आज बारी है पाँचवी कविता की और इस स्थान पर भी एक कवयित्री हैं। इस बार शीर्ष ५ कवियों में ४ कवयित्रियाँ हैं। कवयित्री पंखुड़ी कुमारी १ बार पहले भी प्रतियोगिता में भाग ले चुकी हैं, लेकिन इनकी कविता पहली बार प्रकाशित हो रही है। मिलते हैं इनसे और इनकी कविता से-
इनका जन्म बिहार के सीतामढ़ी जिले में हुआ। एम॰सी॰ए॰ की शिक्षा ग्रहण करने के बाद फ़िलहाल दिल्ली की एक कम्पनी में साफ़्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। लिखने का शौक इनको बचपन से रहा है। कॉलेज के मैगजिन में इनकी कविताएँ छपती रही थीं। कई कविताओं की सराहना भी हुई और पुरस्कार भी जीतीं।
पुरस्कृत कविता- बाल दिवस - किसके लिए
आया बाल दिवस
चर्चा हो गयी जरूरी।
बहस का मुद्दा क्या हो
बाल विकास या बाल मजदूरी॥
टी.वी. पे दिखे बच्चों के साथ पी.एम
अखबारों में आए सी.एम. के साथ बच्चे।
गरीब बच्चा साथ में नेताओं के संदेश
जगह-जगह टंग गए पोस्टर अच्छे-अच्छे॥
पर वो माँग रहा रेडलाइट पे सिक्का
जिसके लिए होगा लाखों का खर्चा।
जिसके खातिर भर दिये अखबारों के पन्ने
बाँट रहा वो बेख़बर चौराहों पे पर्चा॥
ये दिवस उसके लिए
जो बस-स्टॉप पर खड़ा है स्कूल जाने के लिए।
या फिर उसके लिए
जो है बस वहाँ बैग पहुँचाने के लिए॥
जो खरीद रहा है गुलाब
चाचा नेहरू का किरदार निभाने के लिए।
या जो बेच रहा गुलाब
बस अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए॥
जो बैठा है तोड़कर खिलौने को
छत पे उदास।
या जिसे खुद के टूटने का भी
ना हो आभास॥
जिसे सोने को अलग कमरा
और सुनाने को लोरी वाली रात।
या जिसे गाड़ियों की गूंज में
गोद में थपथपाता है फुटपाथ॥
वो जिसके लिए करता है कोई
मंदिर की सीढ़ियों पे पूजन।
या जिसे छोड़ गया कोई यहाँ
सीढ़ियों पर बिताने को बचपन॥
या फिर है बस एक दिवस
और दिवसों के जैसे।
जो आकर चला जाता और
रह जाते हालात वैसे के वैसे॥
ना कुछ बदलता है, ना कुछ सुधरता है
महलों में सींचता है, झुग्गियों में बिकता है।
तरस रहा गर बच्चा अपने बचपन के लिये
तो फिर यह बाल दिवस किसके लिये॥
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ६॰५
औसत अंक- ६॰७५
स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰५, ७॰४, ५, ६॰७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९१२५
स्थान- छठवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कविता का विषय, सहजता और सरलता प्रोत्साहन की अधिकारी है।
मौलिकता: ४/३ कथ्य: ३/३ शिल्प: ३/२॰५
कुल- ८॰५
स्थान- प्रथम
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता की शुरूआत तो कमजोर हुई है लेकिन अपने मध्य से अंत तक यह पाठक को बाँधने, झकझोरने, सोचने पर मजबूर करते हुए प्रभावित भी करती है।
कला पक्ष: ५॰५/१०
भाव पक्ष: ७/१०
कुल योग: १२॰५/२०
पुरस्कार- प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नक़ाबों के शहर में' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
पंखुड़ी जी बाल दिवस का जो रूप आपने प्रस्तुत किया है वह निश्चित तौर पर हिला देने वाला है.
विशेषकर येपंक्तियाँ -
ना कुछ बदलता है, ना कुछ सुधरता है
महलों में सींचता है, झुग्गियों में बिकता है।
तरस रहा गर बच्चा अपने बचपन के लिये
तो फिर यह बाल दिवस किसके लिये॥
आपकी जीतनी तारीफ़ करें वह कम है.
क्या हैं बाल दिवस मनाने के मायने,सिर्फ़ ढोंग करने का एक मौका मात्र..लोमहर्षक वर्णन एक बाल मजदूर का .
आप[की सफलता पेर मुबारकबाद समेत ढेरों साधुवाद
अलोक सिंह "साहिल"
yah mahaj ek sanyog hai ki pahli tippani meri hi hai.ummid karta hun mere tamaam ssthi mere vicharon se ittafak rakhenge.
alok singh "Sahil'
मित्रो, यह वीरत्व भाव के परम बोधक श्री रामधारी सिंह "दिनकर" जी का जन्म शताब्दी वर्ष है.
टू मेरी समझ से इस मौके पेर हमें कुछ विशेष अवश्य करना चाहिए.
