tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post6865997334148047619..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: कोमल बेल या मोंढ़ाशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-68107918316734033492007-12-23T10:55:00.000+05:302007-12-23T10:55:00.000+05:30अभी का दुल्हा जिस रास्तों पर चल रहा है उससे तो यह ...अभी का दुल्हा जिस रास्तों पर चल रहा है उससे तो यह नहीं लगता कि भविष्य का दुल्हा मुक्त रहेगा। गंगा ही नहायेगा। हाँ उस समय भी कोई नया मोहिन्दर उन दूल्हों से सवाल करेगा।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-28973454289290224992007-12-20T13:52:00.000+05:302007-12-20T13:52:00.000+05:30**बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहायेसुनकर लगा था कभीज...**बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये<BR/>सुनकर लगा था कभी<BR/>जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये<BR/>--कैसा तीखा व्यंग्य है!<BR/><BR/>**'एक भार दूसरे को सोंपा'<BR/>खूब लिखा !<BR/>**देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है<BR/>मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है'<BR/>समस्या पुरानी मगर एक नए लिबास में ,एक नए शिल्प में प्रस्तुत की गयी है.<BR/> क्या करें ?इस का कोई समाधान भी दिखता नहीं है.<BR/>चुन चुन कर शब्दों को कविता में पिरोया गया है जिस से कुछ पंक्तियाँ बहुत कह पा रही हैं.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-61594701071263349272007-12-19T21:49:00.000+05:302007-12-19T21:49:00.000+05:30मोहिन्दर जी,अच्छी रचना के लिए बधाई।परन्तु क्या बदल...मोहिन्दर जी,<BR/>अच्छी रचना के लिए बधाई।<BR/><BR/>परन्तु क्या बदला है<BR/>घर<BR/>गांव<BR/>अडोस-पडोस<BR/>अवलम्बन<BR/>बाकी सब वही है<BR/>एक बेल को उखाड कर<BR/>दूसरी जगह रोपा<BR/>एक भार दूसरे को सोंपा<BR/><BR/>्सटीक अभिव्यक्ति।RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-780274214951774332007-12-19T20:58:00.000+05:302007-12-19T20:58:00.000+05:30kya baat hai aanand aa gaya, koi kuchh bhi kahe pa...kya baat hai aanand aa gaya, <BR/>koi kuchh bhi kahe par aaj bhi ye hota hai, thoda bahut badlav aaya hai par puri tarike se badlte badalte na jane kitne logo k liye ye kanyadan ek bhar k saman jaisa rahega jisse muqt hokar vo ganga nahayenge, aur agar janm se pahle pata chal gaya to ghar aane wali laxmi ka gala dabayengeShubhashish Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12387872539295411324noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-80213200784608067232007-12-19T19:42:00.000+05:302007-12-19T19:42:00.000+05:30कन्यादान पर चोट जरूरी है । गंगा और बैल दोनों का उद...कन्यादान पर चोट जरूरी है । गंगा और बैल दोनों का उदाहरण एक निर्गुण में है :<BR/>सूरत निहारूँ बन्दे ! कहाँ तोरा घर है?<BR/>गंगा नहाए से कौन नर तरी गए?<BR/>मेघवा न तरे जेकर जल ही में घर है । ।<BR/>कण्ठी झुलाए से,कौन नर तरी गए?<BR/>बरधा न तरे जे कर गले ही में हर है । ।अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-38647367983841905292007-12-19T19:13:00.000+05:302007-12-19T19:13:00.000+05:30मोहिन्दरजी,यह होता है व्यंग्य! सचमुच मजा आ गया, जह...मोहिन्दरजी,<BR/><BR/>यह होता है व्यंग्य! सचमुच मजा आ गया, जहाँ चोट करना चाह रहे थे, वहीं पर लगी है... मगर सवाल तो सवाल ही रह गया कि - <BR/><BR/>"...आज का दुल्हा कल क्या कहाता है<BR/>मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है"<BR/><BR/>बहुत-बहुत बधाई!!!