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Wednesday, December 12, 2007

डॉ॰ मीनू पूछ रही हैं दोषी कौन?


प्रतियोगिता की आठवीं प्रस्तुति के रूप में हम डॉ॰ मीनू की कविता 'दोषी कौन' लेकर उपस्थित हैं। इन्होंने अपने बारे में ज्यादा नहीं बताया। दिल्ली की रहने वाली हैं। परामर्शदात्री, प्रसूति रोग विशेषज्ञ, प्रसूति-विज्ञान (एम॰एस॰) के रूप में इनकी पहचान है। शौकिया लेखन करती हैं और गरीबों को बेनामी तरीके से मदद कर सामजिक कार्य में लगी हैं।

पुरस्कृत कविता- दोषी कौन?

क्यूँकि यह 'सच'.....की एक नज्म है
इसलिए इसमें बहर काफिया नहीं है

मैंने देखा था गुलमोहर को कल रात
पत्ते लाल फूल कुछ उदास लगे आज

पीपल का पेड़ भी रात देर तलक था फड़फड़ाया
ऐसा क्या था उसने देखा जो दर्द न सह पाया

एक औरत को मेघ की तरह बरसकर खाली होते देखा
अपने ही गर्भ की बच्ची को लहूलुहान करते था देखा

उस माँ.....नहीं... नहीं..... औरत!
की आत्मा क्या नहीं कराहती होगी

क्या माँ ऐसी होती है..?
वही क्यूँ करती है जो आदमी है चाहता
वही क्यूँ करती है जो परिवार है चाहता

पुत्र प्राप्ति की चाह में भागते सदा
कौन है....... जो इन्हें देगा सजा

चलो शायर से ही पूछ लेती हूँ इक सवाल
सच बताना कौन है अपराध का जिम्मेदार

समाज या फिर केवल चिकित्सक !

खेल यह घिनौना नहीं होगा बंद
चाहे कितनी ही देर रखो डॉक्टर
को जेल में बंद

जो नामचीन आसानी से न बताएं मन की बात
उनसे भी पूछती हूँ.................... यह सवाल
कितने दामों में विदेश से ख़रीदा
'Y' क्रोमोसोम ......
कहते हैं ये कोई जुर्म नहीं..
मुझे पता नहीं
.......
वो बेचारी तो रक्त का एक कण थी
आई थी एक मृत्यु का हाथ छोड़
तुझसे रिश्ता जोड़ने
तुम मूक दर्शक बनी उसकी चीखों को सुनती रही...?
क्या माँ ऐसी होती है ?

कई बेटियाँ कह चुकीं
अलविदा !
अलविदा !
फेंक दी गयी हैं कई लाशें
बेटियों की
कुओं
तालाबों में
जला दी गयी हैं कई लाशें
बुझा दी गयी है आग
दफना दी गयी हैं मिटटी में

कोई तो अभिमन्यु आये
तोड़ दे...........चक्रव्यूह

थाम ले अदृश्य आंसुओं को

धू-धू करती चिताओं से
चिताओं की राख से
काई और शैवालों से
कुएँ के पत्थरों से
जिससे कि

शायद निर्वाण मिल सके हमें

चीख रही है
मिट्टी
मानो कह रही हो कि यदि मैं न रहूंगी
खुद से ही डरकर भाग जायेगा आदमी
कहाँ जायेगा ?
इश्वर ने जब उसे बनाया था तो वह
अंधी गुफा के बाहर सूरज के साथ
प्रकट हुआ था
..........शायद फिर उसी गुफा में
वापस चला जायेगा !!

जजों की दृष्टि-


प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰२, ६
औसत अंक- ६॰६
स्थान- छठवाँ


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰२५, ७, ६॰२, ६॰६ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰०१२५
स्थान- चौथा


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-विषय चयन ठीक है लेकिन माँ पर दोषारोपण ठीक नहीं। कवि का कार्य है कि वह समस्या के उत्स तक पहुँचे और फिर वहाँ से उसे खोले। प्रश्न के साथ उत्तर का भी जन्म हो जाता है। उत्तर को सटीकता में खोजना और उसे रचनात्मक अभिव्क्ति देना रचनाकार का काम है।
मौलिकता: ४/२॰५ कथ्य: ३/२ शिल्प: ३/२॰५
कुल- ७
स्थान- चौथा


