भागो तस्लीमा
कोई चूं भी न करेगा
कि मौकापरस्त जानते हैं
कब, कहाँ और कैसे आवाज़ उठानी है
कौन, किधर और किसका रेंता जाना है गला।
कोई चूं भी न करेगा
कि मौकापरस्त जानते हैं
कब, कहाँ और कैसे आवाज़ उठानी है
कौन, किधर और किसका रेंता जाना है गला।
जिस प्रदेश में
लाल झंडा रायटर्स दुर्ग पर लहराता है
उस सर्वत्यागी, बुद्धिधारी, सर्वज्ञों की सोच के शासन में
यह कोहराम?
और फिर सन्नाटा भी?
खुजेली दाढी वाले
दुम दबा कर निकल रहे हैं
विचारधारा की लाल पोटली कांख में दबाये।
मीडिया, गर्दभराज के मस्तक का सींग।
हाँ बुद्धूबक्से पर तुम्हारे हकाले जाने की खबर
यदाकदा चाट पकौडी बना कर परोसी जा रही है।
सुरजीत के सुर खो गये
और सर्वत्र-दर्शी सीताराम
राम ही जानें कहाँ हैं।
हे बुद्ददेव, हे ज्योतिपुंज
हे नास्त्रदमस की उत्तराधिकारी वृंद!!
यूं मार्क्स के शब्दों में अंगार लगा कर
कहाँ इस सर्दी में हाँथ सिक रहे हैं?
या कि धर्म की अफीम चख ही ली
आखिर वोट और विचार में
चरित्र और चेहरे जितना अंतर तो है।
तस्लीमा! तुमने सिद्ध कर दिया
कि विचारों की स्वतंत्रता
केवल माँ शारदा की नंगी तस्वीरें बनाने तक है
यही इस देश का असल धर्म-निर्पेक्ष चेहरा है
इसी तरह विचार खामोशी से सूली पर चढा दिये जाते हैं।
एक सुझाव है तस्लीमा
कि फिर वीजा मिलता भी रहेगा, बढता भी रहेगा
और मुफ्त में प्रवक्ता भी मिल जायेंगे
बदल कर अपना नाम तस्लीमा ‘राम’ रखना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
27.11.2007
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
48 कविताप्रेमियों का कहना है :
राजीव जी,
वर्तमान को भुनाने में आप माहिर हैं..चर्चित प्रसंग को कविता में ढालना सुगम कार्य नहीं है परन्तु आप इसे आसानी से निभा लेते हैं... सुन्दर कविता..
विचारधारा की लाल पोटली कांख में दबाये।
मीडिया, गर्दभराज के मस्तक का सींग।
यूं मार्क्स के शब्दों में अंगार लगा कर
कहाँ इस सर्दी में हाँथ सिक रहे हैं?
या कि धर्म की अफीम चख ही ली
आखिर वोट और विचार में
चरित्र और चेहरे जितना अंतर तो है।
एक सुझाव है तस्लीमा
कि फिर वीजा मिलता भी रहेगा, बढता भी रहेगा
और मुफ्त में प्रवक्ता भी मिल जायेंगे
बदल कर अपना नाम तस्लीमा ‘राम’ रखना।
बधाई
क्या बात है राजीव जी,
किसी भी प्रसंग को पैने शब्दों में ढालना कोइ आप से सीखे, शब्द कहूँ या जहर-बुझे शर
लाल झंडा रायटर्स दुर्ग पर लहराता है
उस सर्वत्यागी, बुद्धिधारी, सर्वज्ञों की सोच के शासन में
यह कोहराम?
और फिर सन्नाटा भी?
खुजेली दाढी वाले
दुम दबा कर निकल रहे हैं
विचारधारा की लाल पोटली कांख में दबाये।
मीडिया, गर्दभराज के मस्तक का सींग।
बहुत बढिया राजीव जी, बस एक थोडी बात जो नज़र आती है वह लय की कमी है.. अगर लयबद्ध तीर चलें तो सोने पर सुहागा हो जाये..
तस्लीमा! तुमने सिद्ध कर दिया
कि विचारों की स्वतंत्रता
केवल माँ शारदा की नंगी तस्वीरें बनाने तक है
यही इस देश का असल धर्म-निर्पेक्ष चेहरा है
इसी तरह विचार खामोशी से सूली पर चढा दिये जाते हैं।
तसलीमा का इस तरह कलकत्ता से निष्कासन बेहद चिताग्रस्त है, विचारों को आजादी और धराम्निर्पेख्सता की क़समें खाने वाले हमारे खाद्ददर नेताओं ने जिस तरह इस मुद्दे से कन्नी काट ली है यह इनके असली चेहरे को बेनकाब करता है, आपकी चिंता सराहनीय है, और व्यंग भी अच्छा........
प्रहार सही है.
सटीक है.
