कल, २६ जनवरी को बहुत रोया मेरा देश
हां,कल ही तो चौराहे पर उसे रोता देखा था
थका,क्लान्त,मलिन,
उद्विग्न,उदासमना
कुछ खिन्न सा कुछ दिग्भ्रमित सा
सहसा मैं उसे पहचान नहीं पाया
फिर हतप्रभ सा ठिठका
तो पाया वही था
नज़दीक जाकर कंधे पर रख हाथ मैं बोला-
क्यों रोते हो भाई
अवाक सा देखता हुआ
वह सहसा बिलख पडा
सांत्वना देता हुआ मैं, मौन
प्रतीक्षा करता रहा
बोलेगा वो ,कुछ तो बोलेगा
व्यथा मन की खोलेगा
अचानक हाथ पकड वो बढ चला आगे
भीड देख ठिठका ,
पंजे उचका भीड में झांकता सा
फिर पूछा ये क्या है भाई?
मैंने किंचित मुस्करा कर कहा-
हडताली है भाई
हडताल वो क्या?
मैं हडबडाया,उसकी नादानी पर झुंझलाया
फिर कुछ याद आया मैं बोला-
अरे वही सत्याग्रह ,गांधी जी का सत्याग्रह
लेकिन अब क्यों अब तो मैं आज़ाद हूँ-भाई,
तुम बडी लम्बी नींद से जागे हो
तभी तो नहीं जानते
अपनी मनमानी को ,
कुछ महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के सुझाव को
निजी स्वार्थों से उपजी मांगों के
मायाजाल को ही तो "हडताल "कहते हैं-
असमंजस में खडा
डबडबायी आँखों से
ऒझल होते जुलूस को देखता हुआ वो बुदबुदाया-
"मेरे घर का आँगन तो ऐसा न था"
अब हाथ पकड कर मैं उसे आगे ले चला
ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुन वो ठिठका-
फिर क्या हुआ वो कुनमुनाया
शायद किसी भ्रष्ट अफसर के घर छापा पडा है
व्यथित सा वो बोला -
"मैंने ऐसे संस्कार तो नहीं दिये थे"
झुके हुए कांधे अब थोडा ऒर झुक चले हैं
कुछ कदम चलने पर गोलियों की बौछार होती देख
हम आड में छिप गये अब क्या हुआ -
वो आतुर सा चिल्लाया
मैं शांत स्वर में बोला ,
कुछ नहीं बस ज़रा पडोसी भडक गया
"पडोसी"वो आगे झांकता सा बोला-
अरे ,वो तो मेरा अपना है
कल तक गोद में दुबक
गलबैंया डाले छाती से लगा रहता था
मैं बोला वो कल की बात थी
अब वो है ,पडोसी
बस मौकापरस्त पडोसी
मैंने देखा एक ही पल में वो
युगों-युगों बुढा हो चला है
उसे ज़ार-ज़ार रोते देख
दिल मेरा भी भर चला
कुछ सोच उसे छोड मैं
आगे बढ चला
कैसी विडम्बना है-
गणतंत्र दिवस को ही मेरा देश रोया है
उसका रूदन अब भी दहला रहा है-
हां, मेरा देश बहुत रोया है.
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
अनुराधा जी,
देश की बदहाली से आप कितनी आहत हैं यह खुलकर प्रकट हुआ है कविता में। स्थिति ऐसी ही रही तो २६ जनवरी क्या हर दिन.........कुछ समाधान भी आपने सुझाया होता तो अच्छा होता।
एक दिन के पूरे अख़बार की सारी खबरों को अपने एक कविता मैं समेट के रख दिया , सच है , रोज़ पढ़ते हैं ये भी सच है , लेकिन कुछ होता नही , और देखिये फ़िर से २६ जनवरी आ गयी
अच्छी रचना है। खूब लिखें। 26 जनवरी तो अब खादी जश्न का बहाना भर रह गया है।
अनुराधा जी दिव्या प्रकाश जी ने सही लिखा है पूरे अखबार को समेट कर लगता है आपने कविता बना दी है...बहुत अच्छा प्रयास है...
मैंने देखा एक ही पल में वो
युगों-युगों बुढा हो चला
waaah, sach kaha aapne
vichariye kavita
सुंदर विचारों वाली कविता लगी आपकी अनुराधा जी !!
कैसी विडम्बना है-
गणतंत्र दिवस को ही मेरा देश रोया है
उसका रूदन अब भी दहला रहा है-
हां, मेरा देश बहुत रोया है.
अच्छी रचना है।
Regards
अनुराधा जी..
अच्छी कोशिश देश के तंत्र को गणतंत्र पर रुदन के रूप में शब्दों मे पिरोने का...
शुभकामनायें..
क्या कहूँ? गौरव अपने स्कुल मे होने वाले प्रोग्राम के बारे मे बता रहा था ... मैने उससे यूँ ही पुछ कि 26जनवरी को किसलिये उत्सव मनाते हैं? तो उसने बताया कि उस दिन डांस करने से मैम चॉकलेट देंगी...
मै हतप्रभ थी... स्कुल मे अध्यापक बस यही नैतिक शिक्षा दे पाते हैं?
ऐसी हालात मे और क्या उम्मीद की जा सकेगी?
जो चित्रांकन आपने किया है वो तो होना ही है।
धांसू!!!
आप की कविता आप की जागरूकता और चिंतनशीलता का परिचय दे रही है.
बहुत अच्छा लिखा है. आपने वास्तविकता से बखूबी सामना कराया है .
अनुराधा जी,
कैसी विडम्बना है-
गणतंत्र दिवस को ही मेरा देश रोया है
उसका रूदन अब भी दहला रहा है-
हां, मेरा देश बहुत रोया है.
कृपया लिखते रहें ऐसी जागरूकता को तरश जाता हूँ कई बार
अनुराधा जी,
आपकी व्यथा स्पष्ट दृष्टिगोचर है, अच्छा लिखा आपने
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
मैनें अपने बच्चे का जन्म दिन मनाया,
स्नेही स्वजनों को बुलाया.
किसी ने बच्चे को उपहार थमाया.
कोई बधाई पत्र ले आया.
सब ले रहे थे आनंद.
तभी एक मित्र ने कहा-
मैं सुनना चाहता हूँ एक छंद.
सबने सोचा अब मिलेगी सुनने को
एक आशीष और आशा भरी कविता
जिसे सुनकर मन प्रसन्न हो जाएगा.
मित्र ने रचना तो बहुत अच्छी पढी.
भाव शिल्प कथ्य लय
अलंकार प्रतीक बिम्ब
हर कसौटी पर कविता शानदार थी
पर सबका मन उल्लासहीन हो गया
क्योकि मित्र ने पढ़ दिया था
एक शोक गीत.
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