दिसम्बर माह के १७वें कवि पिछले २-३ महीनों से प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे हैं। कवि दिनेश गेहलोत की क्षणिकाओं ने इस बार यह कमाल किया है।
कविता- क्षणिकाएँ
कवयिता- दिनेश गेहलोत
1)सुना टूटते तारे के सामने
जो भी इच्छा करो पूरी होती है
मेरे सामने भी एक तारा टूट रहा है
अपमान,जिल्लत,मार से ...
2)भ्रष्ट आदमी को
कौन सी गाली दूं ..
मन में आया ,क्यूँ न उसे
"नेता" कह दूं ......
3)सुनहरे सपने देखना चाहता हूँ
लेकिन कम्बख्त बेरोजगारी
सोने ही नहीं देती ............
4)कस्तूरी नाम उसका
पर स्वयं दुर्गन्ध में फँसी है
सज्जन उसका पति,
बरसों पहले बाजार में बेच गया
5)साहब मुझे न्याय दिलवा दो
बेचारा नहीं जानता
साहब पैसे को न्याय दिलवा चुके हैं
6)वह भी पगली प्यार में पड़ गयी
आखिर क्या मिला..
उपनाम - बेवफा , बिन ब्याही माँ....
7)पीपल की डाल पर
निकल आई छोटी सी कोंपल
पर अब क्या ...
ठेकेदार तो इसे गिराकर मॉल बनाएगा ...
8)पिता का.. पति का
फिर बेटे का घर
तो मेरा घर कौन सा है ?
9)पानी की बूंद गिरी
तो आकाश को देखने लगा
इस बार भी सावन का महीना
उसे मन्दिर में निकालना पड़ेगा
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ९॰२५, ६, ५॰१५
औसत अंक- ६॰८
द्वितीय चरण के जजमैंट में मिले अंक-५, ६॰८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰९
तृतीय चरण के जज की टिप्पणी-.
मौलिकता: ४/१ कथ्य: ३/१ शिल्प: ३/॰५
कुल- २॰५
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुना टूटते तारे के सामने
जो भी इच्छा करो पूरी होती है
मेरे सामने भी एक तारा टूट रहा है
अपमान,जील्लत,मार से ...
"दिनेश गेहलोत जी बहुत बधाई हो आपको , आपके सारी क्षणिकाएँ बहुत अच्छी लगी , खासकर ये वाली . एक अलग से अंदाज एल अलग सा अर्थ लगा इनका , एक इन्सान की मजबूरी , बेचारगी , बेकारी को दर्शाती अच्छी क्षणिकाएँ"
Regards
गेहलोत जी,
सभी क्षणिकायें सुन्दर बन पड़ीं है..
बहुत अच्छी क्षणिकायें..
1)सुना टूटते तारे के सामने
जो भी इच्छा करो पूरी होती है
मेरे सामने भी एक तारा टूट रहा है
अपमान,जील्लत,मार से ...
2)भ्रष्ट आदमी को
कौन सी गाली दूं ..
मन में आया ,क्यूँ न उसे
"नेता" कह दूं ......
4)कस्तूरी नाम उसका
पर स्वयं दुर्गन्ध में फँसी है
सज्जन उसका पती,
बरसों पहले बाजार में बेच गया
5)साहब मुझे न्याय दिलवा दो
बेचारा नहीं जानता
साहब पैसे को न्याय दिलवा चुके हैं
6)वह भी पगली प्यार में पड़ गयी
आखिर क्या मिला..
उपनाम - बेवफा , बिन ब्याही माँ....
बहुत बढ़िया..
8)पिता का.. पति का
फिर बेटे का घर
तो मेरा घर कौन सा है ?……मन भायी
दिनेश जी,
प्रथम क्षणिका अपने सधे शब्दों में काफी कुछ कह रही है-
सुना टूटते तारे के सामने
जो भी इच्छा करो पूरी होती है
मेरे सामने भी एक तारा टूट रहा है
अपमान,जील्लत,मार से ...
द्वितीय,तृतीय, षष्ठम् एवं अष्टम् क्षणिका साधारण लगी.
चतुर्थ क्षणिका में "पती" के स्थान पर "पति" एवं नवम् में "मंदीर" की जगह "मन्दिर/मंदिर" समीचीन होता.
पञ्चम एवं सप्तम् क्षणिका ने "वाह" कहने पर मजबूर किया.
sabkuch bahut badhiya,sundar,lajawaab.
दिनेश जी,
आपकी हर क्षणिका काबिले-तारीफ है, किसी एक क्षणिका को कमतर नहीं आंका जा सकता।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
दिनेश जी ,
मुझे क्षणिका २,४,५,७, ठीक ठीक लगीं.
बाकि १,३,६,८,९ क्षणिकाएँ अच्छी लगीं.शुभकामनाएं
sari ke sari skhnikaye bahut achhi,zindagi ki sachhai bayan karti bann pade hai.badhai ho.
गहलोत जी सुंदर क्षणिकाएँ.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
गहलोत जी,
प्रथम क्षणिका में "जील्लत" की जगह "जिल्लत" सही होता.
दूसरी बात कि "कवि" शब्द तो समझ में आता है, ये "कवयिता" क्या होता है? यदि कोई बन्धु इस पर प्रकाश डाल सकें तो बेहतर होगा !!
धन्यवाद,
मणि.
सभी क्षणिकाएँ बेहद सुंदर है, बधाई स्वीकारें दिनेश जी
दिनेश जी,
आपकी क्षणिकाएँ सपाट कथन जैसी हैं। काव्य-सौंदर्य आपकी रचना से नदारद है। आप हिन्दी साहित्य की उत्कृष्ट क्षणिकाओं को पढ़ें।
दिवाकर जी,
कवयिता- संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है 'कविता कर्म करने वाला' कवि। यह पुल्लिंग है, इसी शब्द का स्त्रीलिंग बनाकर आप लिखते हैं कवयित्री।
शेष आप संस्कृत भाषा के जानकार हैं, आप बेहतर बता सकते हैं। हम तो शब्दों की वैज्ञानिकता को बिना समझे शब्दकोशों से शब्दों को उठाते हैं।
हर क्षणिका में भाव बहुत गहरे और सशक्त है...बहुत सुन्दर...बधाई
भारतवासी जी,
मेरी शंका का सम्यक् समाधान करने हेतु धन्यवाद.
श्रीमान पंकज जी,
आप का बहुत बहुत शुक्रया. आप जैसे टीचर को पा कर बहुत ख़ुशी हुई.
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