समझो तलाशे इत्र है मछली बाज़ार में
मिलती नहीं जहाँ में वफ़ा यार प्यार में
दरिया के संग बह के समंदर में गिरेगा
परबत चढ़ेगा गर तू बहा उलटी धार में
उस जायके को सारी उम्र ढ़ूंढ़ते रहे
वो जायका जो था कभी माँ के अचार में
उसने है बड़े प्यार से दोनों को बनाया
तुमने ही डाला यार फर्क गुल में खार में
कालिख सी पोतती हैं नगर भर की चिमनियाँ
चेहरों पे अब न रंग बचा इस दयार में
बरसों बिताये हमने यही सोच सोच "नीरज"
आएगा लौट कर वो यकीनन बहार में
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
सर जी अकीदत क़ुबूल हो. और भी हैं, लेकिन इस शेर पे कुर्बान :
बरसों बिताये हमने यही सोच सोच "नीरज"
आएगा लौट कर वो यकीनन बहार में
कैसे करते हैं ऐसा कमाल आप ?
समझो तलाशे इत्र है मछली बाज़ार में
मिलती नहीं जहाँ में वफ़ा यार प्यार में
" बहुत खूब शेर बन पडे हैं , अच्छी लगी आपकी रचना"
Regards
उसने है बड़े प्यार से दोनों को बनाया
तुमने ही डाला यार फर्क गुल में खार में
bahut khub,halaki sare sher bahut sundar bane hai ye bahut pasand aaya.badhai..
ग़ज़ल में ख्याल अच्छे हैं.
दरिया के संग बह के समंदर में गिरेगा
परबत चढ़ेगा गर तू बहा उलटी धार में
बहुत अच्छा लिखा है आपने नीरज जी !!
नीरज जी,
बहुत ही उम्दा शेर हैं, सुन्दर रचना
बहुत बहुत बधाई
गोस्वामी जी, एक एक शेर लाजवाब, मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"
नीरज जी
बहुत ही खूबसूरत ख्यालों को पिरो कर आपने यह रचना लिखी है.. मुझे बेहद पसन्द आई
बधाई
उम्दा शेर...
उम्दा गज़ल..
बहुत बहुत बधाई
bahut sundar sir!!!!!!!!!!
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