छ गया बन याद का कोहरा है वो
सबके चेहरों में निहां# चेहरा है वो
#निहां= शामिल
ध्यान से सुनकर मेरी रुदाद-ऐ-ग़म*
उसने हंस के कह दिया बहरा है वो
*रुदाद-ऐ-ग़म = दुःख भरी दास्ताँ
जिसको अपने हिस्से की बरसात दी
क्या पता था यार के सहरा है वो
सीधी सीधी जब सड़क थी साथ था
मोड़ पर आकर मगर ठहरा है वो
कट नहीं सकता मोहब्बत का शज़र+
जितना ऊपर उतना ही गहरा है वो
+शज़र = पेड़
बात कहने को तो मैं आजाद हूँ
होंट पर लेकिन लगा पहरा है वो
ताकते परचम को तुम पहचान लो
एक जुनू है जब कहीं फ़हरा है वो
"नीरज" हकीकत बस यही इंसान की
वक्त के हाथों में इक मोहरा है वो
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
ध्यान से सुनकर मेरी रुदाद-ऐ-ग़म*
उसने हंस के कह दिया बहरा है वो
Khoob
भावात्मक दृष्टिकोण से सारी गज़ल बहुत सशक्त है. छोटे-छोटे रूपकों के माध्यम से आपने ज़िन्दगी को बड़े ही प्रभावशाली तरीके से उकेरा है.कुछ अशआर निश्चय ही बहुत अच्छे बन पड़े हैं.
जिसको अपने हिस्से की बरसात दी
क्या पता था यार के सहरा है वो
इस सबके बावज़ूद गज़ल में कुछ शिल्पगत खामियाँ रह गई हैं, मसलन कुछ स्थानों पर लय अवरुद्ध होती है. इसी तरह कोहरा, चेहरा, बहरा का काफ़िया भी पूरी तरह जम नहीं पाया.
परंतु अपनी समग्रता में गज़ल पाठक पर प्रभाव छॊड़ने में सक्षम है.
वाह नीरज जी
बहुत बढ़िया गज़ल लिखी है आपने । आनन्द आ गया ।
बात कहने को तो मैं आजाद हूँ
होंट पर लेकिन लगा पहरा है वो
ताकते परचम को तुम पहचान लो
एक जुनू है जब कहीं फ़हरा है वो
बहुत अच्छे । बधाई
वाह बहुत खूब नीरज जी ...
सीधी सीधी जब सड़क थी साथ था
मोड़ पर आकर मगर ठहरा है वो
ताकते परचम को तुम पहचान लो
एक जुनू है जब कहीं फ़हरा है वो
खूब लगे यह ..बधाई
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
"नीरज" हकीकत बस यही इंसान की
वक्त के हाथों में इक मोहरा है वो
ध्यान से सुनकर मेरी रुदाद-ऐ-ग़म*
उसने हंस के कह दिया बहरा है वो --
बहुत अच्छा बना है.
अवनीश तिवारी
नीरज जी
छोटे बहर की सुन्दर गजल है... हर शेर अपनी छाप छोडता है. बधाई
प्रिये अजय जी
आप ने जो शिल्पगत खामियाँ बताई हैं वो बिल्कुल सही हैं.मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ . कई बार ग़ज़ल पूरी करने की हडबडी में हम ग़ज़ल के मूल रूप से खिलवाड़ कर बैठते हैं जो सही नहीं है. आशा करता हूँ की भविष्य में भी आप इसीप्रकार से मार्ग दर्शन करते रहेंगे.
नीरज
सीधी सीधी जब सड़क थी साथ था
मोड़ पर आकर मगर ठहरा है वो
वाह बढ़िया
वह नीरज जी क्या बात है! बड़े दिनों बाद आपकी गजल पद्गने को मिली, लेकिन मिली तो पूरे सबाब के साथ.
बधाई समेत
आलोक सिंह "साहिल"
बात कहने को तो मैं आजाद हूँ
होंट पर लेकिन लगा पहरा है वो
ताकते परचम को तुम पहचान लो
एक जुनू है जब कहीं फ़हरा है वो
क्या बात है .... बहुत खूब ! लगे रहिये ...
सुनीता यादव
ध्यान से सुनकर मेरी रुदाद-ऐ-ग़म*
उसने हंस के कह दिया बहरा है वो
कट नहीं सकता मोहब्बत का शज़र+
जितना ऊपर उतना ही गहरा है वो
वाह नीरज जी!
मुझे बहुत अच्छी लगी गज़ल। ऐसी गज़ल कभी कभी ही मिलती हैं पढ़ने को।
छा गया बन याद का कोहरा है वो
सबके चेहरों में निहां चेहरा है वो
नीरज जी बहुत बढिया.
नीरज जी
बहुत ही सुन्दर मिली आज पढ़ने को गजल
दिल भरा भरा हुआ आँख हो आयीं सजल
लोग सुन रुदाद-ऐ-ग़म ना जाने क्यूँ बहरे हुए
दूर जाते देखते, कुछ मोड़ पर ठहरे हुए
वक्त की चालों में फसना अब फसाना कर गुजर
आओ दिखा दें दोर को अब वक्त से आगे निकल
बहुत ही सुन्दर मिली.................
नीरज जी बहुत बहुत बधाई
बहुत बढिया गजल दी आपने
ध्यान से सुनकर मेरी रुदाद-ऐ-ग़म*
उसने हंस के कह दिया बहरा है वो
वाह! वाह! वाह!
बहुत खूब!
बहुत ही प्यारी सी ग़ज़ल पढने को मिली-
-धन्यवाद
नीरज जी,
एक प्रभावशाली गज़ल।
कट नहीं सकता मोहब्बत का शज़र
जितना ऊपर उतना ही गहरा है वो
बहुत सुन्दर!!
जिसको अपने हिस्से की बरसात दी
क्या पता था यार के सहरा है वो
इसमे अफ़सोस की क्या बात है?? सहरा को तो बरसात की सबसे ज्यादा जरूरत है(वैसे ये मेरा निजि विचार है, उम्मीद है अन्यथा न लेंगे)।
अंतिम शे'र में नयापन नहीं है। शेष पसंद आये। बधाई
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