कई सारे प्रश्न आ रहे हैं और यें प्रश्न कुछ आगे के भी हो रहे हैं मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि आप अभी केवल आ के काफियों की ही बात करें क्योंकि अभी क्लास में वही चल रहा है आगे की बात करेंगें तो मैं भी भटक जाऊंगा और आप भी । हम समस्या और समाधान वाली पद्धति पर काम तो कर रहे हैं पर समस्या पाठ को लेकर ही रखें जैसे आज का पाठ आ की मात्रा के काफियों को लेकर है अत: आज के सवाल उसको लेकर ही आएं । वैसे पिछली कक्षा में कुछ प्रश्न आए हैं जिनके मैं उत्त्र दे रहा हूं । पर आज की कक्षा में उन ही प्रश्नों के उत्त्र लिये जाऐंगें जो कि विषय पर होंगें । अगर आपको मुझपर भरोसा है कि मैं आपको पूरा ही सिखाने आया हूं तो जल्दबाजी न करें । अभी से वज़्न की बात न करें जब हम वज़न निकालना शुरू करेंगे तब तो सिलसिला शायद महीनों तक चलेगा क्योंकि वही तो ख़ास बात है । अभी तो केवल बुनियाद ही डाली जा रही है ।
तो आज बात करते हैं उसी आ की मात्रा वाले क़ाफिये की, बात आधी ही रह गई थी आज हम उसी से आगे शुरू करते हैं । प्रश्न उठता है कि क्या आ की मात्रा वाला कोई भी क़ाफिया उठाया जा सकता है तो पहले तो हम ये जान लें कि कोई भी नहीं बल्कि सही वज़न का और सही तरीके का क़ाफिया ही उठाया जाए । और उसमें भी मतले में आपने क्या क़ाफियाबंदी की है वो भी देखा जाएगा । मतला आपकी ग़ज़ल का पहला शेर होता है और आपकी ग़जल में काफिया क्या होना है रदीफ क्या होना है ये वही तय करता है । मतले में अगर मिसरा उला में काफिया आया है चलता और मिसरा सानी में देखा तो ये तय हो गया कि आपका काफिया केवल आ ही है । मगर यदि मिसरा उला में काफिया आया है चलता और आपने सानी में ले लिया गिरता तो आपका काफिया हो गया ता और अगर मिसरा उला में काफिया आया है चलता और आपने मिसरा सानी में ले लिया छलता तो अब आपका काफिया हो गया लता ।
पहले बात मतले की की जाए पहले ही बता चुका हुं कि मतला ग़ज़ल का पहला शे'र होता है और ये ही तय करता हैं कि ग़ज़ल का क़ाफिया क्या होगा । इसलिये मतले को लिखते समय बहुत ध्यान रखा जाए कहीं कोई ऐसा क़ाफिया फंस गया जिसकी तुकें ज़्यादा नहीं हैं तो बाद में परेशानी होगी और फि़ज़ूल में भर्ती के क़ाफि़ये भरने पडेंगें । साहित्य में भर्ती के का मतलब होता है असहज शब्दों या विचारों का आ जाना । मेरे गुरू डॉ विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि कविता तो ताश के पत्तों के महल की तरह होना चाहिये जिसमें हर शब्द का महत्व हो अगर कोई भी शब्द हटाया जाए तो पूरा महल ही गिर पड़े, अगर कोई शब्द ऐसा है जो प्रभाव नहीं छोड़ रहा तो इसका मतलब वो भर्ती का शब्द है । तो बात मतले की अगर आपने मतले में शे'र कुछ यूं कहा कि
इतना क्यूं तू मिमियाता है
तू तो आदम का बच्चा है
