टॉप १० कविताओं से आगे बढ़ते हैं। ११वें स्थान के कवि विनय चंद्र पाण्डेय दूसरी मर्तबा इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे हैं और पहली बार प्रकाशित हो रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
कवयिता- विनय चंद्र पाण्डेय, नोएडा
थोड़ी देर को चल गए थे, आ गए हैं
किसी से अब न पूछना कि कहाँ गए हैं
अपने हरे भरे बाग़ व बगीचों को
शहरों की सड़कें और पुल खा गए हैं
तुम जाओ वहाँ पर इन्साफ मिलेगा
लोग अभी जेबें भरकर वहाँ गए हैं
मुझको तू महलों के ख्वाब ना दिखा
इन आंखों को खँडहर ही भा गए हैं
यहाँ पे अब तेजाबी बारिश होगी
हमारे ख्वाब बादल बन छा गए हैं
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰७५, ७, ५॰५
औसत अंक- ६॰४१६७
द्वितीय चरण के जजमैंट में मिले अंक-५॰८, ६॰४१६७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰१०८३५
तृतीय चरण के जज की टिप्पणी-.
मौलिकता: ४/१ कथ्य: ३/२ शिल्प: ३/१
कुल- ४
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
kaviji ko badhai,bahut aachhi gazal hai,aakhari sher behad umada bana hai,yaha pe ab tejabi barish hogi
hamare khwab badal ban cha gaye hai,sundar.
सुंदर कोशिश |
लगे रहो भाई ...
बधाई |
कुछ गलती...
वर्तनी की है या गणीत की ?
जजों ने अंक दिए हैं - मौलिकता: ४/१ कथ्य: ३/२ शिल्प: ३/१
होना चाहिए - मौलिकता: १/४ कथ्य: २/३ शिल्प: १/३
कोई विशेष बात नही है लेकिन गलती निकालने का भी मज़ा होता है :)
-- अवनीश तिवारी
तुम जाओ वहाँ पर इन्साफ मिलेगा
लोग अभी जेबें भरकर वहाँ गए हैं '
*अच्छा व्यंग्य किया है.
*ग्यारहवां स्थान पाने के लिए बधाई.
विनय जी,
अच्छी गज़ल है..
अपने हरे भरे बाग़ व बगीचों को
शहरों की सड़कें और पुल खा गए हैं
तुम जाओ वहाँ पर इन्साफ मिलेगा
लोग अभी जेबें भरकर वहाँ गए हैं
मुझको तू महलों के ख्वाब ना दिखा
इन आंखों को खँडहर ही भा गए हैं
सुन्दर लिखा है..
बहुत बहुत बधाई
विनय जी इतनी प्यारी गजल के लिए बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"
taarif ke liye aap sabko dhanyawaad
मुझको तू महलों के ख्वाब ना दिखा
इन आंखों को खँडहर ही भा गए हैं
अच्छी गज़ल है.. बहुत बहुत बधाई
तुम जाओ वहाँ पर इन्साफ मिलेगा
लोग अभी जेबें भरकर वहाँ गए हैं
मुझको तू महलों के ख्वाब ना दिखा
इन आंखों को खँडहर ही भा गए हैं
बहुत ही अच्छे विचार है
यहाँ पे अब तेजाबी बारिश होगी
हमारे ख्वाब बादल बन छा गए हैं
अच्छा लिखा है।
सारे के सारे शे'र दमदार हैं। लेकिन ग़ज़ल के व्याकरण में न होने के कारण आपकी ग़ज़ल एक कमज़ोर ग़ज़ल बन पड़ी है। आपको शिल्प पर बहुत मेहनत करने की ज़रूरत है, या फ़िर दुष्यन्त कुमार के जैसे तेवर रखिए।
पहली बार तुम्हारी ग़ज़ल पढी भाई हम तो दीवाने हो गए. इस धार को बनाये रखना. गुड लक
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