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
सवाल गहरे हैं और सामयिक भी किंतु प्रस्तुतिकरण भ्रामक है। कविता का आरंभ बमुश्किल ही कविता से जुड़ता है और रचना अनावश्यक लम्बी है। तथापि रचना के सामाजिक सरोकार की भूरि-भूरि प्रसंशा की जानी चाहिये।
कला पक्ष: ४॰५/१०
भाव पक्ष: ६/१०
कुल योग: १०॰५/२०


पुरस्कार- प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नक़ाबों के शहर में' की स्वहस्ताक्षरित प्रति

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

मीनू जी डोक्टारी पेशे से होने की वजह से जो अंदर की बात का उद्घाटन आपने किया वह काबिले तारीफ है.बहुत कम कविताओं में आजतक ऐसे भावों को उकेरा गया है.
आपका यह प्रयास प्रशंसनीय है क्योंकि भ्रूण हत्या के सन्दर्भ में ऐसे बिम्ब पहली बार देखने को मिले
बहुत बहुत शुभकामनाएं और साधुवाद
अलोक सिंह "साहिल"

Alpana Verma का कहना है कि -

मीनू जी की कविता का विषय सामायिक है. कविता बिखरी हुई है , अनावश्यक रूप से लम्बी भी है.थोड़ा व्यवस्थित किया जाता तो और बेहतर हो सकती थी.
अब बात दोषी कौन?तो इस कुकृत्य में तो सभी की भागीदारी बराबर की है.आपने कहा कि 'खेल यह घिनौना नहीं होगा बंद
चाहे कितनी ही देर रखो डॉक्टर
को जेल में बंद '
मेरा यह मानना है कि बिना कानून के कहाँ लोग सुनते हैं?आप सुविधा दे रहे हैं इस लिए उपभोगता आ रहे हैं.जब सुविधा नहीं होगी तो संभवत ऐसे केस कम होंगे.डॉक्टर को बुद्धिजीवियों में माना जाता है अगर उन्ही से इस को रोकने की पहल नहीं होगी तो आम जनता तो गुमराह रहेगी.लड़के लड़कियों की जनसंख्या में जो असंतुलन हो गया है-उसका जिम्मा सभी को जाएगा.
''कोई तो अभिमन्यु आये
तोड़ दे...........चक्रव्यूह
थाम ले अदृश्य आंसुओं को ' आप की यह पंक्तियाँ आप की चिंता दर्शा रही हैं.और बताती हैं कि आप बेहद चिंतनशील हैं और इस क्षेत्र में शायद कार्यान्वित भी होंगी '
'चीख रही है
मिट्टी
मानो कह रही हो कि यदि मैं न रहूंगी
खुद से ही डरकर भाग जायेगा आदमी
कहाँ जायेगा ?'
आप कि दूरदर्शिता इन पंक्तियों में दिख रही ही.
लेकिन आप का प्रश्न 'दोषी कौन'एक बहुत बड़ी बहस का मुद्दा है-यहाँ मैंने अपनी व्यक्तिगत राय दी है.धन्यवाद .

Sajeev का कहना है कि -

भाई मुझे तो इसकी प्रस्तुति ही इस कविता की खासियत लगी..... बहुत ही नया पं है, कहने का अंदाज़ भी अच्छा है .... सुंदर प्रस्तिती .... बधाई

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

मीनू जी
बहुत बडी समस्या को उठाया है आपने बडे ही सशक्त शब्दों से..
सराहनीय...

रही बात दोष की तो दोष समजिक है और समाज सबसे मिलकर बना है.. सभी को जागरूक होना पडेगा तभी निदान सम्भव है..

Anonymous का कहना है कि -

मेरा यह मानना है कि बिना कानून के कहाँ लोग सुनते हैं?आप सुविधा दे रहे हैं इस लिए उपभोगता आ रहे हैं.जब सुविधा नहीं होगी तो संभवत ऐसे केस कम होंगे.डॉक्टर को बुद्धिजीवियों में माना जाता है अगर उन्ही से इस को रोकने की पहल नहीं होगी तो आम जनता तो गुमराह रहेगी.लड़के लड़कियों की जनसंख्या में जो असंतुलन हो गया है-उसका जिम्मा सभी को जाएगा.

Dekhiye, mujhe Hindi typing naheen aati, par jab mudda uchhlaa hai to avashya bolnaa chahenge. Vigyan ne humein bahut see suvidhayen dee hain. Unmein se prayah sabhee ka upyog, sadupayog va durupayog ho sakta hai.
Haan ye baat alag hae ki maanavta ka hanan sabse ghrinit karyon mein se ek hae. Main bhee bhroon/kanyaa hatyaa ke viruddha hoon. Par mera ye kahnaa hai ki chikitsakon ke paas jaate kaun haen; hum hi naa?

