१६ वें स्थान की कवयित्री सौम्या अपराजिता हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के बिलकुल नई हैं। जब नये प्रतिभागी हमारी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और हम उन्हें भी प्रोत्साहित कर पाते हैं, तब कहीं जाकर इस तरह के आयोजनों का उद्देश्य पूरा हो पाता है।
कविता - छोटी आँखें, बड़ा आकाश
कवयित्री- सौम्या अपराजिता,
मन में हो यदि स्निग्ध स्नेह,
तो क्या दूरी क्या पास,
छोटी आँखों में अट जाता,
इतना बड़ा आकाश.
अंतर में यदि कलुष, द्वेष
और मन में नहीं प्रकाश,
पास ही बैठे दूर बहुत हैं,
ह्रदय यदि नहीं साफ.
दृष्टि साफ हो, मन निर्मल हो,
हो श्रद्धा, भक्ति, विश्वास
मृत्यु दूर नहीं कर सकती
वो सदा हमारे पास
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰५, ६॰५, ७
औसत अंक- ६॰३३
स्थान- चौदहवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ४॰३, ५॰४
औसत अंक- ४॰८५
स्थान- सोलहवाँ
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
मन में हो यदि स्निग्ध स्नेह,
तो क्या दूरी क्या पास,
छोटी आँखों में अट जाता,
इतना बड़ा आकाश.
बहुत सुंदर भाव
बहुत सही, बहुत सुंदर.
इतने अच्छे विचार के लिए बधाई.
अवनीश तिवारी
सौम्या जी
अच्छे विचारों का प्रस्तुतिकरन है। कलम चलाती रहें, आपके भीतर एक विचारशील कवयित्रि है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
मन में हो यदि स्निग्ध स्नेह,
तो क्या दूरी क्या पास,
छोटी आँखों में अट जाता,
इतना बड़ा आकाश.
सौम्या जी,बहुत सुंदर भाव
सौम्या
बहुत सुन्दर भाव और भाषा ।
अंतर में यदि कलुष, द्वेष
और मन में नहीं प्रकाश,
पास ही बैठे दूर बहुत हैं,
ह्रदय यदि नहीं साफ.
बहुत सुन्दर लिखा है इसी तरह लिखती रहो । सस्नेह
।
सार्थक प्रयास. बधाई
नीरज
सौम्या जी सचमुच सौम्य कविता लिखी है अपने नामानुरूप..
मन में हो यदि स्निग्ध स्नेह,
तो क्या दूरी क्या पास,
छोटी आँखों में अट जाता,
इतना बड़ा आकाश.
सुंदर भाव
लिखते रहियेगा.. शुभकामनायें स्वीकार करें
बहुत सुन्दर लिखा है। लिखती रहें।
सुंदर लिखा है सौम्या जी ..भाव पक्ष इसका बहुत अच्छा है !!बधाई
मात्राओं को भूल जायें तो दोहे जैसे बन पड़े हैं। कम से कम अच्छा मुक्तक तो कहा ही जा सकता है। कोशिश ज़ारी रखें।
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