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Sunday, January 20, 2008

तीसरी नेपाली कविता का हिन्दी अनुवाद


महीने की २०वीं तारीख हिन्द-युग्म के कविता मंच के लिए विशेष होती है। हम प्रतियोगिता से चुनी गई कविताओं, सदस्य कवियों की कविताओं, उद्‌घोषणाओं, सूचनाओं आदि के प्रकाशन के अलावा हम नेपाली कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित करते हैं। २० नवम्बर २००७ से मनु मञ्जिल की कविता 'पुरखो के प्रति' को कुमुद अधिकारी के सहयोग द्वारा प्रकाशित कर इसकी शुरूआत की थी। यह भी खुशी की बात रही कि साथ ही साथ गौरव सोलंकी की कविता 'बाज़ार जा रही हो तो' का नेपाली अनुवाद भी साहित्य सरिता में प्रकाशित हुआ। पिछले महीने हमने मुकुल दाहाल की नेपाली कविता 'जीवनवृत्त' का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया। साहित्य सरिता के अगले अंक में मनीष वंदेमातरम् की क्षणिकाओं का नेपाली अनुवाद प्रकाशित हुआ।

इस बार हम सुमन पोखरेल की नेपाली कविता 'पेड़' का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित कर रहे हैं। हमेशा की तरह इस बार भी नेपाली अनुवाद किया है कुमुद अधिकारी ने।

कुमुद जी ने रंजना भाटिया (रंजू) की छोटी कविताओं का नेपाली अनुवाद कर लिया है जो साहित्य सरिता के आगामी अंक में प्रकाशित होगा।


सुमन पोखरेल
21 सितम्बर 1967
प्रकाशित कृतियाँ-
1. हजार आँखाःयी आँखामा (गीत-संग्रह)
2. शून्य मुटुको धडकन भित्र( कविता-संग्रह)
5. पाँच दर्जन से ज्यादा रचनाएँ(कविताएँ, गीत, लघुकथाएँ) नेपाल की राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में
आबद्धताः
1. सदस्य, वाणी प्रकाशन, विराटनगर
2.सदस्य, साहित्यसञ्चार प्रतिष्ठान, इटहरी

संपर्कः 111, बुद्ध विहार मार्ग, अलका बस्ती, विराटनगर – 15
फोन- 00977-21-524927, 00977-9842030575


इमेलः suman.pokhrel@iprcnepal.com, suman.pokhrel@vaniprakashan.org



पेड़-१
 सुमन पोखरेल

मैं देख रहा हूँ पेड़ को

पेड़ टुकड़ों में नहीं जीता
जब तक जीता है ज़िंदगी को संपूर्णता में,
अपने में समाहित कर जीता है।

धूप में धूप से संतुष्टि
बरसात में भीगने की खुशी
पेड़ का भूख, अपने आकार से बड़ा क़तई नहीं है।

हवा के संग डोलता
चांदनी में नहाता
कुछ न हो तो अंधेरे के संग खेलता पेड़।

उसे अपने जड़ से दूर जाना नहीं
जड़ से उखड़कर आसमाँ में उड़ने के ख़्वाव नहीं देखता पेड़।

खड़े रहने से ज्यादा जमीन नहीं चाहिए उसे
डालों और पत्तियों से ज्यादा सपने नहीं देखता वह
पेड़ नहीं बिखेरता अपने अरमान अपनी पहुँच से बाहर।

जीने की दौड़-धूप से परेशान मैं
दिल, दिमाग और बदन से थका-माँदा मैं
उसकी छाया में लेटकर
उगती चाँदनी के साथ देखता हूँ उसे।

और वह खड़ा है, सौम्य, निडर और निश्चिंत।




मूल नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी।

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Alpana Verma का कहना है कि -

पेड़ को आप के नजरीये से देखना अच्छा लगा.
सच है अपने आस पास से बहुत कुछ सीखते हैं हम.
इस पंक्ति --पेड़ का भूख, अपने आकार से बड़ा क़तई नहीं है।
को पेड़ की भूख अपने आकार से बड़ी कतई नहीं है. -होना चाहिये था-शायद अनुवादकर्ता की नजरों से चूक हो गयी.[??]
शेष -कविता में नयापन लगा.
पसंद आयी.धन्यवाद.

Anonymous का कहना है कि -

ek dam alag tarh ki kavita hai,bahut pasand ayi,ped(tree) ka jeevan ,manav rupi jeevan ke sath ka talmel sundar hai.

Anonymous का कहना है कि -

पोखरेल जी, नए अंदाज की आपकी ये कविता पसंद आई.
बहुत बहुत साधुवाद
आलोक सिंह "साहिल"

रंजू भाटिया का कहना है कि -

पेड़ पर लिखे लफ्जों से ज़िंदगी से जुड़े कुछ अर्थ .इस रचना में बहुत अच्छे लगे ..कुमुद जी का का शुक्रिया जो उन्होंने इसका इतने अच्छे से अनुवाद करके हम तक इसको पहुँचाया !!

विश्व दीपक का कहना है कि -

जीने की दौड़-धूप से परेशान मैं
दिल, दिमाग और बदन से थका-माँदा मैं
उसकी छाया में लेटकर
उगती चाँदनी के साथ देखता हूँ उसे।

और वह खड़ा है, सौम्य, निडर और निश्चिंत।

सुमन जी,
आपकी कविता से पेड़ का एक अलग हीं रूप हम पाठकों के सामने आया है। निस्संदेह यह रूप नया नहीं है, परंतु हम में से किसी ने इस रूप को पहले कभी महसूस नहीं किया था।
इस नाते आपका प्रयास बधाई के काबिल है।कुमुद जी को भी इस नाते बहुत-बहुत धन्यवाद।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

seema gupta का कहना है कि -

धूप में धूप से संतुष्टि
बरसात में भीगने की खुशी
पेड़ का भूख, अपने आकार से बड़ा क़तई नहीं है।
"वह बहुत अच्छा रूप बयान किया आपने एक पेड का, सुंदर रचना "

Regards

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुन्दर बाँधने वाली रचना
नवीनता लिये हुए..

-धन्यवाद

Devendra का कहना है कि -

ped ki jivan se manav jivan ki kigai tulna behad yatharthpurn aur man ko chu lene vali hai

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