उम्मीद करता हूँ मेरे इस सदर निवेदन पर आप अवश्य अपनी पैनी दृष्टि फेरेंगे.maaf kijiega mitron mujhe samajh nahin aa raha tha ki kahan par ise likhun to yahin par likh diya.
आपका
अलोक सिंह "साहिल"
पंखुडी जी पहले ते बता दूं कि आपका नाम मुझे बहुत पसंद आया और उससे ज्यादा आपकी कविता।
यथार्थ का एकदम सही चित्रण किया है आपने । किसी एक बच्चे के जीवन में कुछ खुशियाँ हम में से हर एक लाये तो कुछ बदलाव सकता है ।
४ थे छंद से अंत तक बहुत कड़े सवाल हुये हैं |
बाल श्रम टू अभी भी कायम है |
सुंदर रचना है बातों को पुनर्जीवित कराने के लिए और सबको सोचने पर और करने पर कहने के लिए |
बधाई |
अवनीश तिवारी
Pankhudi ji...bahut hi sateek baat ki hai aapne..bahut achhi aur prasangik prastuti...........anand
बहुत अच्छा विषय और बहुत प्रसंशनीय रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
पंखुड़ी जी,
कविता सहज होते हुए भी बहुत कुछ कहती है....थोड़ा शिल्प और निखर होता तो मज़ा आता....इस कविता को इनाम शायद इसके विषय को ध्यान में रखकर मिला होगा...
बधाई...
निखिल आनंद गिरि
पंखुड़ी जी, शुरुआत धीमी थी परन्तु जहाँ आपने सिक्के के दोनों पहलू दिखाने शुरु करे, निस्संदेह वहाँ से अंत तक कविता ने बाँध के रखा। बधाई स्वीकारें।
वो जिसके लिए करता है कोई
मंदिर की सीढ़ियों पे पूजन।
या जिसे छोड़ गया कोई यहाँ
सीढ़ियों पर बिताने को बचपन॥
बहुत अच्छा पंखुडी जी
shandar vishay, jabardast parakh samaj ki, kavita achhi ban padi hai, achhi rachna k liye sadhuvad
आपकी रचना सोचने को मजबूर करती है व बालदिवस के औचित्य को ललकारती है।
इसी तरह बेदार नज़रों से समाज को देखिये और लिखती रहिये, पंखुड़ी जी आपका नाम सचमुच बहुत सुंदर है
अनुराधा जी और साहिल जी के मत से में बिल्कुल सहमत हूँ- हम कब तक इस ढोंग को देखते रहेंगे? पंखुड़ी जी की कविता बालदिवस के औचित्य को ललकारती है।
यह मुद्दा पहले भी कई लोगों ने उठाया है-
कविता के रूप में भी पढ़ लिया-
लिखती रहीये-धन्यवाद
पंखुड़ी जी मुझे आपकी पसंद आई है क्यों की
१) बहुत कम कवितायेँ मैंने यहाँ पर बच्चो के लिए बनी है.. और आपकी उस पर कुछ नया पं और एक अच्छा सामाजिक सन्देश ले कर आई है.
२) गज़ब की तुकबंदी है.. मै अपने समूह सयोंजको से विनती करूँगा... इस कविता को भी सुरों मै ढाल कर पोडकास्ट पर प्रेषित करें
३) किवता मै जो भी आप कहना चाहती थी.. ये सन्देश हर पाठक को पहली बार पद कर ही मिल जायेगा.. क्यों की बहुत ही सरल भाषा प्रयोग किया गया है.. और सरल वाक्यों मै कहा गया है..
४) आपकी भाषा उपदेशात्मक है पर जो चित्रण किया है द्रश्यो का उस से पाठक के मन पर गहरा प्रभाव होगा.. अतः मै कहूँगा.. यहाँ पर आपने बहुत सही शैली का प्रयोग किया है...
बहुत बहुत बधाई... आप अपना काम जारी रखें
सादर
शैलेश
आपकी चिंता लाजिमी है, जब देश में इस तरह की विडम्बनाएँ हैं तो कलम क्या लिखेगी!
विकास जी, पाठक का अनुरोध पूरा किया जाये।
निज सम कोमल कोमलता से
भाव जगाती पंखुडी...
बाल दिवस सचमुच बच्चों का ?
आज समस्या बहुत बडी...
सुन कविता के तीक्ष्ण किनारे
आखों से अश्रुधार बही...
बाल-दिवस पर किंचित ही
कुछ बच्चों का अधिकार नही..
बच्चों का बचपन छिने नही
बस उनको सबका का प्यार मिले
बाल दिवस है तभी सार्थक
जब बच्चों को अधिकार मिले
-पंखुडी जी बहुत बहुत बधाई
लिखते रहें
नमस्कार
Hi Pankhuri,
really you are doing great job. aap software engineer hi nahi soft dil bachhoun ke bhi engineer ho. aapne bal dibas per to india ka ek pratyakh roop sab ke samne rkhha hai....
Meri traf se apko dher sari subh kamnaye...
Thank you,
Mukesh Kumar
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