आज हम अक्टूबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में नौवें स्थान की कवयित्री सुनीता यादव का 'अथक प्रयास' लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हैं। पिछले ४-५ महीनों से वो लगातार हमारी इस प्रतियोगिता में भाग लेती रही हैं और हर बार उनकी कविताएँ टॉप १० में ज़रूर रही हैं। सुनीता यादव ने अपने अकेले के प्रयास से हिन्द-युग्म का नाम औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में हर जगह फैला दिया है। हिन्द-युग्म इनका सदैव ऋणी रहेगा। आज से ये हिन्द-युग्म की स्थाई सदस्य हैं और आगामी रविवार से अपनी कविताएँ प्रकाशित करेंगी।
नाम- श्रीमती सुनीता यादव
पति- श्री प्रेम यादव
जन्मतिथि- १२-११-१९७१
स्थल- ब्रह्मपुर, उड़ीसा
शिक्षा- बी. ए. (आनर्स) (हिन्दी),खालिकोट कॉलेज ,ब्रह्मपुर
एम.ए(हिन्दी),एम.फिल(हिंदी) (हैदराबाद विश्वविद्यालय)
अनुवाद डिप्लोमा(दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा,खैराताबाद,हैदराबाद),
बी.एड॰ (भारतीय शिक्षा परिषद्,लखनऊ)
रुचि- लेखन ( कविता, संस्मरण, नाटक, बाल-साहित्य-सृजन), पुस्तकें पढ़ना, गायन, तैराकी, मुसाफिरी व चित्रकला, हिन्दी व उड़िया के प्रति प्रेम के अलावा तेलुगु, बंगला, असमिया, मराठी व अंग्रेजी भाषाओं के प्रति लगाव
कार्य- १९९५ से १९९७ तक असाम में सांगी ग्रुप ऑफ़ इंडस्ट्रीज ( हैदराबाद) के पेपर विभाग जोगिगोपा में वेलफेयर ऑफिसर,
सन २००० से स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ऑफिसर्स असोसिअशन पब्लिक स्कूल ,औरंगाबाद,महाराष्ट्र में शिक्षिका के रूप में
कार्यरत,
२००६ से (२०११ तक) महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा ,पुणे-औरंगाबाद विभाग के विभागीय मनोनीत सदस्य
सम्मान:
महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा ,पुणे द्वारा आदर्श शिक्षक पुरस्कार (२००४)
जॉर्ज फेर्नादिश पुरस्कार(२००६)
अन्य:
केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा आयोजित हिन्दी नव लेखक शिविरों में कविता पाठ, आकाशवाणी औरंगाबाद से भी कविताओं का प्रसारण, परिचर्चायों में भागीदारी, गायन में अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत, २००५ में कत्थक नृत्यांगना कु.पार्वती दत्ता द्वारा आयोजित विश्व नृत्य दिवस कार्यक्रम का संचालन।
सम्पर्क-
sunitay4u@gmail.com
अथक प्रयास
हमारे भाग्य में लिखित
मायामृग के पीछे दौड़ने का
प्रागैतिहासिक विश्वास
कुछ पाने के मोह में खो चुके हैं हम
अपनी सभ्यता की परिचित पूँजी...
अविश्वास के अस्त्रों से
क्षत-विक्षत हो जाता है हमारा अहं
हाड़-माँस के इस जंगल में
छिपा लेते हैं हम अपनी सत्ता
चाहत में भी कुछ मौलिकता कुछ उद्दण्डता...
इस रंगीन साम्राज्य में
दूर कर रहे हैं हम
अपने आप को
अपनी ही खुशबू से.....
नये इतिहास की नींव डालने के लिये......
अंधपरंपरा का लोभ भी लिए
दौड़ लगाते हैं मायामृग के पीछे
कजरारे अंधकार में चाँदनी की धवलता को
खोजने के लिए जारी है
हमारा अथक प्रयास...
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६, ७॰५, ५॰२
औसत अंक- ६॰२३
स्थान- सत्रहवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰३, ५॰२
औसत अंक- ५॰२५
स्थान- चौदहवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- अच्छा प्रयास है। कविता लिखने का भी व अंधकार में चाँदनी खोजने का भी। टाईप में जरा देखभाल की लापरवाही रह गई है। हाँ, संधि के नियम भी एक बार देख लें। सम्भावनाएँ हैं।
अंक- ६
स्थान- छठवाँ
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कवि जो कहना चाहता है, वह कविता में कई स्थानों पर अस्पष्ट है। यद्यपि रचना आशावादी है और सोचपरक भी।
कला पक्ष: ५॰५/१०
भाव पक्ष: ६॰५/१०
कुल योग: १२/२०
पुरस्कार- डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुनीता जी,
अथक प्रयास का स्वागत है। हाँ इस प्रयास को एक सही दिशा देने की जरूरत है।
अविश्वास के अस्त्रों से
क्षत-विक्षत हो जाता है हमारा अहं
अहं को चोट लगे तभी अपनी क्षमताओं का सही आकलन हो पाता है।
सुनीता जी
... मोह में खो चुके हैं हम
अपनी सभ्यता की परिचित पूँजी...