Aur phir jab mahila shishuvon ki sankhyaa kam ho jaatee hai to hum hi cheekhte chillate hain. Haal mein maine sunaa tha ki US mein Bharatiya mool ki mahilaa shishuwon ka janm US ke anya mahilaa shishuwon ki tulna mein kaafi kam hua hae (san 2005 aur 2006 ki sankhyiki ke anusaar). Yaani hum kitne bhi padhe likhe kyon naheen hon, humaaree maanasiktaa naheen badaltee.

Jahaan tak Doctoron ke anulagna hone kaa sawaal hae, kya ye wahi log naheen hain jinhe hum waisa naa karne par prataadit karte hain. Haan lalchee chikitsakon ko to sazaa milnee hi chahiye, par unke saath kyaa jinse netaon aur samaaj ke thekedaron ne yah kah kar ye ghrinit kaarya karwaya ho ki aapki clinic to kal naa rahegii Dr. Saaheb/Saahibaa; aur jub unhone wirodh karnaa chaaha to vaisa huaa bhi. Khoon khaulataa hae aise vinduwon par baat kar ke ki chikitsak ko mukhya roop se doshee karaar diyaa jataa hai.

Missile bhee badee kaam ki cheez hai, surakshaa ke drshtikon se; par kya unkaa durupayog naheen ho rahaa? Arey! Jaaiye, jaayiye, humein swayam ko sudhaarne deejiye, tab hum chikitsakon ko sudhaarenge.

Lamba uttar dene ke liye maafee chahtaa hoon par kyaa karoon, man shant naheen ho rahaa hai .


Doosree baat, hum mein se adhiktam; haan haan adhiktam; aaj bhee yahee maante hain ki kam se kam ek putra to hona hi chaahiye, mukhagni dene ke liye. What a shit!!!!!!!!

Aur naheen to "Vansh" chalane ke liye.

Doosree baat; Ramayan aur Mahaabharat Hindoo samaaj ke mool granth maane jaate rahe hain. Aisa nahin hai ki meree aastha unmein kam hae, par kahaan par in donon Mahakaavyon mein yah aashirvachan likhaa hai "Ptriwatee bhavah", "sau Putriyon ki Maataa/Pitaa ho", "Kanyaavan bhavah" ya unke samkaksh. Hum wahee seekhte hain jo samaaj aur pariwaar humein seekhata hae.

Aapka doshee chikitsak bhee aapke hi samaaj se aayaa hai. Use bhee jeene deejiye, aur Kripayaa haan kripayaa doosron ke gharon par patthar phenkne se pahle humein swayam ye dekhnaa chhahiye ki hamaaree khidkiyaan bhi sheeshon ki to nahin banee hai.

Atishayokti ke liye kshmaaprathee hoon.

Orkut par India naam se jo sabse badee community (community ID 370) hai, uske "forum" mein jaa kar yadi hum "infanticide" search karein to paayenge ki 70 se jyada parinaam aaye hain. Kripayaa unhein bhee padhein.

Main awastha, buddhee aur jaankaaree mein yahaan upasthit logon se kaafi chhota hoon; par yah baat mujhe kataee achchhee naheen lagtee ki hum aise vichaar chikitsakon ke baare mein rakhe.

