५वें स्थान के कवि हिन्द-युग्म के लिए बिलकुल नये हैं। पहली बार यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में भाग लिए जहाँ इनकी क्षणिकाएँ पाँचवें स्थान पर रहीं।
नाम: विनय के. जोशी
पिता: श्री केशव कान्त जोशी
शिक्षा: एम काम, सीएआईआईबी
नौकरी: एसडब्ल्यूओ, स्टेट बेंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुर न्यू फतहपूरा ब्रांच
उदयपुर (राजस्थान)
जन्म दिनांक: ०६/०४/१९५८
जन्म स्थान: उदयपुर
प्रारम्भिक एवं कालेज शिक्षा उदयपुर में । उदयपुर विश्वविद्यालय मे छात्र जीवन में सांस्कृतिक सचिव । आकाशवाणी के उदयपुर केन्द्र पर लगभग पांच वर्ष तक युववाणी कार्यक्रम प्रस्तुतिकरण एवं संचालन । ’एक शहर की दास्तां’, -’बंद’, -”यहीं सच है’, -”ये तो खेल नहीं’, ”तिमिर युद्ध’, आदि कई लघुनाटकों का लेखन निर्देशन ।
”दयाशंकर’, -”मुझे चांद नहीं होना’, -”गुलेल का कंकर’, -”बाउड्या सल्ला’, -”बजरबट्टू’, -”अवलम्ब’, -”खरपतवार’, -”चाप से परे’, -”चालान’, -”कन्यादान’, -”वट्ली’, -”दो भगौडे’, आदि कहानियां, अनैक कविताओं एवं लघुकथाओं का लेखन ।
दैनिक भास्कर, रसरंग, मधुरिमा, मेरी सहेली, बुध्दिदा, अनुभूति एवं बेंक की अनेक गृहपत्रिकाओं में प्रकाशन ।
कविता संग्रह ’आषिका’, एवं कथा संग्रह ’नब्बे प्रतिशत’, प्रकाशन प्रक्रियाधीन ।
श्रम मंत्रालय राजस्थान सरकार द्वारा बालश्रमिक विषयक लेखन पुरस्कृत ।
कहानी ’नब्बे प्रतिशत’ भास्कर रचनापर्व, दैनिक भास्कर द्वारा पुरस्कृत ।
लघुनाटक ’आखर बाबा’ जवाहर कला केन्द्र द्वारा वर्ष २००४ हेतु पुरस्कृत एवं मंचित ।
पता:
विनय के. जोशी
६२, भटियानी चौहट्टा
प्राकृतिक चिकित्सालय के सामने
उदयपुर (राजस्थान) ३१३००१
फोन : ०२९४ २४२१६१६ मो. ९८२९१९९०१६
E mail vinaykantjoshi@yahoo.co.in
आत्म-कथ्य
अनुभूतियां जब भावनाओं की सरिता में उतर जाती हैं तो मन को चारों ओर शब्दों के सुमन तैरते नजर आने लगते हैं । बस, एक-एक शब्द चुनते जाना है और माला पिरोते जाना है , फिर गांठ लगा देनी है । गांठ ........ यानी, वह दर्द या वह आनंद जिसने आंदोलित किया कुछ कहने को ।
सब कुछ बहुत सहज है, आवश्यकता है पूर्वाग्रहों - दुराग्रहों से मुक्त एक मन की ।
विनय के. जोशी
पुरस्कृत कविता- क्षणिकाएँ
(१)
सफ़ेद को
भगवा होने
की सूझी
लपक कर गया
मन्दिर मे
गुलाब से
टकराया
और
लाल हो गया
(२)
कछुआ
घास को
रौंदता हुआ
शर्मीली शबनम को
धमका रहा था
तभी डाली से
गिरी पीठ पर
नन्ही अमराई
और कछुए ने
हाथ पैर मुंह
समेट लिए
(३)
गुलाल ने
सिन्दूर बनने
का सोचा
चढ़ बैठी माथे पर
और मांग में
समां गई
पानी न रख पाई
गालों से बही
और कदमों मे
बिखर गई
(४)
फूल की
तितली बनने की
