वर्स हो या प्रोज़ हो
लिखना हमारा रोज़ हो
लेखनी को हर समय
अविराम चलना चाहिए!
तलवार का हो वार या
एटम का कोई वार हो
हर वार का उत्तर उन्हें
हर बार मिलना चाहिए।
हाथों में तेरा हाथ हो
हर क़दम तेरा साथ हो
इंसानियत को सिर्फ तेरा
प्यार मिलना चाहिए।
वसुधैव एक कुटुम्बकम
इस भाव को पूजेंगे हम
संसार रूपी वृक्ष को
फलदार मिलना चाहिए।
ये हवा जो निर्बंध है
इसमें बहुत दुर्गंध है
चलो "राघव" इस हवा का
रुख़ बदलना चाहिए।
लेखनी को हर समय
अविराम चलना चाहिए!
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
राघव जी
भाव बहुत बढ़िया है पर कविता के शब्दों पर भी थोड़ा ध्यान दें ।
ये हवा जो निर्बंध है
इसमें बहुत दुर्गंध है
चलो "राघव" इस हवा का
रुख़ बदलना चाहिए।
लेखनी को हर समय
अविराम चलना चाहिए!
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सुंदर रचना
अवनीश
राघव जी,
लेखनी को हर समय
अविराम चलना चाहिए!
बहुत सही!!
बिल्कुल सही सहमत हूँ राघव जी
लेखनी को हर समय
अविराम चलना चाहिए!
बिल्कुल सही कहा---कवि की लेखनी को कहाँ आराम?
कविता अच्छी लगी.सरल,सीधी सी कविता है
इस कविता को बच्चे भी आसानी से याद कर सकते हैं.
भुपेंदर जी आपका ये फ़र्ज़ अदयागी का अंदाज बहुत ही प्यारा लगा,
बहुत बहुत साधुवाद
आलोक सिंह "साहिल"
राघव जी,
कहते हैं लेखनी तलवार से भी ज्यादा धारदार होती है.. मगर वही लेखने जब पेट भरने के लिये चलती है तो उसकी धार कुन्द हो जाती है..
फ़लसफ़ो से कहां बदलते हैं रुख हवाओं के यारो
खून से मुस्तकबिल लिखे वो तलवार हमको चाहिये
बिलकुल मज़ा नहीं आया। तुकबंदी का केवल मोह है इस कविता में। कथ्य केन्द्रित तो बिल्कुल भी नहीं है इस कविता का
अपने चेहरे को ढक के आदमी
सच को सच न कह कर के आदमी
कब तलक गैर को तकलीफ देगा
खुद की नजरो मे एक दिन गिर जायेगा
आप जैसा जो गर कोई मिल जायेगा
सच मे जिस दिन कोई आप जैसा मिलेगा टू हकीकत सामने आ जायेगी
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