तो बात साफ हो गई कि आप आ की मात्रा को क़ाफिया और है रदीफ बना कर ग़ज़ल कह रहे हैं और अब आप को आ की ही मात्रा को क़ाफिया देने की स्वतंत्रता हैं । मगर एक बात सीधी सी याद रखिये कि जो कुछ भी मतले में दोहरा लिया जाता है वो फिर क़ाफिये का हिस्सा न रह कर रदीफ जैसा हो जाता है ।
इतना क्यूं तू मिमियाता है
तू तो आदम का बच्चा है
अब इसमें आ की मात्रा ही क़ाफिया बन रही है क्योंकि मतला ये ही कह रहा है
मगर इसी मतले को अगर यूं कहा जाता कि
इतना क्यूं रे तू सच्चा है
तू भी आदम का बच्चा है
तो बाद बदल गई। अब तो आपको बच्चा कच्चा सच्चा टुच्चा जैसे काफिये तलाशने होंगें क्योंकि आपने तो अपने मतले में ही खुद को नियम में बांध लिया है । ये है असल में बात कि आपका मतला ही ग़ज़ल का भविष्य तय करता है ।
यदि आपने ऐसा कुछ मतला कहा
अंगड़ाइयां लेता है, आंखें कभी मलता है
आता है मेरी जानिब, या नींद में चलता है
अब यहां भी मात्रा तो आ की ही क़ाफिया है पर जो अंतर यहां पर आ गया है वो ये है कि आपने क़ाफिये में एक दोहराव लिया है और वो है लता अर्थात अब मतले के हिसाब से आपका क़ाफिया लता है और रदीफ़ है । अब आप आगे जो शे'र कहेंगें वो लता क़ाफिया लेकर ही चलेंगें आ की मात्रा नहीं चलने की अब । इसे मतले का कानून कहा जाता है ।
जैसे
कच्ची है गली उसकी, बारिश में न जा ए दिल
इस उम्र में जो फिसले, मुश्किल से संभलता है
मतलब बात वही है अब आप फंस गए हैं क्योंकि आपने ही मतले में मलता है और चलता है कह कर स्वीकार कर लिया था कि क़ाफिया लता है अब आपको ये ही लेकर चलना चाहिये ।
एक और ख़ूबसूरत शे'र देखें
हर शाम धनक टूटे, अंगों से महक फूटे
हर ख्वाब से पहले वो, पोशाक बदलता है
तो बात ये है कि आपका मतला तय करता है कि ग़ज़ल में आगे क्या होना है ।
एक और उदाहरण कुछ अलग तरह का देखें उर्दू अदब की आला शख़्सीयत जनाब मुज़फ्फर हनफ़ी साहब का मतला है
छत ने आईना चमकाना छोड़ दिया है
खिड़की ने भी हाथ हिलाना छोड़ दिया है
अब यहां पर क़ाफिया हो गया है आना जो कि संधि विच्छेद करने पर चमक:आना-चमकाना और हिल:आना-हिलाना है यहां पर भी आ की मात्रा तो हैं पर क़ाफिया तो मतले के हिसाब से आना है और अब आपको उसका ही निर्वाहन करना है । जैसा हनफी साहब ने किया है
चांद सितारे ऊपर से झांका करते थे
पागल ने इक और विराना छोड़ दिया है
अब आपको ये ही करना है । आज इतना ही आगे हम आ की मात्रा को लेकर और भी बातें करेंगें ।
वक़्त की गोद से हर लम्हा चुराया जाए
इक नई तर्ज से दुनिया को बसाया जाए
मेरी भी ये ही ख़्वाहिश है कि आप सब दुनिया को नई तर्ज से बसाने का प्रयास करें ।
प्रश्नोत्तर खंड :-
हमारे पेशेंस को आज़माकर, उन्हें मज़ा आता है
दिल को खूब जलाकर, उन्हें मज़ा आता है।
खूब बातें करके जब हम कहते हैं "अब फ़ोन रखूँ?"
