दर्द ने जब हद से बढ कर
दिल की गहराई में दूर कहीं
किसी अहसास को पाला होगा
उस घडी आंखों ने तेरी चुपके
आस का मोती ढाला होगा
मुस्कान होंठों की शिकन भर
और हंसी बेमानी चुभन भर
मैं बांटे फ़िरा जमाने भर में
बेवजह सौगात समझ कर
और तुमने तो आह को भी
बरसों होठों पर संभाला होगा
क्या पाया मैने भी सोचो तो
यूं अपनी हदों से निकल कर
वापस आ नहीं सकता फ़िर से
तुझ तक अब खुद चल कर
चुन लूं सभी फ़ूल और कलियां
उससे भी भला अब क्या होगा
तोड के एक बार जो बिखेरा था
वो प्यार फ़िर कहां से माला होगा
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
मुस्कान होंठों की शिकन भर
और हंसी बेमानी चुभन भर
मैं बांटे फ़िरा जमाने भर में
बेवजह सौगात समझ कर
और तुमने तो आह को भी
बरसों होठों पर संभाला होगा
" शीर्षक कसक को सही रूप मे सार्थेक करती एक अच्छी रचना "
Regards
मुस्कान होंठों की शिकन भर
और हंसी बेमानी चुभन भर
अच्छा लिखा है मोहिंदर जी ..एक पुराना गीत याद आ गया इसको पढ़ के !!
मोहिन्दर जी
काफी अलग शैली में लिखी है यह कविता । दिल को स्पर्श करती हुई भावपूर्ण रचना ।
मुस्कान होंठों की शिकन भर
और हंसी बेमानी चुभन भर
मैं बांटे फ़िरा जमाने भर में
बेवजह सौगात समझ कर
और तुमने तो आह को भी
बरसों होठों पर संभाला होगा
अति सुन्दर ।
दर्द ने जब हद से बढ कर
दिल की गहराई में दूर कहीं
किसी अहसास को पाला होगा
उस घडी आंखों ने तेरी चुपके
आस का मोती ढाला होगा
....
मोहिंदर जी !
पहला छंद .... ही दिल पर भारी पड़ा .... आगे की बात क्या कहूं ... मित्रवर बहुत बहुत
शुभकामनाएं
rhis is simply fantastic,from strat to end,each word is more than perfect.very very nice.
मोहिंदर जी एकबार फ़िर अच्छी प्रस्तुति.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
'दर्द ने जब हद से बढ कर
दिल की गहराई में दूर कहीं
किसी अहसास को पाला होगा
उस घडी आंखों ने तेरी चुपके
आस का मोती ढाला होगा'
**बहुत खूब लिखा है!
-'तोड के एक बार जो बिखेरा था
वो प्यार फ़िर कहां से माला होगा'
*भावों की अच्छी प्रस्तुति है.
दर्द ने जब हद से बढ कर
दिल की गहराई में दूर कहीं
किसी अहसास को पाला होगा
उस घडी आंखों ने तेरी चुपके
आस का मोती ढाला होगा
मोहिन्दर जी,
पहला छंद सच में मर्मस्पर्शी है, अंदर तक झकझोर कर रख देता है, लेकिन तीसरा आते-आते आप कुछ कमजोर पड़ जाते है, ऎसा मुझे लगा।हो सकता है, यह बस मेरा हीं मंतव्य हो।
परंतु पूरे तौर पर आप सफल हुए हैं।
इस नाते आप बधाई के काबिल हैं।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
तोड के एक बार जो बिखेरा था
वो प्यार फ़िर कहां से माला होगा
वाह
दर्द को सजीव करती सुंदर रचना..
मोहिन्दर जी,
बहुत गहरी सोच एवं भावयुक्त रचना..
मुस्कान होंठों की शिकन भर
और हंसी बेमानी चुभन भर
मैं बांटे फ़िरा जमाने भर में
बेवजह सौगात समझ कर
और तुमने तो आह को भी
बरसों होठों पर संभाला होगा
बहुत सुन्दर..
खूबसूरत गीत है मोहिन्दर जी अच्छा लगा...जाने कब आपकी सुरीली आवाज में सुनने को मिलेगा...:)
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