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Sunday, January 13, 2008

आहट.......


शब्द के इस तरफ़ आज का जगत
रूप,रस,गंध और स्पर्श का ...
शब्द के उस तरफ़ अकथनीय उपलब्धि
आदि हो चुकी हूँ गहराई में डूबे इस सत्य के साथ....

कभी
बंदूक की आवाज़ से रात गुजर जाती है
पंछियों की चीत्कार से रात का अन्धकार भी मिट जाता है
और कच्ची मिटटी खिसक जाती है घर से .......
कोहरा सिखा देता है
घर में रहनेवाले लोगों को उड़ने का संगीत .....

कभी
सरसों के फूलों से सज जाता है कीचड़ से सना वह रास्ता
किसी की आहट से हिल उठते हैं कोमल पत्ते
ढँक जाते हैं हरी दूब से
दो क्षण के लिए घर के छप्पर ......

शायद कोई आ रहा है
शब्द के मौन को तोड़ने के लिए
अद्भूत पीडा को समझने के लिए
तितली की उदासीनता को शब्दायित करने के लिए .....

सुनीता यादव
7.45 am

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

कभी
सरसों के फूलों से सज जाता है कीचड़ से सना वह रास्ता
किसी की आहट से हिल उठते हैं कोमल पत्ते
ढँक जाते हैं हरी दूब से
दो क्षण के लिए घर के छप्पर ......
--- बहुत सुंदर है |
बधाई....
अवनीश तिवारी

Anonymous का कहना है कि -

शायद कोई आ रहा है
शब्द के मौन को तोड़ने के लिए
अद्भूत पीडा को समझने के लिए
तितली की उदासीनता को शब्दायित करने के लिए .....

सुनीता जी बहुत ही प्यारी पंक्तियाँ
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

रंजू भाटिया का कहना है कि -

शायद कोई आ रहा है
शब्द के मौन को तोड़ने के लिए
अद्भूत पीडा को समझने के लिए

सुंदर लिखा है सुनीता जी आपने ..

Anonymous का कहना है कि -

shayad koi a raha hai,shabd ke maun ko thodne,sundar panktiya,badhai.

Alpana Verma का कहना है कि -

शब्द के इस तरफ़ और उस तरफ आज का जगत -उस से उपजी उदासीनता मगर फ़िर भी आशाओं का दमन न छोड़ने वाली कविता में भावाभिव्यक्ति का अच्छा प्रयास है.

seema gupta का कहना है कि -

शायद कोई आ रहा है
शब्द के मौन को तोड़ने के लिए
अद्भूत पीडा को समझने के लिए
" beautifully written n composed. really loved reading specially last paragraph,which is full of hope"

Regards

Mohinder56 का कहना है कि -

सुनीता जी,

कोमल भाव लिये.. सशक्त अभिव्यक्ति के लिये बधाई.

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुनीता जी,

बहुत उत्कृष्ट एवं गहरी रचना..

कभी
सरसों के फूलों से सज जाता है कीचड़ से सना वह रास्ता
किसी की आहट से हिल उठते हैं कोमल पत्ते
ढँक जाते हैं हरी दूब से
दो क्षण के लिए घर के छप्पर ......

बहुत भावयुक्त..

शोभा का कहना है कि -

सुनीता जी
बहुत प्रभावी लिखती हैं आप । पढ़कर आनन्द आ जाता है । एक-एक शब्द सटीक -
शायद कोई आ रहा है
शब्द के मौन को तोड़ने के लिए
अद्भूत पीडा को समझने के लिए
तितली की उदासीनता को शब्दायित करने के लिए .....

आपकी लिखनी को नमन

Soni का कहना है कि -

अति सुंदर ! कविता में आपकी भाव-अभिव्यक्ति बहुत गहरी है. कविता पढ़कर अच्छा लगा.
- सोनी, जर्मनी से

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