बैलेंस का दिवाला बनाकर, उन्हें मज़ा आता है।
'उन्हें मज़ा आता है' रदीफ़ है और 'कर' (जलाकर, बनाकर, जताकर, खिलाकर, पिलाकर आदि) काफिया है। लेकिन एक कन्फ़्यूजन है। क्या इतना बड़ा 'उन्हें मज़ा आता है' रदीफ़ हो सकता है? यदि हाँ, तो क्या इतना बड़ा रदीफ़ रखना ग़ज़ल की सुंदरता की दृष्टि से ठीक है?
2) "ग़ज़ल तो केवल और केवल ध्वनि पर ही चलती है " इस से क्या आप ये कहना चाह रहे है क्या की, ग़ज़ल लिखते समय हमे पहले गा लेना चाहिए और उसके अनुसार हमे शब्द चयन तदनुसार मात्रा चयन ..
३) और गाते समय जहाँ जहाँ पर हम विराम लेते है वह पर ही हमे मात्रा क्रम निर्धारित कर है...
जैसे "मुहब्ब्त----" को आपने "ललाला......" पढ़ क्यों की आपने धुन के विराम के आधार पर अपने इस से इस तरह तोडा.. ( मु:1, हब्:2, बत:२)
४) मात्रा -> रुकन ->मिसरे ->शेर -> ग़ज़ल
५)बहर :- रुक्नों का एक पूर्व निर्धारित विन्यास ही होता है | जैसे " ललाला-----ललाला----ललाला------ललाला" लेकिन गणित के हिसाब से देखे तो यहाँ पर बहर और रुकन निशित संख्या के ही विन्यास संभव है... क्या सब तरीके के बहर बन चुके है? क्या कुछ विन्यास ऐसे भी है जिन से बन ही नहीं सकते.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
13 कविताप्रेमियों का कहना है :
"मगर यदि मिसरा उला में काफिया आया है चलता और आपने सानी में ले लिया गिरता तो आपका काफिया हो गया 'ता' "
उस्तादों का कहना है की चलता से और गिरता से 'ता' हटा दे तो चल और गिर बचता है जो समान तुक के शब्द नहीं हैं इसलिए काफिये नहीं बन सकते, आप का क्या कहना है? गुरुदेव स्पष्ट करें.
नीरज
aaj ke udharan ke taur par liye sher bahut achhe hai,samajh mein thoda aaya.koshih jari hai sikhane ki.
सर जी दिन पर दिन आपकी शिक्षा मजेदार होती जा रही है, सच कहूँ टू जब पहले दिन आपकी कक्षा में उपस्थित हुआ तो(बुरा मत मानिएगा) मैं बोर हो गया था,पर आज के दिन लगता है की मैं कितना बेवकूफ था,.
बहुत बहुत धन्यवाद सर जी
आलोक सिंह "साहिल"
आज के अच्छे और सुलझे हुए पाठ के लिए शुक्रिया.
सारे पाठ प्रिंट कर के रखने योग्य हैं.
वक़्त की गोद से हर लम्हा चुराया जाए
इक नई तर्ज से दुनिया को बसाया जाए
गुरूदेव आज के इस शेर में काफ़िया है आया और रदीफ़ है जाए...क्या यह सही है?
पंकज जी,
आपकी क्लास में अब खूब मन लगता है। इसी तरह हमें शिक्षा देते रहें।
गज़ल के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
-विश्व दीपक'तन्हा'
गुरु जी मै आपकी बात से सहमत हू.. क्यों की कक्षा मै मेरे जैसे बच्चे भी है.. जो थोडा देर से समझ पाते है,..
गुरु जी मेरे सवाल है
१) काफिया बनाते समय किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए ?
२) आप क्या केवल कुछ काफियो को बताएँगे या सब पर थोडा थोडा कुछ कहेंगे.. मुझे सबसे अच्छा आं वाला काफिया लगा की कम प्रचलित है और ग़ज़ल तो बहुत ही खूबसूरत बन गयी उस से...
