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Wednesday, December 12, 2007

होनहार बिरवान


कामिक्स पढ़ते साल गया बीता एक एक माह
होगी सो देखी जायेगी, थी किसको परवाह
थी किसको परवाह निकट आ गयी परीक्षा
परचा हो जाये लीक किसी तरह,दिल की इक्षा
फिरा पानी मनसूबे
कल सुबह के परचा की चिंता में डूबे
रटा फिर मॉडल पेपर
फिरें उसारे, घेर, कभी बैठे छ्ज्जे पर
जो कुछ किया याद, घुसा आधा ही मांथे
उसमें से भी निकल गया कुछ रस्ते में जाते
हम आठ मिनट हैं लेट, गेट पर जब बतलाया
घवराहट में बाँयां पैर, दाँये से टकराया
काने के ब्याह को सौ जोखिम, मेरी किसमत रूठी
हवड़ - तवड़ में चप्पल की फिर बद्दी टूटी
चप्पल हाथ में उठा पहुँचा गया कक्ष में अपने
सख्त रवैया देख नकल के टूटे सपने
मा.. मा.. मा.. मास्टर जी मेरी सीट आज पेपर है मेरा
परचा हाथ में लिया , पढ़ा तो हुआ अन्धेरा
लिखा, तांत्या टोपे संजीवन लाये थे
चाँद और सूरज हड़प्पा की खुदाई में पाये थे
दशकन्धर को राणा ने रण में दश बार हराया था
गब्बर ने हिन्द महासागर को जर्मन से मँगवाया था
कुतुबमीनार की जड़ों को देकर, यूरिया हमने बड़ा किया
हिमालय पर्वत को इलेक्शन में, निर्विरोध ही खड़ा किया
मोनिका ने जब हिरण्याकुश का, नीतिबद्ध बध किया था
सल्फ्यूरिक पर पोटा लगाकर, देश निकाला दिया था
गाँधी और युधिष्ठर का भी, बचपन संग-संग बीता था
खिले हुए फूलों पर रात में, मडराता एक चीता था
मन ही मन खुश हुआ परीक्षक, मेरे उत्तर देख देख
बोला इन सारे बच्चों में बस, होनहार है यही एक
अविलम्ब परीक्षक ने मेरे, सब के सब उत्तर छाँटे
जीरो नम्बर दिये फक्र से, बाकी के नम्बर काटे
घर पर पहुँचा रिजल्ट कार्ड तब, शामत मेरी आई बहुत
अभी तलक हैं याद हमें, पापा के वो थप्पड चांटे
पापा के वो थप्पड चांटे...
पापा के वो थप्पड चांटे...

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Alpana Verma का कहना है कि -

कहानी जैसी लम्बी कविता.लेकिन सरल और आसानी से समझ आगई .सारे तार जुड़े हुए हैं बड़ा रोचक अनुभव भी है.
आप को तो मजा नहीं आया होगा क्यूंकि आप को जैसा रिजल्ट वैसा इनाम भी मिल गया-
लेकिन हमें कविता की यह पंक्तियाँ पढ़ कर हँसी छूट गयी--
चाँद और सूरज हड़प्पा की खुदाई में पाये थे
दशकन्धर को राणा ने रण में दश बार हराया था
गब्बर ने हिन्द महासागर को जर्मन से मँगवाया था
कुतुबमीनार की जड़ों को देकर, यूरिया हमने बड़ा किया--------------------------

बहुत बढ़िया !!!

ऐसे और भी अनुभव हों तो जल्द बाँटे -इंतज़ार रहेगा--
शुभकामनाएं-

Sajeev का कहना है कि -

भूपेन जी हास्य रस के तो आप माहिर नज़र आते हैं, पढ़ते पढ़ते एक मुस्कराहट तैर जाती है लबों पर, और बीता बचपन याद आ गया, हालांकि कभी जीरो की नौबत तो नही आई पर फ़िर भी.... अब तो आपकी रचनाओं का इंतज़ार रहेगा

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत बहुत मजेदार ..हास्य रस आख़िर दिख ही गया यहाँ ..:)

लिखा, तांत्या टोपे संजीवन लाये थे
चाँद और सूरज हड़प्पा की खुदाई में पाये थे
दशकन्धर को राणा ने रण में दश बार हराया था
गब्बर ने हिन्द महासागर को जर्मन से मँगवाया था
कुतुबमीनार की जड़ों को देकर, यूरिया हमने बड़ा किया
हिमालय पर्वत को इलेक्शन में, निर्विरोध ही खड़ा किया...
बहुत बहुत अच्छी लिखी है ....बधाई आपको और साथ ही रहेगा आपकी अगली रचना का इंतज़ार ..

