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Monday, February 11, 2008

मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं


मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं
वो सुनाई दे रहा सब जो कहा तुमने नहीं

इश्क का मैं ये सलीका जानता सब से सही
जान देदो इस तरह की हो कहीं चरचे नहीं

मान लेने में मजा है बात दिल की प्यार में
लोग लड़के देख लो की आज तक जीते नहीं

तल्ख़ बातों को जुबाँ से दूर रखना सीखिए
घाव कर जाती हैं गहरे जो कभी भरते नहीं

अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं

छोड़ देते मुस्कुरा कर भीड़ के संग दौड़ना
लोग ऐसे ज़िंदगी में हाथ फ़िर मलते नहीं

खुशबुएँ बाहर से वापस लौट कर के जाएँगी
घर के दरवाजे अगर तुमने खुले रक्खे नहीं

जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं

यूँ मिलो "नीरज" हमेशा जैसे अन्तिम बार हो
छोड़ कर अरमाँ अधूरे तो कभी मिलते नहीं

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

Divya Prakash का कहना है कि -

"छोड़ देते मुस्कुरा कर भीड़ के संग दौड़ना
लोग ऐसे ज़िंदगी में हाथ फ़िर मलते नहीं"


गज़ब ,
बहुत अच्छा ....ये पंक्तियाँ तो कमाल ही हैं , जीवन के विभिन्न अनुभवों को छानकर इतने सरल शब्दों मैं सब कुछ कह दिया अपने !!

mehek का कहना है कि -

इश्क का मैं ये सलीका जानता सब से सही
जान देदो इस तरह की हो कहीं चरचे नहीं
बहुत बढ़िया,बधाई

seema gupta का कहना है कि -

"जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं"
" बहुत खूब कमाल की पंक्तियाँ, मन को छु गई "

"मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं,
तुम दीखाई दे रहे , पर आस पास मेरे नहीं ,
इन लबों पे शब्दों को तुम उम्र भर तलाशते रहे,
धडकनों के राज को तुमने मगर सुना ही नहीं"

Regards

Mohinder56 का कहना है कि -

नीरज जी,
बहुत सी गहरी बातें कह दी आप ने इस रचना के माध्यम से - खास कर
तल्ख़ बातों को जुबाँ से दूर रखना सीखिए
घाव कर जाती हैं गहरे जो कभी भरते नहीं

अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं

जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं

बहुत सुन्दर... बधाई

Sajeev का कहना है कि -

मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं
वो सुनाई दे रहा सब जो कहा तुमने नहीं
वाह ...

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

नीरज जी,

बहुत ही उम्दा लिखा है आपने बहुत गहराई है एक एक हर्फ में..
तल्ख़ बातों को जुबाँ से दूर रखना सीखिए
घाव कर जाती हैं गहरे जो कभी भरते नहीं

अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं

जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं
-सुन्दर

रंजू भाटिया का कहना है कि -

खुशबुएँ बाहर से वापस लौट कर के जाएँगी
घर के दरवाजे अगर तुमने खुले रक्खे नहीं

बहुत खूब ...

जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं
बहुत ही सुंदर लगी आपकी गजल नीरज जी !!

शोभा का कहना है कि -

नीरज जी
बहुत अच्छा लिखा है अपने.-
खुशबुएँ बाहर से वापस लौट कर के जाएँगी
घर के दरवाजे अगर तुमने खुले रक्खे नहीं

बधाई

Alpana Verma का कहना है कि -

तल्ख़ बातों को जुबाँ से दूर रखना सीखिए
घाव कर जाती हैं गहरे जो कभी भरते नहीं

अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं

छोड़ देते मुस्कुरा कर भीड़ के संग दौड़ना
लोग ऐसे ज़िंदगी में हाथ फ़िर मलते नहीं

वाह!वाह!वाह!

बहुत उम्दा शेर हैं.....

"राज" का कहना है कि -

नीरज जी!!
अच्छी रचना है....
*****************
छोड़ देते मुस्कुरा कर भीड़ के संग दौड़ना
लोग ऐसे ज़िंदगी में हाथ फ़िर मलते नहीं

जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

नीरज जी,

आप हिन्द-युग्म के बहुत अच्छे ग़ज़लगो हैं, लेकिन आपकी ग़ज़ल के सभी शे'र बराबर वज़नी नहीं होते। शायद आपको शे'रों के चुनाव सावधानी बरतनी चाहिए। सभी शे'रों से मोह भी अच्छी बात नहीं।

गीता पंडित का कहना है कि -

अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं


यूँ मिलो "नीरज" हमेशा जैसे अन्तिम बार हो
छोड़ कर अरमाँ अधूरे तो कभी मिलते नहीं

बहुत सुन्दर...

नीरज जी !
बधाई

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