३) क्या मतला शब्द चयन का भी कानून बना देता है .. जैसे.. अगर मतले मै हमने हिंदी शब्दों का प्रयोग किया है तो. सारी ग़ज़ल मै इस तरह होना चाहिए.. ग़ज़ल की सुन्दरता की दृष्टि से...
४) क्या रस छन्द अलंकार यहाँ पर भी ग़ज़ल की सुन्दरता बड़ा सकते है?
५) जो कुछ भी मतले में दोहरा लिया जाता है वो फिर क़ाफिये का हिस्सा न रह कर रदीफ जैसा हो जाता है ।
६) मेरे ख्याल से ये अच्छा हो सकता है की आप हमे कुछ क्रियाकलाप दे करने को आज के विषय पर ताकि हम उसे कार्यान्वित कर पाएं...
शुक्रिया
शैलेश
aaj hi is kakshaa ko bhi GhonT liya..........
agli ke intjaar main....... aapke naye vidhayarthi
saadar....
hem
गुरूजी
सादर प्रणाम
आप की कक्षा में मैं आज पहली बार उपस्थित हो रहा हूँ
और आज महसूस हो रहा हैं की इतनी देर से आ कर मैंने क्या खो दिया हैं
आप से जो ज्ञान प्राप्त हो रहा हैं वह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं
और भविष्य इस बात को सिद्ध भी कर देगा
शुभ कामनाओं सहित
विपिन चौहान "मन"
yadi aap swyam hii qanoon 'क़ानून' ko kanoon 'कानून' likhenge to doosaron ko siikhaana mushkil ho jaayega...
guru ji ye हज़ल kya hota hai kripya spashta kare.
अनंत व्यथा
एक कदम नहीं चल सकता
संसार पीछे छोड़ने की थी जिज्ञासा
आज अपाहिज बन बैठा
हाय कैसी है ये दुराशा
शिखर के छाती पर लिखा था अपना नाम कभी
आज उसे छू तक नहीं सकता
अब तो दर्शन भी दुर्लभ है लगता
अपना सर उठाओं भी तो कैसे
मुझ में अब वो बात नहीं दिखता
मैं अपने हिरदये की जवाला को
नैन रस से शांत करता
हर मोड़ हर गली में साजिश
सबकी निगाहें मुझपे जैसे
मैं बकडा, वो कसाई
अरे मुझे सीन्चो मुझे सजाओ
मैं विश्व का सबसे सुन्दर सबसे भिन्न फुलून वाला बगिया
जागो तुमने जिसे चुना है मेरा माली
वह स्वएं है सवार्थ का पुजारी
सब अवसरवादियों ने है पैठ बदहाली
कभी गुजरात कभी मुम्बई जैसे कांड से
अपनी मुकुट सजली
कितने कलियों की लालसा खिलने की थी
परन्तु इसके रक्षक ने दल ही काट डाली
बेचारी कलि तड़प तड़प कर मुरझा गयी
हाय! यह कैसा था माली
आश्चर्य, इन्होने भगवान् की शक्ति भी छिन्न कर डाला
अगर राम अयोध्या तक ही तो फिर नभ में कैसे फैला उजाला
यह कैसी श्रद्धा कैसा है प्रेम निराला
पालित ने ही पलक को निम्न बना डाला
यह एक नहीं ऐसे अनेक बादलों ने दीपक रोक
फैला रखा है अन्ध्यारा
अब तो मुझे मेरा मुकुट ही नहीं भाता
इसके रत्तन ने मुझ को ही घायल कर डाला
मैं असमंजस में! क्या मैं ही हूँ भारत
जिसने कबीर, भरत और नानक जैसे लाल को था पला
नबील खान
मेरे हिसाब से मुहब्बत की झूटी कहानी पे रोए गीत है ग़ज़ल नही जैसा अपने रदीफ़ में बताया क्योकि उसके अंतरे में तीन पंक्तिया है. १ न सोचा न समझा २ तेरी आरजू ने हमें ३ जिए तो मगर जिंदगानी पे रोए शरद तैलंग
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)