बात सिसकियों की हो तो
बात सिसकियों की हो तो बात मेरी आएगी,
रुदन भी पूरा न हो तो जिन्दगी कहाएगी..
आँख से जो छलके न
वो वेदना मेरी ही है
शब्दों से जो लिपटॆ न
वो वेदना मेरी ही है
महफिलों के शोर में भी, मुझमे वो जीती रहे
हो तृषा न शाँत उसकी, मुझको ही पीती रहे..
हो अगर पीडा अमर तो बात मेरी आएगी
अब मेरे वेष मे रोज जिन्दगी रुलाएगी....
क्लांत हृदय की नफरतें
मोह जब करने लगे
शान्त चेहरे की पुतलियाँ
विद्रोह जब करने लगे
हो अचानक ऐसा कि, रास्तों सॆ भूल हो
पथिक जितना बढता रहे, मंजिलें उतनी दूर हों
हर अपराध की सजा नियति मुझको ही सुनाएगी
और मेरी मौत पर नई जिन्दगी रचाएगी...
ये तुम्हारी बात क्यों
हर बार रुक रुक जाती है
मुझसे कुछ कहती नही
ये पलके झुक झुक जाती हैं
मेरे अधूरे प्रेम का हिसाब तुमको देना है
मेरे बिन पूछे ही, जबाब तुमको देना है
इस अधूरे जगत मे पूर्णता मुझे ही अपनाएगी
तुम अधूरे ही रहे, यह बात तो रुलाएगी
अनघटी कहानियाँ भी मुझसे जुड जुड जाएगी
बात सिसकियों की हो तो बात मेरी आएगी
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छे भाव....बधाई...
ये तुम्हारी बात क्यों
हर बार रुक रुक जाती है
मुझसे कुछ कहती नही
ये पलके झुक झुक जाती हैं
मेरे अधूरे प्रेम का हिसाब तुमको देना है
मेरे बिन पूछे ही, जबाब तुमको देना है
इस अधूरे जगत मे पूर्णता मुझे ही अपनाएगी
तुम अधूरे ही रहे, यह बात तो रुलाएगी
अनघटी कहानियाँ भी मुझसे जुड जुड जाएगी
बात सिसकियों की हो तो बात मेरी आएगी
सुंदर भाव ...उत्कृष्ट रचना
सुनीता यादव
झकझोर कर रख दिया आपकी कविता ने
अंजलि जी
अंजलि जी! भावों की सशक्तता निश्चय ही पाठक को पूरी तरह बाँध कर रखने में सफल हुई है, परंतु कई स्थलों पर लय में अवरोध अखरता है.
भाव निश्चित ही बहुत अच्छे हैं, लेकिन लय में कहीं कहीं अवरोध है, जिसे दूर करने पर कविता और भी अच्छी हो जाती।
कविता दो हिस्सों में बंटी सी भी लग रही है।
'ये तुम्हारी बात...' से पहले अलग दिशा और इसके बाद अलग दिशा।
अंजलि जी सुन्दर रचना के लिये बधाई स्वीकार कीजिये।
हाय! अंजलि जी आपकी सिसकियों ने तो हमें भी सिसकने पर मजबूर कर दिया.
बहुत ही लाजवाब कविता.
शुभकामनाओं सहित
आलोक सिंह "साहिल"
अंजली जी,
छूटता प्रवाह लेकिन, छूटता प्रभाव है
शिल्प थोडा है मगर वृक्ष वट का भाव है
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भावपक्ष प्रबल है परंतु शिल्प में कहीं कहीं झरोखे दिख रहे हैं जिसकी वजह से प्रवाह बाधित है परंतु रचना प्रभाव पूर्ण है. बधाई
*अब मेरे वेष मे रोज जिन्दगी रुलाएगी....
*अनघटी कहानियाँ भी मुझसे जुड जुड जाएगी
बात सिसकियों की हो तो बात मेरी आएगी
बहुत अच्छे !
अंजली जी,आप की सरल भाषा आप की कविता का आकर्षण है.
भावों से भरी भरी यह कविता अच्छी लगी.
हो अगर पीडा अमर तो बात मेरी आएगी
अब मेरे वेष मे रोज जिन्दगी रुलाएगी....
अंजलि जी, बहुत सुन्दर भाव।
बहुत बढ़िया लिखा है। टंकण की शुद्धता का ख्याल रखें।
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