मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं
वो सुनाई दे रहा सब जो कहा तुमने नहीं
इश्क का मैं ये सलीका जानता सब से सही
जान देदो इस तरह की हो कहीं चरचे नहीं
मान लेने में मजा है बात दिल की प्यार में
लोग लड़के देख लो की आज तक जीते नहीं
तल्ख़ बातों को जुबाँ से दूर रखना सीखिए
घाव कर जाती हैं गहरे जो कभी भरते नहीं
अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं
छोड़ देते मुस्कुरा कर भीड़ के संग दौड़ना
लोग ऐसे ज़िंदगी में हाथ फ़िर मलते नहीं
खुशबुएँ बाहर से वापस लौट कर के जाएँगी
घर के दरवाजे अगर तुमने खुले रक्खे नहीं
जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं
यूँ मिलो "नीरज" हमेशा जैसे अन्तिम बार हो
छोड़ कर अरमाँ अधूरे तो कभी मिलते नहीं
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
"छोड़ देते मुस्कुरा कर भीड़ के संग दौड़ना
लोग ऐसे ज़िंदगी में हाथ फ़िर मलते नहीं"
गज़ब ,
बहुत अच्छा ....ये पंक्तियाँ तो कमाल ही हैं , जीवन के विभिन्न अनुभवों को छानकर इतने सरल शब्दों मैं सब कुछ कह दिया अपने !!
इश्क का मैं ये सलीका जानता सब से सही
जान देदो इस तरह की हो कहीं चरचे नहीं
बहुत बढ़िया,बधाई
"जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं"
" बहुत खूब कमाल की पंक्तियाँ, मन को छु गई "
"मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं,
तुम दीखाई दे रहे , पर आस पास मेरे नहीं ,
इन लबों पे शब्दों को तुम उम्र भर तलाशते रहे,
धडकनों के राज को तुमने मगर सुना ही नहीं"
Regards
नीरज जी,
बहुत सी गहरी बातें कह दी आप ने इस रचना के माध्यम से - खास कर
तल्ख़ बातों को जुबाँ से दूर रखना सीखिए
घाव कर जाती हैं गहरे जो कभी भरते नहीं
अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं
जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं
बहुत सुन्दर... बधाई
मान लूँ मैं ये करिश्मा प्यार का कैसे नहीं
वो सुनाई दे रहा सब जो कहा तुमने नहीं
वाह ...
नीरज जी,
बहुत ही उम्दा लिखा है आपने बहुत गहराई है एक एक हर्फ में..
तल्ख़ बातों को जुबाँ से दूर रखना सीखिए
घाव कर जाती हैं गहरे जो कभी भरते नहीं
अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं
जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं
-सुन्दर
खुशबुएँ बाहर से वापस लौट कर के जाएँगी
घर के दरवाजे अगर तुमने खुले रक्खे नहीं
बहुत खूब ...
जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं
बहुत ही सुंदर लगी आपकी गजल नीरज जी !!
नीरज जी
बहुत अच्छा लिखा है अपने.-
खुशबुएँ बाहर से वापस लौट कर के जाएँगी
घर के दरवाजे अगर तुमने खुले रक्खे नहीं
बधाई
तल्ख़ बातों को जुबाँ से दूर रखना सीखिए
घाव कर जाती हैं गहरे जो कभी भरते नहीं
अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं
छोड़ देते मुस्कुरा कर भीड़ के संग दौड़ना
लोग ऐसे ज़िंदगी में हाथ फ़िर मलते नहीं
वाह!वाह!वाह!
बहुत उम्दा शेर हैं.....
नीरज जी!!
अच्छी रचना है....
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छोड़ देते मुस्कुरा कर भीड़ के संग दौड़ना
लोग ऐसे ज़िंदगी में हाथ फ़िर मलते नहीं
जिस्म के साहिल पे ही बस ढूंढ़ते उसको रहे
दिल समंदर में था मोती तुम गए गहरे नहीं
नीरज जी,
आप हिन्द-युग्म के बहुत अच्छे ग़ज़लगो हैं, लेकिन आपकी ग़ज़ल के सभी शे'र बराबर वज़नी नहीं होते। शायद आपको शे'रों के चुनाव सावधानी बरतनी चाहिए। सभी शे'रों से मोह भी अच्छी बात नहीं।
अब्र लेकर घूमता है ढेर सा पानी मगर
फायदा कोई कहाँ गर प्यास पे बरसे नहीं
यूँ मिलो "नीरज" हमेशा जैसे अन्तिम बार हो
छोड़ कर अरमाँ अधूरे तो कभी मिलते नहीं
बहुत सुन्दर...
नीरज जी !
बधाई
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