कजरारे अंधकार में चाँदनी की धवलता को
खोजने के लिए जारी है
हमारा अथक प्रयास...
बहुत सुंदर...स्वागत,
शुभकामनायें
सुनीता जी आपका प्रयास अच्छा लगा..
बधाई ९ स्थान के लिए...
मैंने यह कविता ३ बार देखी
लेकिन ऐसा लगा की एक पंक्ती को तोड़ कर कई पंक्ती मी रचा है.
इसके अलावा कविता का भाव सुंदर है.
हर इतवार को आपकी रचा मिलेगी यह अछा है.
सुंदर....
अवनीश तिवारी
सुनीता जी आपका प्रयास अच्छा लगा..
बधाई ९ स्थान के लिए...
मैंने यह कविता ३ बार देखी
लेकिन ऐसा लगा की एक पंक्ती को तोड़ कर कई पंक्ती मी रचा है.
इसके अलावा कविता का भाव सुंदर है.
हर इतवार को आपकी रचा मिलेगी यह अछा है.
सुंदर....
अवनीश तिवारी
सुनीता जी आपका स्वागत हैं ..आपका लिखा पसंद आया भाव बहुत अच्छे हैं इस के !!शुभकामनायें
सुनीता जी !!
कजरारे अंधकार में चाँदनी की धवलता को
खोजने के लिए जारी है
हमारा अथक प्रयास...
अच्छी रचना....बधाई.
कजरारे अंधकार में चाँदनी की धवलता को
खोजने के लिए जारी है
हमारा अथक प्रयास...
सुन्दर बिम्बों का प्रयोग किया है आपने .
अंधपरंपरा का लोभ भी लिए
दौड़ लगाते हैं मायामृग के पीछे
कजरारे अंधकार में चाँदनी की धवलता को
खोजने के लिए जारी है
हमारा अथक प्रयास...
बहुत सुंदर........
हिंद युग्म का सदस्य बनने पर आपको बहुत बहुत बधाई|
सुनीता जी
मैने आपकी कविताएँ हमेशा पूर्ण उत्साह के साथ पढ़ी हैं । कारण- आप बहुत अच्छा लिखती हैं । यह कविता भी बहुत ही सशक्त है। भारतीयता के प्रति विश्वास जगाने में आप पूर्ण सफल रही हैं ।वर्तमान स्थिति पर आपकी चिन्ता बिल्कुल सही है ।
इस रंगीन साम्राज्य में
दूर कर रहे हैं हम
अपने आप को
अपनी ही खुशबू से.....
नये इतिहास की नींव डालने के लिये......
अंधपरंपरा का लोभ भी लिए
दौड़ लगाते हैं मायामृग के पीछे
कजरारे अंधकार में चाँदनी की धवलता को
खोजने के लिए जारी है
हमारा अथक प्रयास...
भाव के साथ-साथ भाषा भी प्रभावी है। हिन्द युग्म में आपका हार्दिक स्वागत है ।
शुरूआत की कुछ पंक्तियाँ ही बहुत प्रभावित करती हैं, और शायद वो ही अपने आप में एक दर्शन है। आपकी कविताओं की हमेशा यह विशेषता रही है कि उसमें सूक्ष्म दर्शन होता है, हाँ मगर भाषागत गलतियाँ भी होती हैं। लेकिन हमें उम्मीद है कि आप हिन्द-युग्म को कार्यशाला समझेंगी और एक दिन बिना किसी गलती के उपस्थित होंगी।
हिन्द-युग्म आज जिस जमीन पर खड़ा है, उसे तैयार करने में आपका बहुत बड़ा योगदान रहा है। अब जबकि आप स्थाई सदस्य हैं तो ज़रूर से ज़रूर यह नई ऊचाईयों को छूवेगा।
आपका हार्दिक अभिनंदन।
दौड़ लगाते हैं मायामृग के पीछे
कजरारे अंधकार में चाँदनी की धवलता को
खोजने के लिए जारी है
हमारा अथक प्रयास...
प्रसंशनीय रचना। हिन्द युग्म पर स्वागत है सुनीता जी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुनीता जी,
आपका स्वागत है... सुन्दर लिखा है आपने....शब्द व भाव दोनों प्रचुर है आप की झोली में... लिखते रहें... विराम न लें
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