<BR/><BR/>मजेदार!!!गिरिराज जोशीhttps://www.blogger.com/profile/13316021987438126843noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-5550795730582740922007-12-19T16:33:00.000+05:302007-12-19T16:33:00.000+05:30मोहिदर भाई सही बात कही.मोहिदर भाई सही बात कही.Avanish Gautamhttps://www.blogger.com/profile/03737794502488533991noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-12191136870772456822007-12-19T13:57:00.000+05:302007-12-19T13:57:00.000+05:30मोहिन्दर जी,लाजवाब रचा है आपनेबेटी व्याही, तो समझो...मोहिन्दर जी,<BR/><BR/>लाजवाब रचा है आपने<BR/><BR/>बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये<BR/>सुनकर लगा था कभी<BR/>जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये<BR/><BR/>फ़िर हुआ कन्या दान<BR/>एक पक्ष<BR/>अपने दायित्व से मुक्त<BR/>दूसरा पक्ष <BR/>धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त<BR/><BR/>एक बेल को उखाड कर<BR/>दूसरी जगह रोपा<BR/>एक भार दूसरे को सोंपा<BR/>बेल पनपेगी,<BR/>पल्लवित होगी<BR/>पर कौन जाने <BR/>कितनी सबल बनेगी ?<BR/>क्या जनेगी ?<BR/>कोमल बेल<BR/>या<BR/>मोंढ़ा<BR/>उसी से उसका आंकलन होगा<BR/>देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है<BR/>मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है<BR/>- शब्द नही थे तो आप ही की कविता से अपनी टिप्पणी भर दी..भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-50189708893975487582007-12-19T13:21:00.000+05:302007-12-19T13:21:00.000+05:30मोहिंदर जीएक पक्षअपने दायित्व से मुक्तदूसरा पक्ष ध...मोहिंदर जी<BR/><BR/>एक पक्ष<BR/>अपने दायित्व से मुक्त<BR/>दूसरा पक्ष <BR/>धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त<BR/><BR/>मित्रवर ! आपकी कविता भी अनोखी और उसका शिल्प भी. बहुत भाता है आप और भाई राजीव जी को सामजिक सन्दर्भ के इन 'यक्ष प्रश्नों' को काव्य में पिरोते हुए देखना. इस सन्दर्भ मैं मात्र इतना और जोड़ना चाहूंगा कि एक पक्ष कभी भी अपने दायित्व से मुक्त नहीं होता. हाँ उत्तरार्ध में अन्य पक्ष का वक्तव्य सही है कि वो दो हाथ युक्त हो जाते हैं. इस पीड़ा को और करीब से अनुभव करना चाहते हैं .....? तो अपने ठीक नीचे लिखी अमिता मिश्र 'नीर' की कविता 'चुप' पर मेरी प्रतिक्रिया पढ़ें ...... अस्तु एक और सामयिक रचना के लिए साधुवादAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-13907167396715391572007-12-19T12:37:00.000+05:302007-12-19T12:37:00.000+05:30बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहायेसुनकर लगा था कभीजैस...बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये<BR/>सुनकर लगा था कभी<BR/>जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये<BR/><BR/>एक पक्ष<BR/>अपने दायित्व से मुक्त<BR/>दूसरा पक्ष <BR/>धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त<BR/><BR/>एक बेल को उखाड कर<BR/>दूसरी जगह रोपा<BR/>एक भार दूसरे को सोंपा<BR/>बेल पनपेगी,<BR/>पल्लवित होगी<BR/>पर कौन जाने <BR/>कितनी सबल बनेगी ?<BR/><BR/>देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है<BR/>मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है<BR/><BR/>मोहिन्दर जी, आपकी यह रचना न केवल प्रभावित करती है अपितु कई एसे संवेदित करने वाले प्रश्न खडे भी करती है....काश कि उनके उत्तर होते।<BR/><BR/>बेहतरीन रचना की बधाई स्वीकारें।