चाहत यूं पूरी हुई
बाग़ मे आई
ईक नन्ही बाला
बालों में लगाया
और उड़ गई
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के जजमैंट में मिले अंक- ८॰२५, ५॰५, ५॰४
औसत अंक- ६॰३८३३
स्थान- अठारहवाँ
द्वितीय चरण के जजमैंट में मिले अंक- ६॰५, ६॰३८३३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰४४१६
स्थान- पाँचवाँ
तृतीय चरण के जज की टिप्पणी-
मौलिकता: ४/२ कथ्य: ३/१ शिल्प: ३/॰५
कुल- ३॰५
स्थान- बारहवाँ
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
क्षणिकायें प्रभावी हैं। कुछ बिम्ब सहजता से गले नहीं उतरते जैसे “गुलाब से टकराया और लाल हो गया” “गालों से बही और कदमों में बिखर गयी”। क्षणिका-2 सबसे प्रभावी है।
कला पक्ष: ६॰४/१०
भाव पक्ष: ६/१०
कुल योग: १२॰४/२०
पुरस्कार- ऋषिकेश खोडके 'रूह' की काव्य-पुस्तक 'शब्दयज्ञ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
गुलाल ने
सिन्दूर बनने
का सोचा
चढ़ बैठी माथे पर
और मांग में
समां गई
पानी न रख पाई
गालों से बही
और कदमों मे
बिखर गई
--- क्या बात है
आप की रचनाएँ बहुत प्रभावी , गहरी है |
बधाई
अवनीश तिवारी
विनय कान्त जी बधाई । आपकी क्षणिकाएँ अच्छी लग रही हैं और इनमें जितना मैं समझ रहा हूँ उससे गहरा भाव है, यह साफ साफ प्रतीत हो रहा है परन्तु कुछ अंश के लिए मेरी भी यही राय है जो अन्तिम जज से मिलती जुलती है - कुछ बिम्ब सहजता से समझ में नहीं आ पाए जैसे “गुलाब से टकराया और लाल हो गया” “गालों से बही और कदमों में बिखर गयी”। दूसरी कविता जिनकी ओर संकेत करती है वे आए दिन आम जन से मिलते रहते हैं । किसी को सीधा-सादा पाकर शेखी बघारने लगते हैं और रौब जमाते हैं पर उनमें हिम्मत नाममात्र की होती है ।
विनय जी ,
आपकी क्षणिकायें बहुत अच्छी हैं । बड़ी ही सौम्यता से बड़ी बात कह जातीं है । और जरा भी गद्यात्मकता नहीं । पर इनमें वह 'पंच' नहीं जो क्षणिकाओं को कालजयी बनातीं हैं पर हाँ इनमें यह क्षमता जरूर है ।
कुछ बिम्ब स्पष्ट नहीं हैं ।
जोशी जी सबसे पहले तो हमारे परिवार में आपका स्वागत है,उसके बाद प्रशयोगिता में सफल प्रतिभागिता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं
बात करें आपके क्षनिकयेओं की तो मुझे दूसरी और तीसरी क्षणिका बहुत पसंद आई.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
badhai ho,sari sknikaye sundar ban padi hai.safed gulab se takraya aur lal ho gaya,phul ki titli anene ki chah wah.
क्षणिका क्रम अनुसार-
१-समझ नहीं आयी.गुलाब कई रंग के होते हैं-और गुलाब/ मन्दिर/टकराना????भगवा और लाल में रंग फर्क होता है ना?कौन सा रहस्य है--कृपया समझायें.
२-बहुत अच्छी लगी.
