हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता के दिसम्बर अंक के १८वें स्थान की कवयित्री सीमा गुप्ता इस मंच की सक्रियतम पाठकों में से एक हैं। हिन्दी को इन्हीं की तरह के पाठकों की आवश्यकता है।
कविता- अच्छा था
कवयित्री- सीमा गुप्ता
तेरी यादों में जल जाते तो अच्छा था,
शबनम की तरह पिघल जाते तो अच्छा था।
इन उजालों में मिले हैं वो दर्द गहरे,
हम अंधेरों में बदल जाते तो अच्छा था.
मेरी परछाईं से भी था शिकवा उनको,
ये चेहरे ही बदल जाते तो अच्छा था.
क्यों माँगा था तुझे उमर भर के लिए,
अपना ही सहारा बन जाते तो अच्छा था.
यूं बरसा के भी सावन प्यासा ही रहा,
हम ही समुंदर बन जाते तो अच्छा था.
क्यों संभाला था ख़ुद को एक मुकाम के लिए,
हम यूं ही टूट के बिखर जाते तो अच्छा था.
चाँद और सितारे तो नहीं मांगे थे हमने,
काश अपने भी मुकद्दर सँवर जाते तो अच्छा था
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ८, ५॰५, ६॰५
औसत अंक- ६॰६६६७
द्वितीय चरण के जजमैंट में मिले अंक-५॰५, ६॰६६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰०८३३५
तृतीय चरण के जज की टिप्पणी-.
मौलिकता: ४/॰२ कथ्य: ३/॰२ शिल्प: ३/१॰५
कुल- १॰९
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
13 कविताप्रेमियों का कहना है :
seemaji bahut khub,apna hi mukddar sawar lete tho achha tha,badhai.
तेरी यादों में जल जाते तो अच्छा था,
शबनम की तरह पिघल जाते तो अच्छा था।
इन उजालों में मिले हैं वो दर्द गहरे,
हम अंधेरों में बदल जाते तो अच्छा था.
अंतरमन को बहुत ही दर्द के साथ निकाल कर रखा है आपने..
समर्पण में मिले नैराश्य की अभिव्यक्ति, व्यथित कर गई दिल को..
नमन है आपकी वर्तनी को..
लिखते रहें आपकी अगली रचना के इंतजार में..
क्यों माँगा था तुझे उमर भर के लिए,
अपना ही सहारा बन जाते तो अच्छा था.
बहुत खूब सीमा जी
यूं बरसा के भी सावन प्यासा ही रहा,
हम ही समुंदर बन जाते तो अच्छा था.
अच्छी लगी आपकी यह रचना सीमा जी लिखती रहे !!
Yet Another Sixer :)
Great Going Dear
Keep It Up
It increases red blood cells within me, you know ;)
-- Amit Verma
'यूं बरसा के भी सावन प्यासा ही रहा,
हम ही समुंदर बन जाते तो अच्छा था.'
वाह ! वाह ! सीमा जी क्या बात है!
बहुत खूबसूरती से उतारा है आपने अपने भावों को-बहुत खूब !
चाँद और सितारे तो नहीं मांगे थे हमने,
काश अपने भी मुकद्दर सँवर जाते तो अच्छा था
-- सुंदर
अवनीश तिवारी
सीमा जी
बहुत सुन्दर गज़ल लिखी है।
मेरी परछाईं से भी था शिकवा उनको,
ये चेहरे ही बदल जाते तो अच्छा था.
क्यों माँगा था तुझे उमर भर के लिए,
अपना ही सहारा बन जाते तो अच्छा था
भाव प्रवण रचना के लिए बधाई
सीमा जी भाव सही है, शिल्प पर थोड़ा सा और ध्यान दें। ये पंक्तियाँ अच्छी लगी-
तेरी यादों में जल जाते तो अच्छा था,
शबनम की तरह पिघल जाते तो अच्छा था।
इन उजालों में मिले हैं वो दर्द गहरे,
हम अंधेरों में बदल जाते तो अच्छा था.
क्यों माँगा था तुझे उमर भर के लिए,
अपना ही सहारा बन जाते तो अच्छा था.
सीमा जी बहुत ही सुन्दर कविता
मुझे ये पंकि्तया बहुत पंसंद आयी
bahut khoob
सभी कवी मित्रों और पाठकों का दिल से शुक्रिया की आप सब ने दिल से मेरी इस ग़ज़ल को सराहा , और मुझे और भी अच्छा लिखने के लिए प्रेरित किया"
Regards
सीमा जी !
क्यों माँगा था तुझे उमर भर के लिए,
अपना ही सहारा बन जाते तो अच्छा था.
बहुत अच्छा लगा यह शेर
शुभकामनाएं
चाँद और सितारे तो नहीं मांगे थे हमने,
काश अपने भी मुकद्दर सँवर जाते तो अच्छा था
बहुत खूब सीमा जी। आपकी रचना अच्छी है। बस गज़ल बनाने के लिए थोड़ी और मेहनत की जरूरत है। काफिया और बहर थोड़े कमजोर है। फिर भी भाव अच्छे हैं। इसलिए बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)