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-5194534328653099502007-12-19T05:09:00.000+05:302007-12-19T05:09:00.000+05:30काफी प्रभावित किया आपकी कविता नेंमोहिन्दर जीकाफी प्रभावित किया आपकी कविता नें<BR/>मोहिन्दर जीHariharhttps://www.blogger.com/profile/07513974099414476605noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-70588765969412888332007-12-18T17:59:00.000+05:302007-12-18T17:59:00.000+05:30बेल और modha के द्वारा जो सामाजिक सरोकार आपने उत्प...बेल और modha के द्वारा जो सामाजिक सरोकार आपने उत्पन्न किए हैं वो काबिले तारीफ हैं.<BR/> मोहिंदर जी हर बार की तरह इसबार भी एक अच्छी रचना <BR/> बधाइयों समेत<BR/> आलोक सिंह "साहिल"Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1981410271982473532007-12-18T17:49:00.000+05:302007-12-18T17:49:00.000+05:30मोहिंदर जी ये पुरानी बातें हैं. अब ऐसा कोई नहीं मा...मोहिंदर जी <BR/>ये पुरानी बातें हैं. अब ऐसा कोई नहीं मानता . आप आशंकित न हों. <BR/>अनबूझे<BR/>अनचाहे<BR/>सहायक अवरोधों पर चढते चढते<BR/>फ़िर हुआ कन्या दान<BR/>एक पक्ष<BR/>अपने दायित्व से मुक्त<BR/>दूसरा पक्ष <BR/>धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त<BR/>परन्तु क्या बदला है<BR/>अच्छा लिखा है . बधाईशोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-3308131965397397422007-12-18T17:35:00.000+05:302007-12-18T17:35:00.000+05:30एक पक्षअपने दायित्व से मुक्तदूसरा पक्ष धन और दो अत...एक पक्ष<BR/>अपने दायित्व से मुक्त<BR/>दूसरा पक्ष <BR/>धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त<BR/>परन्तु क्या बदला है<BR/>घर<BR/>गांव<BR/>अडोस-पडोस<BR/>अवलम्बन<BR/>बाकी सब वही है<BR/>एक बेल को उखाड कर<BR/>दूसरी जगह रोपा<BR/>एक भार दूसरे को सोंपा<BR/>वाह मोहिंदर जी, पिछले कुछ हफ्तों से आपकी कविताओं में एक अलग ही महक नज़र आती है, एक अलग सी संवेदना,..... गहरा नजरियाSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-82515229650030447972007-12-18T15:50:00.000+05:302007-12-18T15:50:00.000+05:30फ़िर हुआ कन्या दानएक पक्षअपने दायित्व से मुक्तदूसरा...फ़िर हुआ कन्या दान<BR/>एक पक्ष<BR/>अपने दायित्व से मुक्त<BR/>दूसरा पक्ष<BR/>धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त<BR/><BR/>बहुत सुंदर लगी यह आपकी रचना ...बहुत खूबसूरती से आपने इस भाव को लफ्जों में बांटा है नए तरह से लिखी आपकी यह कविता बहुत ही अच्छी लगी ..!!रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35891235936588835432007-12-18T15:34:00.001+05:302007-12-18T15:34:00.001+05:30This comment has been removed by the author.seema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-86534122804592586892007-12-18T15:34:00.000+05:302007-12-18T15:34:00.000+05:30एक बेल को उखाड करदूसरी जगह रोपाएक भार दूसरे को सों...एक बेल को उखाड कर<BR/>दूसरी जगह रोपा<BR/>एक भार दूसरे को सोंपा<BR/>बेल पनपेगी,<BR/>पल्लवित होगी<BR/>पर कौन जाने <BR/>कितनी सबल बनेगी ?<BR/>क्या जनेगी ?<BR/>कोमल बेल<BR/>" कितनी सहजता से आपने एक रिश्ते को कागज पर उतारा है, जिसका भविष्य अभी तै नही है: आप सब से मुजे बहुत कुछ सीखना है,. एक खूबसूरत रचना.seema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-25875849443586998702007-12-18T14:59:00.000+05:302007-12-18T14:59:00.000+05:30फ़िर हुआ कन्या दानएक पक्षअपने दायित्व से मुक्तदूसरा...फ़िर हुआ कन्या दान<BR/>एक पक्ष<BR/>अपने दायित्व से मुक्त<BR/>दूसरा पक्ष <BR/>धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त<BR/>--<BR/><BR/>बहुत खूब |<BR/>बेल , मोंढ़ा के माद्यम से बहुत सही प्रहार है समाज के कमजोरी पर |<BR/>बधाई<BR/><BR/>अवनीश तिवारीAnonymousnoreply@blogger.com