प्रायः हम प्रतियोगिता से मात्र टॉप २० कविताओं का प्रकाशन करते हैं, लेकिन इस माह हम कुल २५ कविताएँ प्रकाशित कर रहे हैं। आज २१वीं कविता की बारी है, जिसके रचनाकार हैं मनुज मेहता। मनुज मेहता बहुत बढ़िया छायाकार भी हैं।
कविता- निवेदन
कवि -मनुज मेहता, दिल्ली
मैं भेज रहा हूँ तुम्हें
अपने झिझकते शब्दों के साथ
थोड़ा सा सावन--
अंतरमन को गुदगुदा देने वाली
पहली फुहार
सर्द सुबह की पहली ओस
भीगी हुई घास की हरी गुनगुनाहट
झींगुरों की अन्तहीन पुकार
पक्षियों का कलरव
थोड़ा सा आकाश
तारों की कतार
और-
एक प्राचीन कामना के साथ
अपना प्रणय-निवेदन
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰७५, ६, ६॰९
औसत अंक- ६॰५५
द्वितीय चरण के जजमैंट में मिले अंक-४॰६, ६॰५५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰५७५
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
मनुज जी !
खोज रहा हूँ बहुत दिनों से उस रचनाकार को जिसने किखी थी 'मेरा कमरा' नामक कविता, जो आज तक मेरे जेहन में छाई है और आज जाकर वो फ़िर मिला है गजब की शैली और शिल्प परन्तु आपकी अपनी दोनों रचनाओं में तुलना करने का अपराध नहीं करूंगा सुंदर ...
शुभकामना
bahut khub,chota gehra nivedan badhai
प्राचीन कामना -- kyaa sundar shabd banayaa hai |
rachanaa achhee hai|
avaneesh tiwaree
इस निवेदन को कोई मना नही कर सकता, बहुत खूब,
एक प्राचीन कामना के साथ
अपना प्रणय-निवेदन
बहुत ही सुंदर कविता लगी आपकी यह मनुज जी !!
मैं भेज रहा हूँ तुम्हें
अपने झिझकते शब्दों के साथ
थोड़ा सा सावन--
"प्राचीन कामना के साथ प्रणय-निवेदन,बहुत ही सुंदर कविता "
Regards
beautiful, pure poetry
'पक्षियों का कलरव
थोड़ा सा आकाश
तारों की कतार''
बहुत ही सुंदर !
छायाकार का प्रकृति प्रेम और कविमन की कोमल भावनाएं बड़ी खूबसूरती से एक कर निवेदन बना कर भेजी जा रही हैं.
खूबसूरत प्रस्तुति.
मनुज जी
बहुत ही प्यारी कविता लिखी है आपने । आप सच में प्रभावी लिखते हैं । विशेष रूप से निम्न पंक्तियाँ -
अंतरमन को गुदगुदा देने वाली
पहली फुहार
सर्द सुबह की पहली ओस
भीगी हुई घास की हरी गुनगुनाहट
झींगुरों की अन्तहीन पुकार
पक्षियों का कलरव
थोड़ा सा आकाश
तारों की कतार
और-
एक प्राचीन कामना के साथ
अपना प्रणय-निवेदन
अति सुन्दर । बधाई
मैं भेज रहा हूँ तुम्हें
अपने झिझकते शब्दों के साथ
थोड़ा सा सावन--
जो शब्दों से परे है उसे शब्दों में बाँधना!!झिझक तो होगी ही।
मनुज जी बहुत ही प्यारी रचना, माफ़ी चाहूँगा..........निवेदन.
आलोक सिंह "साहिल"
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