -
आंसू भारी पडेंगे हरसू दौलत पर
ठहरो आखिर को हिसाब होने दो
वाह . बहुत खूब कहा
बहुत हीं सुंदर गज़ल है मोहिन्दर जी। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बिखरे सवालों को जबाब होने दो
मेरे किस्सों को किताब होने दो
" अती सुंदर , बहुत अच्छी लगी पढ़ कर"
Regards
bhaut khoob likha hai dost
'बिखरे सवालों को जबाब होने दो
मेरे किस्सों को किताब होने दो'
*बहुत खूब!
*आसानी से दिल और दिमाग पर छा जाने वाली रचना है.
मोहिन्दर जी!!!!
बहुत ही उम्दा शब्दों का प्रयोग किया है आपने....छोटी पर बहुत ही अच्छी रचना है.....
****************************************
दर्द की शिद्दत को पहचानेंगे वो
जर्रा-ए-दिल को आफ़ताब होने दो
माहताब कब तक छिपेगा पर्दों में
आज सच को बेनकाब होने दो
"मोह" की अब तक कटी ख्यालों में
बाकी बची को भी पुर-ख्वाब होने दो
माहताब कब तक छिपेगा पर्दों में
आज सच को बेनकाब होने दो
वाह-वाह।
शायद बहर के अलावा इस बार इस ग़ज़ल में काफ़ी कुछ नियमों के हिसाब से है। यह अच्छे संकेत हैं
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)