Avanish Gautam का कहना है कि -

बेचारा परीक्षक संकेत समझ नहीं पाया कि बच्चे में बडा हो कर कवि बनने के लक्षण पाये जाते हैं. :)

Anonymous का कहना है कि -

माँ बदौलत भूपेंद्र जी, पागल कर दिया आपने तो.आप तो बड़े प्रतिभा के धनि हैं.शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है की आपने आज मुझे कितना हंसाया.
Mindblowing,Crazyyyyy किया रे.
दिल की असीम गहराइयों से आपको ढेर सारा प्यार,मेरे प्यारे कवि
आपका प्रशंसक
आलोक सिंह "साहिल"

seema gupta का कहना है कि -

लिखा, तांत्या टोपे संजीवन लाये थे
चाँद और सूरज हड़प्पा की खुदाई में पाये थे
दशकन्धर को राणा ने रण में दश बार हराया था
गब्बर ने हिन्द महासागर को जर्मन से मँगवाया था
कुतुबमीनार की जड़ों को देकर, यूरिया हमने बड़ा किया
हिमालय पर्वत को इलेक्शन में, निर्विरोध ही खड़ा किया
मोनिका ने जब हिरण्याकुश का, नीतिबद्ध बध किया था
सल्फ्यूरिक पर पोटा लगाकर, देश निकाला दिया था
गाँधी और युधिष्ठर का भी, बचपन संग-संग बीता था
खिले हुए फूलों पर रात में, मडराता एक चीता था

its is really amazing, what a combination of whole indian history,"गाँधी और युधिष्ठर का भी, बचपन संग-संग बीता था" ykeen nahee hotta kee koee iss treh se bhee hasya kaveeta likh sekta hai, very very interesting. i have enjoyed a lot. with Regards

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

वाह भूपेंद्र जी,
पहले तो मैंने आपकी कविता पढ़ी नहीं थी, पर शैलेश जी से सुना कि आपने हास्य लिखा है तो पढ़ने से रहा नहीं गया। मजा आ गया सही में। वैसे कितने थप्पड़ पड़े आपको, ये आपने नहीं लिखा :-) ।
ऐसे ही हँसाते रहियेगा।

--तपन शर्मा

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मजेदार रचना भूपेन्द्र जी, बधाई स्वीकारें।

*** राजीव रंजन प्रसाद

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

वाह भैया आप तो खूब हँसा रहे हैं सभी पाठकों को। लगता है आपके लिए अलग से आवाज़ का भी इंतज़ाम करना होगा।

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

भूपेन्द्र जी
आपकी पंक्तिया पढ़ कर तो ऐसा लगा सचमुच मेरा कल एक्साम हो..
और उसका वो अनुभव बहुत अच्छा लगा.. क्या दिन थे.... आह !!!!!
आपकी कविता मै इसके अलावा
१) नयापन है
२)ये पंक्तिया पढ़ कर तो बहुत हंसी आई...
इतना मज़ा आया पढ़ने मै की बस पढता रहा बार बार ...

"तांत्या टोपे संजीवन लाये थे
चाँद और सूरज हड़प्पा की खुदाई में पाये थे
दशकन्धर को राणा ने रण में दश बार हराया था
गब्बर ने हिन्द महासागर को जर्मन से मँगवाया था
कुतुबमीनार की जड़ों को देकर, यूरिया हमने बड़ा किया
हिमालय पर्वत को इलेक्शन में, निर्विरोध ही खड़ा किया
मोनिका ने जब हिरण्याकुश का, नीतिबद्ध बध किया था
सल्फ्यूरिक पर पोटा लगाकर, देश निकाला दिया था
गाँधी और युधिष्ठर का भी, बचपन संग-संग बीता था
खिले हुए फूलों पर रात में, मडराता एक चीता था"
३) आपकी कविता इसके असली मुकाम तक पहुचती है.. जो ये है की
पाठक मै उत्सुकता बधाई की हर पंक्ति पढ़ने की लालसा बढाये..
४) मुझे बहुत प्रभावित किया ..और मै भी कुछ इस तरह की पंक्तिया लिखने की प्रेरणा ले रहा हूँ

मै आपको इसी तरह की अगली कविता की प्रतीक्षा कर रहा हूँ
सादर
शैलेश

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