Aur haan ye "mere bhi" vyaktigat vichaar hain

Alpana Verma का कहना है कि -

धन्यवाद पागल जी,
1-मैं आज भी अपनी राय पर पूरी तरह से अडिग हूँ .
2-आप की दलीलें अपनी जगह आप के हिसाब से सही हो सकती होंगी मैं कोई कमेंट नहीं करना चाहती .
3-गुर गाँव ' स्कूल शूट आउट के बारे में आपने सुना होगा ?रिवोल्वर आसानी से बच्चे मिल गयी जिससे उस ने अपने आक्रोश को अंजाम दे दिया ,वोही रिवोल्वर अगर लोक्ड होता तो आज अभिषेक जिंदा होता-
यह इसलिए बता रही हूँ कि-अगर सुविधा दी जायेगी तो उपभोक्ता मिलेंगे-और जिन चिकित्सकों ने इस घिनोने कार्य को पेशा बनाया है - मेरा कटाक्ष उन पर है--
राजनीती प्रभाव किसे कहाँ कैसे प्रभवित करता है यह यहाँ बहस नहीं है .
4-समाज की सोच को बदलने की जरुरत है- उस से मैं भी सहमत हूँ .
5-जो भी ऐसा कार्य करता है उस में महिला और उसके पति को भी सजा होनी चाहिये-जैसा की यहाँ यू ऐ ई का कानून है. यहाँ रहने वाले सभी लोगों के लिए 'गर्भपात [बिना मेडिकल कारण के] और उस की कोशिश भी पति और पत्नी दोनों के लिए दण्डनीय अपराध है.'
और इसलिए यहाँ ऐसे किस्से नहीं सुनने में आते-इसलिए कानून जरुरी है.
६-लड़कियों के surname शादी के बाद नहीं बदलने चाहिये- वंश के नाम वाली समस्या ही नहीं रहेगी.और ऐसा इस देश में होता है.यहाँ लड़की लड़के दोनों के नाम के पीछे पहले पिता का फ़िर दादा का और चौथा नाम काबिले का होता है.जो कभी भी बदलता नहीं है.लड़की कितनी बार बार शादी करे या तलाक़ ले ,मगर यह नाम कभी नहीं बदलता.इसलिए यहाँ लड़कियों के पैदा होने पर कभी कोई नहीं रोता-बल्कि खुश ही होते हैं.दहेज जैसी कोई चीज़ भी यहाँ नहीं है-

मेरा यही मानना है की जिन रिवाजों से हमें फायदा नहीं उनको त्याग दे ,और यह बहुत मुश्किल नहीं है-क्यों कि हमें लड़कियों को बचाना है-और भ्रूण हत्या को रोकना है.आगे और कुछ मैं नहीं कहूँगी -[ओरकुट और ऐसी और भी कई साइट्स इस देश में blocked हैं.बिल्कुल सही है क्यों कि यहाँ भी विकृत मानसिकता वाले लोगों को बढावा ज्यादा मिल रहा है -इसलिए आप के द्वारा बताई कोम्मुनिटी देखने की जरुरत नहीं समझती.
इन साइट्स से लाभ हैं मगर कम-]
please ye sabhi mere apne vichaar hain....sabhi sahmat hon jaruri nahin---धन्यवाद-

Alpana Verma का कहना है कि -

pagaal ji, aap awastha mein chote hain yah aap ki post ko padh kar pata chal raha hai-kyun ki aisa gussa yuvaaon mein hi hota hai-

main doctors ki respect karti hun aur sirf unhin par nishana kar rahi hun jo greedy aur selfish hain.
aasha hai aap apne apne gussey aur josh ko sakaratmak rukh denge.
take thing in a positive way.ek Badi bahan ki tarah request karti hun ki please do not use words like s--t ,u used in ur sentence.
aap apne apne gussey aur josh ko sakaratmak rukh denge -umeed hai.
shubhkamnayen.

Unknown का कहना है कि -

Very touching and very practical...
keep up ur spirit and continue writing on such realities of the society ..and ya let evryone know that what they have been doing is a crime....
there should be somethings which works in direction of arising one's soul and ur poem has the capacity...
continue with ur marvellous work..
All the best ..:-)

रंजू भाटिया का कहना है कि -

अच्छा लिखा है आपने मीनू जी ... यह समस्या सच में बहुत दुखदायी है अब कौन इसका जिम्मेवार है .? सब जागेंगे तभी इस समस्या का अंत होगा .किसी एक को दोष देना व्यर्थ है ...इस विषय पर बहुत लिखा है मैंने भी ..पर शायद अभी अपना संदेश हम लोगों तक पहुचाने में सफल नही हो रहे हैं ..सब शुभ हो यही कह सकते हैं .!! एक डाक्टर होने के नाते आपने इसको सही लिखा है...!!

