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Tuesday, December 18, 2007

कोमल बेल या मोंढ़ा



बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये
सुनकर लगा था कभी
जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये
बचपन से क्षीण परिभाष्य
हर दर, हर ठौर, भारित आश्रय
एक कोमल बेल सी मान
हर पल एक मोंढ़ा गढते
थक गई थी
अनदेखे
अनबूझे
अनचाहे
सहायक अवरोधों पर चढते चढते
फ़िर हुआ कन्या दान
एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त
परन्तु क्या बदला है
घर
गांव
अडोस-पडोस
अवलम्बन
बाकी सब वही है
एक बेल को उखाड कर
दूसरी जगह रोपा
एक भार दूसरे को सोंपा
बेल पनपेगी,
पल्लवित होगी
पर कौन जाने
कितनी सबल बनेगी ?
क्या जनेगी ?
कोमल बेल
या
मोंढ़ा
उसी से उसका आंकलन होगा
देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

फ़िर हुआ कन्या दान
एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त
--

बहुत खूब |
बेल , मोंढ़ा के माद्यम से बहुत सही प्रहार है समाज के कमजोरी पर |
बधाई

अवनीश तिवारी

seema gupta का कहना है कि -

एक बेल को उखाड कर
दूसरी जगह रोपा
एक भार दूसरे को सोंपा
बेल पनपेगी,
पल्लवित होगी
पर कौन जाने
कितनी सबल बनेगी ?
क्या जनेगी ?
कोमल बेल
" कितनी सहजता से आपने एक रिश्ते को कागज पर उतारा है, जिसका भविष्य अभी तै नही है: आप सब से मुजे बहुत कुछ सीखना है,. एक खूबसूरत रचना.

seema gupta का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
रंजू भाटिया का कहना है कि -

फ़िर हुआ कन्या दान
एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त

बहुत सुंदर लगी यह आपकी रचना ...बहुत खूबसूरती से आपने इस भाव को लफ्जों में बांटा है नए तरह से लिखी आपकी यह कविता बहुत ही अच्छी लगी ..!!

Sajeev का कहना है कि -

एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त
परन्तु क्या बदला है
घर
गांव
अडोस-पडोस
अवलम्बन
बाकी सब वही है
एक बेल को उखाड कर
दूसरी जगह रोपा
एक भार दूसरे को सोंपा
वाह मोहिंदर जी, पिछले कुछ हफ्तों से आपकी कविताओं में एक अलग ही महक नज़र आती है, एक अलग सी संवेदना,..... गहरा नजरिया

शोभा का कहना है कि -

मोहिंदर जी
ये पुरानी बातें हैं. अब ऐसा कोई नहीं मानता . आप आशंकित न हों.
अनबूझे
अनचाहे
सहायक अवरोधों पर चढते चढते
फ़िर हुआ कन्या दान
एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त
परन्तु क्या बदला है
अच्छा लिखा है . बधाई

Anonymous का कहना है कि -

बेल और modha के द्वारा जो सामाजिक सरोकार आपने उत्पन्न किए हैं वो काबिले तारीफ हैं.
मोहिंदर जी हर बार की तरह इसबार भी एक अच्छी रचना
बधाइयों समेत
आलोक सिंह "साहिल"

Harihar का कहना है कि -

काफी प्रभावित किया आपकी कविता नें
मोहिन्दर जी

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये
सुनकर लगा था कभी
जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये

एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त

एक बेल को उखाड कर
दूसरी जगह रोपा
एक भार दूसरे को सोंपा
बेल पनपेगी,
पल्लवित होगी
पर कौन जाने
कितनी सबल बनेगी ?

देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है

मोहिन्दर जी, आपकी यह रचना न केवल प्रभावित करती है अपितु कई एसे संवेदित करने वाले प्रश्न खडे भी करती है....काश कि उनके उत्तर होते।

बेहतरीन रचना की बधाई स्वीकारें।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Unknown का कहना है कि -

मोहिंदर जी

एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त

मित्रवर ! आपकी कविता भी अनोखी और उसका शिल्प भी. बहुत भाता है आप और भाई राजीव जी को सामजिक सन्दर्भ के इन 'यक्ष प्रश्नों' को काव्य में पिरोते हुए देखना. इस सन्दर्भ मैं मात्र इतना और जोड़ना चाहूंगा कि एक पक्ष कभी भी अपने दायित्व से मुक्त नहीं होता. हाँ उत्तरार्ध में अन्य पक्ष का वक्तव्य सही है कि वो दो हाथ युक्त हो जाते हैं. इस पीड़ा को और करीब से अनुभव करना चाहते हैं .....? तो अपने ठीक नीचे लिखी अमिता मिश्र 'नीर' की कविता 'चुप' पर मेरी प्रतिक्रिया पढ़ें ...... अस्तु एक और सामयिक रचना के लिए साधुवाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

मोहिन्दर जी,

लाजवाब रचा है आपने

बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये
सुनकर लगा था कभी
जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये

फ़िर हुआ कन्या दान
एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त

एक बेल को उखाड कर
दूसरी जगह रोपा
एक भार दूसरे को सोंपा
बेल पनपेगी,
पल्लवित होगी
पर कौन जाने
कितनी सबल बनेगी ?
क्या जनेगी ?
कोमल बेल
या
मोंढ़ा
उसी से उसका आंकलन होगा
देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है
- शब्द नही थे तो आप ही की कविता से अपनी टिप्पणी भर दी..

Avanish Gautam का कहना है कि -

मोहिदर भाई सही बात कही.

गिरिराज जोशी का कहना है कि -

मोहिन्दरजी,

यह होता है व्यंग्य! सचमुच मजा आ गया, जहाँ चोट करना चाह रहे थे, वहीं पर लगी है... मगर सवाल तो सवाल ही रह गया कि -

"...आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है"

बहुत-बहुत बधाई!!!

मजेदार!!!

अफ़लातून का कहना है कि -

कन्यादान पर चोट जरूरी है । गंगा और बैल दोनों का उदाहरण एक निर्गुण में है :
सूरत निहारूँ बन्दे ! कहाँ तोरा घर है?
गंगा नहाए से कौन नर तरी गए?
मेघवा न तरे जेकर जल ही में घर है । ।
कण्ठी झुलाए से,कौन नर तरी गए?
बरधा न तरे जे कर गले ही में हर है । ।

Shubhashish Pandey का कहना है कि -

kya baat hai aanand aa gaya,
koi kuchh bhi kahe par aaj bhi ye hota hai, thoda bahut badlav aaya hai par puri tarike se badlte badalte na jane kitne logo k liye ye kanyadan ek bhar k saman jaisa rahega jisse muqt hokar vo ganga nahayenge, aur agar janm se pahle pata chal gaya to ghar aane wali laxmi ka gala dabayenge

RAVI KANT का कहना है कि -

मोहिन्दर जी,
अच्छी रचना के लिए बधाई।

परन्तु क्या बदला है
घर
गांव
अडोस-पडोस
अवलम्बन
बाकी सब वही है
एक बेल को उखाड कर
दूसरी जगह रोपा
एक भार दूसरे को सोंपा

्सटीक अभिव्यक्ति।

Alpana Verma का कहना है कि -

**बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये
सुनकर लगा था कभी
जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये
--कैसा तीखा व्यंग्य है!

**'एक भार दूसरे को सोंपा'
खूब लिखा !
**देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है'
समस्या पुरानी मगर एक नए लिबास में ,एक नए शिल्प में प्रस्तुत की गयी है.
क्या करें ?इस का कोई समाधान भी दिखता नहीं है.
चुन चुन कर शब्दों को कविता में पिरोया गया है जिस से कुछ पंक्तियाँ बहुत कह पा रही हैं.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अभी का दुल्हा जिस रास्तों पर चल रहा है उससे तो यह नहीं लगता कि भविष्य का दुल्हा मुक्त रहेगा। गंगा ही नहायेगा। हाँ उस समय भी कोई नया मोहिन्दर उन दूल्हों से सवाल करेगा।

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