प्रतियोगिता के १९वें स्थान पर भी एक कवयित्री का कब्ज़ा है। कवयित्री अवन्तिका मेहरा इस प्रतियोगिता में पहली बार शामिल हुई हैं। हम उम्मीद करते हैं कि वो आगे भी अपनी रचनाएँ हमें देती रहेंगी।
कविता- अभिव्यक्ति
कवयित्री- अवन्तिका मेहरा
अपनी भावनाओं को मैंने
असीम वर्जनाओं की गहन पीड़ा से
शब्दों में उकेर दिया
तुमसे सहा न गया
उधेड़ दिया शब्दों को
नोंचकर फेंक दिया उन्हें
सड़कों में रौंदने के लिए
तुमने फ़िर
सफ़ाई दे डाली आज़ादी की
परिभाषित कर डाला पीड़ा को
सहेजा था वर्षों से जिसे मैंने
तुमने सभी को बिखेर दिया
मैंने कब कहा
मैं अबला हूँ
इतिहास साक्षी है
मैंने सबला बनकर
सृष्टि का पोषण किया
मैंने माँ बनकर
बहन और बेटी बनकर
एक तिरस्कार झेलने को
हर बास खुद को खोया
हमेशा की तरह तुम भी
मुझपर आश्रित रहे
जीवन के हर मोड़ पर
मैंने अपनी उपस्थिति को
अपने होने के अहसास को
तुम्हें अहसास कराया
लेकिन न जाने क्यों
तुमने मेरी ही अभिव्यक्ति को
अपनी गुलामी की कथा मानकर
जीवन के हर मोड़ पर
मुझे एक ठूँठ की तरह
नितान्त अकेला ही रहने को मज़बूर किया।
मैं सृष्टि रचयिता न सही
उसकी भागीदार तो हूँ
मैंने तुम्हारे अस्तित्व को हमेशा
स्वीकार की अभिव्यक्ति दी
आज
जीवन के मध्य में
मेरे जीने पर पहरा लगा दिया
खण्डित कर दिया अतीत
मेरे होंठ कुछ कहने को
हमेशा खुले रह गये।
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७॰७५, ६, ७
औसत अंक- ६॰९१६६७
द्वितीय चरण के जजमैंट में मिले अंक-७, ६॰९१६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९५८३३
तृतीय चरण के जज की टिप्पणी-.
मौलिकता: ४/॰२ कथ्य: ३/१॰२ शिल्प: ३/॰५
कुल- १॰९
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
sunder kavita
यद्यपि नयापन नही है लेकिन आपके रचना की समर्थता प्रशंसनीय है |
बधाई
अवनीश तिवारी
bahut achhi abhivkyati hai badhai ho.
आज
जीवन के मध्य में
मेरे जीने पर पहरा लगा दिया
खण्डित कर दिया अतीत
मेरे होंठ कुछ कहने को
हमेशा खुले रह गये।
अवन्तिका जी, खुले होठों को शब्द देना होगा। अन्याय का प्रतिकार जरूरी है।
कुछ दर्द पुरूष समझते नही समझ सकते नही | ऐसी ही गलियों से गुज़रती आपकी ये रचना जो पुरुषो के लिए अछूती है , शिल्प बीच -२ मैं कमजोर पढ़ रहा था , लेकिन सराहनीय प्रयास
बहुत अच्छा
भारती
लेकिन न जाने क्यों
तुमने मेरी ही अभिव्यक्ति को
अपनी गुलामी की कथा मानकर
जीवन के हर मोड़ पर
मुझे एक ठूँठ की तरह
नितान्त अकेला ही रहने को मज़बूर किया।
"beautiful words , i liked this one"
Regards
अवंतिका जी,
बहुत सुन्दर प्रयास है.. कलम अविराम चलने दें..
आज
जीवन के मध्य में
मेरे जीने पर पहरा लगा दिया
खण्डित कर दिया अतीत
मेरे होंठ कुछ कहने को
हमेशा खुले रह गये।
बहुत बहुत शुभकामनायें
स्त्री मन के अन्तर द्वंद की अच्छी अभिव्यक्ति है.
लिखती रहीये-
शुभकामनाएं...
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