हर आँख में नमी है, हर आँख है प्यासी
हर मौसम का सबब लिए घूमती हैं आँखें ।
हर आँख में छिपी है ख़ुशी के संग उदासी
हर वक़्त ज़िन्दगी में कुछ ढूँढती है आँखें ।
कुछ बोलती-सी, कुछ तन्हा, कुछ डोलती-सी आँखें
ज़िन्दगी के राज़ सारे खोलतीं हैं आँखें ।
कुछ अनकही-सी बातें, कुछ अनमाँगी मुरादें
अंधेरा-रौशनी-धुंध-चमक कोई तिलिस्म हैं आँखें ।
ठहरी हुई नज़र भी दौड़ती है सरपट
ढूँढ ही लेतीं हैं जो चाहती हैं आँखें ।
जाने किस दुनिया में बसती हैं आँखें
जाने कैसे-कैसे ख़्वाब बुनती हैं आँखें
जागती आँखों से भी हो धोखा
जाने कैसे रौशनी लिए जलती हैं आँखें ???
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छे बातें बयान किया है |
बधाई |
लेकिन पाठक के नज़रिये से मुझे कुछ अव्यवस्थित सा लगा |
-- अवनीश तिवारी
जाने किस दुनिया में बसती हैं आँखें
जाने कैसे-कैसे ख़्वाब बुनती हैं आँखें
जागती आँखों से भी हो धोखा
जाने कैसे रौशनी लिए जलती हैं आँखें ???
बहुत अच्छी कविता है दिल को छु गई ,
"दिल मे दबे छुपे शोलों को भड़का जाती हैं, ये ऑंखें कुछ कह जातीं हैं ,
Regards
अभिषेक जी,
आंखों का नाम ले कर दिल की बात कह दी :)
आंखों ने खता की थी, आंखों को सजा देते
दिन रात तडफ़ने की क्यूं दिल ने है सजा पाई.
marvolous,simply superb
'ठहरी हुई नज़र भी दौड़ती है सरपट'
भाव अच्छे हैं.जिस लय में शुरू हुई कविता को उसी लय में अगर जारी रखते तो बेहतर होगा. या यूं कहिये
कविता में थोड़ा शब्दों के संतुलन की आवश्यकता लग रही है. मेरी अपनी राय में अन्तिम पंक्तियों को भी चार की जगह दो ही रख कर समाप्त करते तो शायद ज्यादा अच्छा रहता.
एक दो पंक्तियों में थोड़ा कांट छाँट कर लें तो बहुत सुंदर हो जायेगी आप की कविता.
अभिषेक जी,
बढिया लिखा है बस थोडा शिल्प भटक रहा है..
बहुत बहुत बधाई
पाटनी जी अच्छी रचना. मोहिंदर सर, आंखें होती ही हैं जुबान का बोझ हल्का करने के लिए.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
जाने किस दुनिया में बसती हैं आँखें
Again....a poem so good that words are not enough to express the beauty of the writing.
हर आँख में छिपी है ख़ुशी के संग उदासी
हर वक़्त ज़िन्दगी में कुछ ढूँढती है आँखें।.....great lines
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