३-गुलाल ने
सिन्दूर बनने
का सोचा
[उसके बाद आपने लिखा है-'चढ़ बैठी माथे पर --'गुलाल ने सोचा--और बैठी?रह पाई ?बिखर गयी/????]
क्या मात्रा की ग़लती हैं??या यह भी मेरी समझ से परे-?
४- आसानी से समझ आ गयी.ठीक लगी-
आपकी क्रिश्निकाओ के बारे मै ये कहना चाहूँगा...
भाव पक्ष
१)दोहराव है... जैसे
"सफ़ेद को
भगवा होने
की सूझी"
"गुलाल ने
सिन्दूर बनने
का सोचा"
और
"फूल की
तितली बनने की
चाहत यूं पूरी हुई "
२) काव्य गुण- प्रसाद और शब्द्शक्ति - लक्षणा का प्रयोग उत्तम है . जैसे
" फूल की
तितली बनने की
चाहत यूं पूरी हुई
बाग़ मे आई
ईक नन्ही बाला
बालों में लगाया
और उड़ गई "
३) भाव बहुत गूढ़ है.. जो आसानी से समझ नहीं आते है... जैसे
"गुलाल ने
सिन्दूर बनने
का सोचा
चढ़ बैठी माथे पर
और मांग में
समां गई
पानी न रख पाई
गालों से बही
और कदमों मे
बिखर गई"
इस मै कवी कहना चाहता है की जिस तरह केवल चीनी का नाम ले लेने से मुह मीठा नहीं हो जाता.. उस प्रकार गुलाल केवल मांग मै भर कर सिन्दूर की जगह नहीं ले सकता...
कला पक्ष
१) शब्द चयन सुन्दर है.. पर विराम चिह्नों का प्रयोग नहीं है
२) क्रिश्निकाओ की लम्बाई संतुलित है
३)अछे मुक्तक का उदाहरण है
अगर किसी साहित्यिक शब्द का सही मतलब जानने के लिए कृपया यहाँ पढे...
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A4%BE
सादर
शैलेश
फूल की
तितली बनने की
चाहत यूं पूरी हुई
बाग़ मे आई
ईक नन्ही बाला
बालों में लगाया
और उड़ गई
"क्षणिकायें बहुत प्रभावी , गहरी , अच्छी हैं. बधाई हो
Regards
विनय जी नमस्कार,
स्वागत है आपका हिन्द-युग्म में,
क्षणिकायें सुन्दर है परंतु अन्य पाठकों की भाँति मैं भी रहस्यमय क्षणिकाओं से अछूता नहीं हू कृपया रहस्योदघाटन करें..
अंतिम क्षणिका बेहद पसंद आयी
विनय जी
बहुत ही बढ़िया लिखा आपने । विशेष रूप से-
बह
कछुआ
घास को
रौंदता हुआ
शर्मीली शबनम को
धमका रहा था
तभी डाली से
गिरी पीठ पर
नन्ही अमराई
और कछुए ने
हाथ पैर मुंह
समेट लिए
ुत ही सुन्दर । बधाई स्वीकरें ।
माननीय,
क्षणिकाएँ पर मूल्यवान टिप्पणियों हेतु आभार |
१} लाल हो गया ... अ. purity जब पाखंड के पीछे भागती है तो परिणाम कुछ और ही होता है |
ब. मार्ग जागरूकता उतनी ही आवश्यक जितनी लक्ष्य एकाग्रता |
२) गालों से बही ... कुपात्र की उपलब्धि स्थाई नही होती | गुलाल के लिए गाल ठहराव है परन्तु पानी की संगत मे क़दमों मे बिखरना पड़ा | पात्रता से अधिक की लालसा पतन का कारण
होती है |
vinay k joshi
प्रतीकात्मकता हावी है।
लेकिन सभी क्षनीकाएँ बहुत बढ़िया हैं। इतनी सुंदर क्षणिकाएँ इस मंच पर कम ही उपलब्ध हैं।
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