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

सर्वप्रथम, मीनू जी इस तरह का विषय उठाने के लिये धन्यवाद। कविता काफी अच्छी है।
मुद्दे पर आते हैं :-)। भारत देश पर ही बात करूँगा। देखिये समाज की सोच को बदलना तो होगा ही। आदमी हो या औरत दोनों की सोच को। ये काम हमें ही करना है। पर मुझे लगता है भारत जैसे देश में काफी धीरे इसका असर होगा। पंजाब जैसा समृद्ध प्रदेश, लेकिन लिंग अनुपात सबसे कम। शर्मनाक है। समाज की सोच अपने समय पर बदलेगी लेकिन इसके अलावा कुछ कठोर कदम उठाने होंगे।
१) ऐसे डाक्टरों का लाइसेंस रद्द करो। उन्हें जेल में डालो। हालाँकि पुलिस भी निकम्मी है।पर इस बारे में बाद में सोचते हैं :-)
२) जो लोग लड़की को मरवाते हैं उनके खिलाफ कार्रवाही होनी चाहिये। कैसे होगी ये भी बाद का प्रश्न है। बात इतनी है कि कानून सख्त से सख्त हो। बस। लातों के भूत बातों से नहीं मानते। जी हाँ, हमें जब तक डंडा न पड़े हम नहीं सुधरते। आदत से मजबूर हैं।
३) हाल ही में मैंने सुना था कि दिल्ली सरकार एक ऐसी स्कीम ला रही है कि जब भी किसी के यहाँ कन्या १८ बर्ष की होगी उसे नगद राशि मिलेगी। हम लालची हैं, तो शायद लालचवश कन्या हत्या पर लगाम हो।
मेरे हिसाब से दोषी समाज है और हत्या रोकने के तरीके ऊपर हैं।
हाल ही में नवरात्र का त्योहार गया। उसके बाद मैंने एक कविता लिखी थी।
http://tapansharma.blogspot.com/2007/11/blog-post.html
समय मिले तो पढ़ियेगा।
धन्यवाद,
तपन शर्मा।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

छोटी कक्षाओं में विज्ञान पर एक निबंध लिखने के लिए दिया जाता था 'विज्ञान एक अच्छा नौकर मगर बुरा मालिक है" (Science is a good servent but a bad master) । सीधा मतलब है कि चाकू का इस्तेमाल सब्ज़ी काटने के लिए भी हो सकता है और गरदन काटने के लिए भी। यह इस्तेमाल करने वाले के ऊपर निर्भर है। लेकिन हाँ, वैज्ञानिकों को भी शायद ऐसी दिशा में सोचना चाहिए कि वो आविष्कार न ही किये जाये जिसके दुरूपयोग की संभावना अधिक हो।

मेरे विचार में ईमानदारी, विस्तृत सोच या महान सोच विद्यालयों में पढ़ने से नहीं आती, विदेश भ्रमण से नहीं आती वरण ये घर द्वारा मिले हुए संस्कार होते हैं। संस्कार व्यक्ति के अंदर धीरे-धीरे आसपास के वातावरण से आकार पाते हैं, जबकि भारत के अधिकतर परिवारों में, समाज के हरेक तबकों में स्त्रियों को ज़रूरी सम्मान व अधिकार नहीं मिलता तो पुरुष या स्त्री के लिए यह अंतिम सत्य जैसा बनता जाता है। हाँ, भारत में एक सामाजिक क्रांति की आवश्यकता है, वैचारिक क्रांति की आवश्यकता है।

पागल जी,

चाहे डॉक्टर हो आम व्यक्ति उसे दृढ़ प्रतिज्ञ होना पड़ेगा, तभी ये कुरीतियाँ सदा के लिए जायेंगी।

आपने रामायण, महाभारत या अन्य जितने भी पौराणिक ग्रंथों की बात उठाई, उससे मैं सहमत हूँ। इतिहास भी गवाह है कि उत्तर वैदिक काल के अतिरिक्त भारत में कभी भी स्त्रियों की दशा संतोषजनक नहीं रही। ज्यादातर वीरता के प्रसंग पुरूषों के नाम पर हैं। पौराणिक उल्लेखों में तो कम से कम दुर्गा, चण्डी आदि जैसी स्त्रियाँ हैं भी मगर धीरे-धीरे आप देखेंगे कि श्रुतियों और स्मृतियों ने इन्हें भी दफन कर दिया है।

लेकिन इन पर आसूँ बहाने के बजाय अपनी-अपनी सोच बदलकर नया भारत बनाने के लिए आपको आगे आना पड़ेगा। दूसरों की चिंता छोड़कर यदि आप खुद एक उदाहरण बन जाते हैं तो आसपास का अधिकतर जनमानस आपसे प्रभावित होकर आपका अनुसरण करेगा।

डॉ॰ मीनू जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने इतनी बढ़िया कविता दी और चर्चा छिड़ सकी।

