दिसम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता के २०वें स्थान पर एक नया चेहरा उभरकर आया है प्रकाश यादव 'निर्भीक' के रूप में। निर्भीक उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जैसे छोटे शहर से हैं जहाँ से इंटरनेट प्रयोक्ताओं का जन्म होना अभी शुरू ही हुआ है। जल्द ही छोटे शहरों की बड़ी प्रतिभाएँ इंटरनेट की शोभा बढ़ायेंगी, इसका हमें भरोसा है।
कविता- मंज़िल अनछुई सी
कवि -प्रकाश यादव 'निर्भीक'
पिछली असफलताओं को भूलकर,
और उसके दर्द को,
तेरा तोहफा ही समझकर,
पीता हुआ निकल पड़ता हूँ,
तुम्हारी खोज में,
रेत भरी लीक से होकर,
नयी उमंग के साथ;
कटीली झाड़ियों को,
रौंदता हुआ डगर में,
बढ़ता चला जाता हूँ,
नदी नालों को पार करता हुआ,
मस्ती में,
अपने से अधिक बोझ लेकर;
तुम्हारी अदृश्य तस्वीर को,
बिठाकर अपने दिल में,
पहुँच जाता हूँ,
उस गुफ़ा के बिल्कुल करीब,
जहाँ शायद तुम
छुपी हो,
तब तुम्हें पाकर,
नजदीक इस क़दर,
उमंगों की लहरें मारती हैं हिलौरे,
उर में,
खुशी से पागल होने को,
होता है ये दिल कि,
तभी बड़ी बेरहमी से,
रोक देता है आकर मुझे,
एक विशाल शिलाखण्ड,
और रह जाती है मेरी मंजिल,
फिर एक बार अनछुई सी...
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰५, ६, ६॰६
औसत अंक- ६॰३६६७
द्वितीय चरण के जजमैंट में मिले अंक-४॰८, ६॰३६६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰५८३३५
तृतीय चरण के जज की टिप्पणी-.
मौलिकता: ४/॰२ कथ्य: ३/॰१ शिल्प: ३/१॰५
कुल- १॰८
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
खुशी से पागल होने को,
होता है ये दिल कि,
तभी बड़ी बेरहमी से,
रोक देता है आकर मुझे,
एक विशाल शिलाखण्ड,
और रह जाती है मेरी मंजिल,
फिर एक बार अनछूई सी...
"अच्छी भावपूर्ण कवीता है, एक उम्मीद भरी शुरुआत और एक अधूरा अंत "
बधाई हिंद युग्म पर अपनी उप्स्थीती दर्ज करने के लिए
आपने कहा-''निर्भीक उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जैसे छोटे शहर से हैं जहाँ से इंटरनेट प्रयोक्ताओं का जन्म होना अभी शुरू ही हुआ है। जल्द ही छोटे शहरों की बड़ी प्रतिभाएँ इंटरनेट की शोभा बढ़ायेंगी,
*'बिल्कुल यह आप के प्रयासों का फल है.''
*निर्भीक जी बधाई -
आप की कविता कवि के आशा -निराशा भरे मनोभावों को खूबसूरती से प्रस्तुत कर रही है.
लिखते रहीये..शुभकामनाएं
प्रयास और आशा का सफर निराशा से समाप्त होता है ....
सुंदर ...
अवनीश तिवारी
खुशी से पागल होने को,
होता है ये दिल कि,
तभी बड़ी बेरहमी से,
रोक देता है आकर मुझे,
एक विशाल शिलाखण्ड,
और रह जाती है मेरी मंजिल,
फिर एक बार अनछूई सी...
kavita bahut sundar ban padi hai,ye akhari panktiya aur bhi jaan dal rahi hai shabdo main,badhai ho.
प्रकाश जी,
खुशी से पागल होने को,
होता है ये दिल कि,
तभी बड़ी बेरहमी से,
रोक देता है आकर मुझे,
एक विशाल शिलाखण्ड,
और रह जाती है मेरी मंजिल,
फिर एक बार अनछूई सी...
सुन्दर लिख रहे हैं.. लिखते रहें..
बहुत बहुत शुभकामनायें
बहुत अच्छा "प्रकाश" , मैंने अपनी अभी तक की जिंदगी के ५ साल शाहजहांपुर मैं काटे हैं और जो थोडी बहुत हिन्दी की नींव पड़ी है वो वहाँ के गुरुजनो के कारन ही है , इस मामले मैं मैं शाहजहांपुर को कभी नही भूल सकता ,| भाई लोगो शहर छोटा है , लेकिन इस शहर के हौसले बहुत बड़े हैं |आपमे से बहुत लोगो ने "मुझे चाँद चाहिए " पढी होगी "सुरेन्द्र वर्मा जी द्वारा ,उस कहानी की प्र्ष्ठ्भूमि भी शाहजहांपुर की है , |राम प्रसाद बिस्मिल , अशफाक उलला खा जैसे महान लोगो की जन्म भूमि से आज प्रकाश यादव निर्भीक का जन्म ब्लोग्गिंग की दुनिया मैं होता हुआ देख रहा हूँ मैं ,
स्वागत है आपका ||
दिव्य प्रकाश
निर्भीक जी बधाई हो, अच्छी कविता.
आलोक सिंह "साहिल"
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