मैं उड़ गयी..
उस पिंजरे में सुराख कर,
मैं उड़ गयी...
बैठी हूँ अभी इस
छोटी पतली टहनी पर..
सहारा कमजोर सही
मेरा अपना है...
मुक्त हूँ उन बंधनों से,
खुले गगन में..
अब बस बिचरना है..
अब उड़ूँगी,बस उड़ूँगी
घटाओं से होकर,
पर्वतों के पार जाऊंगी....
टकराऊंगी बाधाओं से,
विघ्नों से...कई बार...
उन बाधाओं के पास..
फिर भी,बार-बार जाऊंगी...
ये मुक्ति, ये मेरा जीवन..
स्वतः ही इसमें
अब रंग भरुँगी...
पिंजरे में जो,
बंधे हुए हैं..
उन्हें अब मैं
आज़ाद करुँगी...
यूनिकवयित्री- दिव्या श्रीवास्तव
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
अब उड़ूँगी,बस उड़ूँगी
घटाओं से होकर,
पर्वतों के पार जाऊंगी....
टकराऊंगी बाधाओं से,
विघ्नों से...कई बार...
उन बाधाओं के पास..
फिर भी,बार-बार जाऊंगी...
"वाह, मुक्ती की अती सुंदर कल्पना '
Regards
पिंजरे में जो,
बंधे हुए हैं..
उन्हें अब मैं
आज़ाद करुँगी..
दिव्या जी, आपके विचार बहुत हीं सराहनीय हैं। उम्मीद करता हूँ कि ये यथार्थ में भी सही साबित हों।एक आशावादी रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
मुक्ति की कामना चिर कामना है
बैठी हूँ अभी इस
छोटी पतली टहनी पर..
सहारा कमजोर सही
मेरा अपना है...
पर क्या बन्धन का सुख, सुख नही, अपना नही....
बैठी हूँ अभी इस
छोटी पतली टहनी पर..
सहारा कमजोर सही
मेरा अपना है...
मुक्त हूँ उन बंधनों से,
खुले गगन में..
अब बस बिचरना है..
bahut khubsurat vivaran divyaji.mukt hun nile gagan mein udne ke liye,aasha se bharpur kavita,badhai ho.
'पिंजरे में जो,
बंधे हुए हैं..
उन्हें अब मैं
आज़ाद करुँगी..'
*बहुत सुंदर विचार,
आशावन कविता.
बधाई.
अब उड़ूँगी,बस उड़ूँगी
घटाओं से होकर,
पर्वतों के पार जाऊंगी....
टकराऊंगी बाधाओं से,
विघ्नों से...कई बार...
उन बाधाओं के पास..
फिर भी,बार-बार जाऊंगी...
बहुत ही सुंदर भाव हैं इस रचना के बधाई सुंदर लिखने के लिए !!
अब उड़ूँगी,बस उड़ूँगी
घटाओं से होकर,
पर्वतों के पार जाऊंगी....
टकराऊंगी बाधाओं से,
विघ्नों से...कई बार...
उन बाधाओं के पास..
फिर भी,बार-बार जाऊंगी...
जबरदस्त भाव, प्रभावी रचना,
बधाई
ये मुक्ति, ये मेरा जीवन..
स्वतः ही इसमें
अब रंग भरुँगी...
पिंजरे में जो,
बंधे हुए हैं..
उन्हें अब मैं
आज़ाद करुँगी...
बहुत ही उर्जावान आशावादी कविता
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
सुंदर आशावादी कविता ...
दिव्या जी !
बधाई |
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