Anonymous का कहना है कि -

ye ek swaal hai jo usi kokh se paida hua hai..jisse kisi aur ne janm lena tha....
shayad ye sawal usi kokh ke andhere mai palta hai jisme ..zindgi ka beej sans le raha hota hai....beej ko kuredne wale ye bhool jate hai...ki har beej mitthi ka mohtaaz nahi hota ...
kuch beej hawa..pani mai bhi apni jarh pakad lete hai....

ye swaal usi beej ka zudwaa hai...jo uske badle foot aata hai kokh se...

mai chahta hu ki ye sawaal
paida hone se pahle mar jaye
aur kokh ki beti
apni ma ki goud bhar jaye...

mai aapko badhayee deta hu..is sawaal ko zinda karne ke liye....
taki koe beti na paida ho
kokh mai marne ke liye......!!!!!!11

Anonymous का कहना है कि -

this is a very sensitive issue requiring impartial thinking by all of us together if we really feel concerned and responsible towards it.

it is surprising to see that everytime this issue surfaces up it invariably ends up generating a debate ! .... but why ?

because we are living in a divided society.

a society divided into two ... the 'fors' and the 'againsts'!

one part of us will always keep on setting glittering examples of the 'post-procedure' so called 'putrawatis' no matter what happens to the 'putriwatis' ..... whether the latter are tortured, divorced or burnt !!!

yes it happens this way .... and a doctor is the best witness to all this rather than being tainted a culprit !

having a biased opinion against doctors is absolutely unjustified and uncalled for.
i know it.
i mean it .
and i invite no debates on it....!
( with no intentions of offending the sentiments of any of my very revered readers and critics).

because .....
i hereby determine under an oath to myself that i shall never let a female foetecide happen in my family and pass on this wisdom to all my generation-nexts as the most precious wealth for them to inherit.

let us together once again commit ourselves to minding our ownselves rather than others ...... and the problem is solved .

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

मीनू जी मै आपकी कविता पर बस एक कविता के तोर पर ही टिपण्णी करना चौन्गा.,..
१) क्यों की एक दुसरे पर दोषारोपण करना अच्छा नहीं है.. ये सबका कर्तव्य है की आप अपने दायित्व समझे...
२) आपने संजीदा विषय चुना है.. और आपको अपना मत रखने का हक है..
३) कविता थोडी लम्बी हो गयी है

४) कविता मै कुछ द्रश्य काफी भयानक है जैसे
" कई बेटियाँ कह चुकीं
अलविदा !
अलविदा !
फेंक दी गयी हैं कई लाशें
बेटियों की
कुओं
तालाबों में
जला दी गयी हैं कई लाशें
बुझा दी गयी है आग
दफना दी गयी हैं मिटटी में "
५)आप जो कहना चाह रही हो उसमे भले ही दोषी कोई भी हो.. पर .. एक सन्देश बहुत अच्छा देती है.
बधाई
सादर
शैलेश

Anonymous का कहना है कि -

अल्पना वर्मा जी,
यह मैं ऊपर दिए हुए गूगल Gadget की मदद से टाइप कर लिख पा रहा हूँ.
जैसे आप अपने विचारों पर अडिग हैं, हर व्यक्ति को होना चाहिए. :)
परन्तु क्या अडिग होने से समस्या का समाधान होता है? केवल और केवल बहस बढ़ती है. मुझे भाई-बहन के पवित्र बन्धन में बाँधने के लिए धन्यवाद. आभारी रहूंगा जीवन भर.

एक छोटे भाई की तरह कह रहा हूँ; कि हम सबों को जागना होगा. और जब डॉ मीनू ने कह ही दिया है कि उनका उद्देश्य बहस प्रारम्भ करने का नहीं था; तो आज मिली एक वेब-लिंक यहाँ देना चाहूंगा:
http://www.nytimes.com/2007/12/23/world/asia/23skorea.html?_r=1&incamp=article_popular&oref=slogin

यदि हम देखें, तो यह कोरिया में भी ऐसा ही हुआ था. उनकी समस्या, हमसे भी गंभीर हो चुकी थी पर आज उनमें काफ़ी हद तक सुधार हो चुका है.

तात्पर्य यही है, कि हमें जागना है न कि किसी समुदाय विशेष को एक समूह में गालियाँ देनी है.
बस दोषी को सज़ा दीजिये, एक गाड़ी ख़राब निकले तो, उस कंपनी को कहना चाहिए न की सभी कंपनियों को दोषारोपित करना चाहिए.

धन्यवाद.
पागल

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