हिन्द-युग्म के संगीत मंडली पूरे जोश में श्रोताओं के लिए नये-नये अंदाज़ के गीत तैयार कर रही है। अब तक सजीव सारथी ने सुबोध साठे, ऋषि एस॰ बालाजी, पेरूब, निरन कुमार, अमनदीप कौशल, जोगी सुरिंदर, ज्योति मुन्ना सोरेन आदि जैसे हीरे तलाशा। सुनीता यादव ने खुद के भीतर का गायिक और संगीतकारा को निखारा। शिवानी सिंह ने अपनी ग़ज़ल को रूपेश ऋषि की आवाज़ में और उन्हीं के संगीत में भिगोया और श्रोताओं का मनोरंजन किया।
इस बार निखिल आनंद गिरि ने संगीत के हीरे-जवाहरातों को तराशने का काम किया है। आज हम हिन्द-युग्म का ९वाँ संगीतबद्ध गीत आपकी नज़र कर रहे हैं। निखिल आनंद गिरि की ग़ज़ल 'इन दिनों' को अपनी आवाज़ दी है आभा मिश्रा ने। इस ग़ज़ल को संगीतबद्ध किया है खुद आभा मिश्रा ने। संगीत संयोजन आभा मिश्रा ने अवनीश कुमार के साथ मिलकर किया है। निखिल आनंद गिरि कितने कामयाब हुए हैं, ये तो आप श्रोता ही बतायेंगे।
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ग़ज़ल के शे'र-
युग्म के अब तक के स्वरबद्ध गीत आप यहाँ सुन सकते हैं -
सुबह की ताज़गी
वो नर्म सी...
ये ज़रूरी नही
तू है दिल के पास
एक झलक
बात ये क्या है जो
मुझे दर्द दे
सम्मोहन
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
तेरी रुखसत का असर हैं इन दिनों,
दर्द मेरा हमसफ़र है इन दिनों....
मर भी जाऊं तो ना पलकों को भिंगा,
हादसों का ये शहर है इन दिनों....
अब खुदा तक भी दुआ जाती नही,
" jitne acche words likhe hain, uttna hee meetha gaya gya hai, ek mdhur sangeet , ek meethe aavaj or ne gazal mey char chand lga diyen hai, beautiful"
Regards
बहुत अच्छे |
अच्छी कोशिश हुयी है "इन दिनों"
अवनीश तिवारी
saare geeton me mujhe yah sabse achchi lagi
तेरी रुखसत का असर हैं इन दिनों,
दर्द मेरा हमसफ़र है इन दिनों....
मर भी जाऊं तो ना पलकों को भिंगा,
हादसों का ये शहर है इन दिनों....
अब खुदा तक भी दुआ जाती नही,
wah ! ati madhur ,karnpriiya...abha u r really got a tremendous voice quality ...hats off to sajeev's team to find such diamonds ...congr8s!
ग़ज़ल -सभी शेर खूबसूरत हैं.
संगीत भी अच्छा है.
शोभा जी आप की मधुर आवाज़ और गायिकी भी बहुत पसंद आयी.
बहुत बहुत बधाई.
गीत सभी सुन्दर और कर्ण प्रिय है मगर सच कहूँ तो मुझे ये गीत ज्यदा भाया..
आभा की आवाज़ में निखिल के शब्द निखर के आये हैं, बेसिक धुन भी बहुत अच्छी है, अगर preludes और interludes पर थोडा और काम किय जाता तो और बढ़िया लगता, पूरी टीम को बधाई खासकर निखिल को बहुत बहुत आभार, वरना १० गीतों का सपना अधूरा रह जाता, आभा जी यदि इसी तरह ग़ज़लों को स्वर्बध करती रही, तो युग्म की महफ़िल में हर शाम दिलकश लगने लगेगी एक बार फिर बधाई
तेरी रुखसत का असर हैं इन दिनों,
दर्द मेरा हमसफ़र है इन दिनों....
मर भी जाऊं तो ना पलकों को भिंगा,
हादसों का ये शहर है इन दिनों....
अब खुदा तक भी दुआ जाती नही,
.......
'आभा' है साज ओ सुर की जब फैली हुयी
युग्म का माहौल भी बदला हुआ है इन दिनों
बेकरारी से 'निखिल' अब चुप रहा जाता नहीं
'कान्त' ए मौसम भी बदला हुआ है इन दिनों
बहुत ही सुंदर आवाज़ है आभा जी की ..गजल भी अच्छी लिखी है ..अब तक की सबसे बेहतर लगी यह !!
सुन्दर गज़ल और मीठी सी प्रस्तुति ....
बधाई !
MUNBHAAYE...GAZAL KE BOL BHI,DHUN BHI,ABHAA JI KI AAVAAZ BHI..SUNAATEY RAHEN YUN HI
Bahut hi achi ghazal hai.
निखिल भाई जी बहुत ही अच्छी गजल.आपको सभी साथियों सहित बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
Great tune! Haunting melody.congrats to the team.
तेरी रुखसत का असर हैं इन दिनों,
दर्द मेरा हमसफ़र है इन दिनों....
मर भी जाऊं तो ना पलकों को भिंगा,
हादसों का ये शहर है इन दिनों....
अब खुदा तक भी दुआ जाती नही
बहुत खूबसूरत अल्फ़ाज है मज़ा आ गया...आप सभी को ढेरो शुभकामनाएं...
क्या बात है निखिल,म रोज इस गजल को कई बार सुनता हूँ,फ़िर भी मन नही भरता,कमल का शब्द संग्रह है इस गजल मी , ऐसा लगता है की सीप मुह खोले खड़ा है और शब्द रुपी पानी की जो बूंद इसमे गिरती है बस मोती बन गई है ,और आभा इन मोतियों को बड़ी खूबसूरती से सजा कर एक माला बना दी है . मै "इन दिनों-२" का इंतजार कर रहा हूँ .
आपकी ये ग़ज़ल मुझे बहुत अच्छी लगी !
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