दम ही ले लेगा मेरा, ये भोर का कुहरा,
दिल हुआ जाता है बेबस, बोझ से दुहरा....
हाथों को नही हाथ सूझते, बहुत घना है,
ऐसे में तुम आई हो, संतोष मिला है....
भर दो उजियारा, कर दो उल्लासित जीवन....
ओ सूरज की पहली किरण....
शब्द बहुत हैं, किन्तु नहीं होती अभिव्यक्ति,
ओ सूरज की पहली किरण, तुम देना शक्ति...
दो मुझे नवप्राण अपने अंक में भरकर,
ओढ़ भी लूं औ' बिछा लूं, प्रेम की चादर,
आओ! मैं तैयार हूँ सब करने को अर्पण....
ओ सूरज की पहली किरण...
खोल दो पट सुप्त मेरी चेतना के,
सुन सको तो सुन लो स्वर संवेदना के...
कल्पना में भर उषा की सब खुमारी,
तोड़ डालो तिमिर की मर्यादा सारी...
टूट जाये पाँव की बेडी करूं नर्तन.....
....ओ सूरज की पहली किरण.....
निखिल आनंद गिरि
+919868062333
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
16 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुंदर शब्द संयोजन है, बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, बधाई निखिल
उत्तम है
बधाई
अवनीश
खोल दो पट सुप्त मेरी चेतना के,
सुन सको तो सुन लो स्वर संवेदना के...
कल्पना में भर उषा की सब खुमारी,
तोड़ डालो तिमिर की मर्यादा सारी...
टूट जाये पाँव की बेडी करूं नर्तन.....
....ओ सूरज की पहली किरण.....
निखिल जी अच्छा लिखा है आपने।
खोल दो पट सुप्त मेरी चेतना के,
सुन सको तो सुन लो स्वर संवेदना के...
कल्पना में भर उषा की सब खुमारी,
तोड़ डालो तिमिर की मर्यादा सारी...
टूट जाये पाँव की बेडी करूं नर्तन.....
....ओ सूरज की पहली किरण.....
सुंदर...
शुभकामनायें
सुंदर भाव से सजी यह आपकी रचना निखिल मुझे बहुत पसंद आई इसकी यह पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर लगी !!
ओ सूरज की पहली किरण, तुम देना शक्ति...
दो मुझे नवप्राण अपने अंक में भरकर,
ओढ़ भी लूं औ' बिछा लूं, प्रेम की चादर,
आओ! मैं तैयार हूँ सब करने को अर्पण....
बहुत ही सुंदर...बधाई!!
दम ही ले लेगा मेरा, ये भोर का कुहरा,
दिल हुआ जाता है बेबस, बोझ से दुहरा....
किसी रचना की यदि शुरूआत उत्कॄष्ट हो तो पढने का मन दूना हो जाता है। आपकी इस कविता पर यही बात लागू होती है।
दो मुझे नवप्राण अपने अंक में भरकर,
ओढ़ भी लूं औ' बिछा लूं, प्रेम की चादर,
कल्पना में भर उषा की सब खुमारी,
तोड़ डालो तिमिर की मर्यादा सारी...
टूट जाये पाँव की बेडी करूं नर्तन.....
बहुत हीं सुंदर रचना है निखिल भाई। पढकर ऎसा लगा मानो सूरज मेरे दिल में उतर रहा है। आशा की सुबह सजाई है आपने। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
एक उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई स्वीकारें !!
आपकी पंक्तियों पर ऋग्वेद के "उषस् सूक्त" की यह ऋचा दर्शनीय है-
उषो वाजेन वाजिनी प्रचेता स्तोमं जुषस्व गृणतो मघोनि ।
पुराणी देवि युवति पुरन्धिरनुव्रतं चरसि विश्ववारे ॥
मैं यहाँ "तिमिर की मर्यादा" के बारे में जानना चाहूँगा. निखिल जी इसे मैं समझ नहीं पाया.
ओढ़ भी लूं औ' बिछा लूं, प्रेम की चादर,
आओ! मैं तैयार हूँ सब करने को अर्पण....
ओ सूरज की पहली किरण...
कल्पना में भर उषा की सब खुमारी,
तोड़ डालो तिमिर की मर्यादा सारी...
टूट जाये पाँव की बेडी करूं नर्तन.....
....ओ सूरज की पहली किरण.....
उत्कृष्ट रचना। बधाई निखिल जी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
निखिल जी,
उदासीनता से उल्लासता और हर्ष की और अग्रसित एक सुन्दर रचना के लिये बधाई...
शब्द बहुत हैं, किन्तु नहीं होती अभिव्यक्ति,
ओ सूरज की पहली किरण, तुम देना शक्ति...
सुन्दर..
तिमिर की कैसी मर्यादा। हाँ प्रकाश की मर्यादा होती है, जिसे त्यागने का आनंद की कल्पना मैं कर पा रहा हूँ। ज़रा स्पष्टीकरण दीजिएगा।
शब्द बहुत हैं, किन्तु नहीं होती अभिव्यक्ति,
ओ सूरज की पहली किरण, तुम देना शक्ति...
दो मुझे नवप्राण अपने अंक में भरकर,
ओढ़ भी लूं औ' बिछा लूं, प्रेम की चादर,
आओ! मैं तैयार हूँ सब करने को अर्पण....
ओ सूरज की पहली किरण...
बहुत खूब बड़े भाई.आनंदित हो गए हम.आज मुझे व्यक्तिगत तौर पर दोहरी खुशियाँ हासिल हुईं हैं,एक टू आपकी बिल्कुल ताज़ी और बेहतरीन रचना पढ़ने को मिली दूजी आज पहली बार मुझे हिन्दी में लिखने की सुविधा हासिल हुई है,मुझे उम्मीद है आप भी मेरी दूसरी वाली खुसी में शामिल होंगे .एक बार फ़िर बहुत बहुत बधाई
चेतना को जागृत करती हुई अद्भूत कविता.....
बहुब सुन्दर.....
dallas cowboys jersey
birkenstocks
cheap basketball shoes
san diego chargers jerseys
salomon shoes
adidas nmd
michael kors outlet store
lebron shoes
new york knicks jersey
michael kors outlet
ugg boots
new balance shoes
chicago bulls jersey
49ers jersey
skechers shoes
hugo boss suits
adidas nmd
saics running shoes
ugg outlet
ugg outlet
nike air force 1 low
birkin bag
golden goose
chrome hearts
nike huarache
yeezy boost 350
dior sunglasses
longchamp
asics sneakers
adidas pure boost
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)