अवनीश tiwaree
राजीव जी
कविता बहुत अच्छी लगी,
चर्चित प्रसंग पर तात्कालिक टिप्पणी प्रभावी है
यह कविता आपकी पैनी दृष्टि व गहरी समझ का सबूत है।
नंदन बचेली, बस्तर
सही कहा सबने राजीव जी ..बहुत खूबसूरती से आपने इस को लफ्जों में ढाला है
एक सुझाव है तस्लीमा
कि फिर वीजा मिलता भी रहेगा, बढता भी रहेगा
और मुफ्त में प्रवक्ता भी मिल जायेंगे
बदल कर अपना नाम तस्लीमा ‘राम’ रखना।
बहुत ही सही सुझाव दिया है ..:)
मैं तस्लीमा नसरीन का दिल से प्रशंसक हूँ- उनके लेखन से ज्यादा उनकी हिम्मत के लिए। सच के लिए खुद को दाँव पर रख देने की कुव्वत बिरलों में ही होती है।
एक ऐसे समय में, जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक सच कहने वाली महिला को जगह नहीं मिल रही, सिर्फ़ इसलिए कि उसने एक धर्म की मान्यताओं के साथ तर्क करने की कोशिश की है।
अब मुस्लिम तो खून के प्यासे हैं ही, हिन्दू खामोश हैं क्योंकि दूसरों के मामले में वे क्यों बोलें?
छद्म धर्मनिरपेक्षता नंगी हो गई है और तस्लीमा के भागने के लिए जगह नहीं है...
राजीव जी, अगर आप यह न लिखते तो मैं लिखता। पता नहीं, इतना अच्छा लिख पाता या नहीं पर लिखता जरूर।
क्या हम ऐसा समाज कभी बना पाएँगे, जिसमें किसी तस्लीमा को सच बोलने पर जान का डर न हो और सब नपुंसकों की तरह देखते न रहें?
राजीव जी
आप हमेशा सामयिक विषय लेते हैं और उस पर खूब दिल लगाकर लिखते हैं ।
सुरजीत के सुर खो गये
और सर्वत्र-दर्शी सीताराम
राम ही जानें कहाँ हैं।
हे बुद्ददेव, हे ज्योतिपुंज
हे नास्त्रदमस की उत्तराधिकारी वृंद!!
यूं मार्क्स के शब्दों में अंगार लगा कर
कहाँ इस सर्दी में हाँथ सिक रहे हैं?
या कि धर्म की अफीम चख ही ली
आखिर वोट और विचार में
चरित्र और चेहरे जितना अंतर तो है।
ओज गुण से लबालब कविता के लिए बहित-बहुत बधाई ।
साहित्य और साहित्यकार को किसी भी सीमा में बांधना उचित नहीं है।तस्लीमा के साथ हुई ज्यादती कठमुल्लाऒं की चाल है। साथ ही एक नारी का इस तरह लिखना उनसे बर्दाशत नहीं हुआ। उससे भी ज्यादा अनुचित है तस्लीमा को लेकर मौकापरस्ती दिखाना और राजनैतिक हथकंडे अपनाना। राजीव जी पहले भी कई बार आप समसामयिक विषयों पर अपनी लेखनी चला चुके है ये वाकई प्रशंसनीय है।आपकी ये पंक्तियाँ खासी प्रभावी है-
तस्लीमा! तुमने सिद्ध कर दिया
कि विचारों की स्वतंत्रता
केवल माँ शारदा की नंगी तस्वीरें बनाने तक है
यही इस देश का असल धर्म-निर्पेक्ष चेहरा है
इसी तरह विचार खामोशी से सूली पर चढा दिये जाते हैं।
राजीव जी
कमाल का लेखन. कडुआ पर सच्चा.
बधाई
नीरज
बहुत ही खूब सूरत,
काव्य का शीर्षक देख ही लगा गया था कि आपके अलावा युग्म पर ऐसे विषयों पर लिखा किसी अन्य के बस की बात नही है। आपके प्रयास की प्रशंसा करता हूँ।
वाह!! क्या लिखा है!!
एकदम से धो डाला वाले अंदाज़ में!!
राजीव जी
तसलीमा पर इतनी त्वरित गति से लिखने के लिये आपका हार्दिक अभिनंदन. मैं प्रातः अपनी कविता पोस्ट करने के उद्देश्य से जैसे ही आन लाइन हुआ आपकी इस कविता को वहां देखकर उसके ऊपर कुछ भी पोस्ट न करूं आज के दिन, अभिव्यक्ति की पर्याय बन चुकी लेखिका और आपकी कविता के प्रति यही मेरा भावनात्मक आभार है.
जैसा गौरव, अनुराधा जी और शोभा जी सहित अन्य सभी मित्रों ने लिखा है, मैं पूर्ण रूप से सहमत हूं. स्रजनात्मक क्षेत्र में कभी गुरूदेव, बंकिम और शरत् जैसे साहित्यकारों की धरती पर तुष्टीकरण और वोट की तुच्छ राजनीति के चलते जो हो रहा है, गौहाटी जैसी घटना को भी उसी के आलोक में देखा जाना चाहिये. मन बहुत ही खिन्न था. आपकी रचना में मेरी अपनी भावनाओं को स्थान मिला है आभार .. !
साथ ही मेरा एक निवेदन युग्म के सुधी संचालकों से है कि प्रतियोगिता की कविता चूंकि पूर्व निर्धारित रहती हैं. अतः उन्हें जिस भी दिन पोस्ट करना हो तो प्रातः ही पोस्ट किया जा सकता है, ताकि तसलीमा जैसी रचना के ऊपर हम अधिकाधिक पाठकों को ध्यानाकर्षित कर सकें. आज यही मेरा उद्देश्य भी था. आशा है कि मेरा सुझाव इसी परिप्रेक्ष्य में लेंगे
सुरजीत के सुर खो गये
और सर्वत्र-दर्शी सीताराम
राम ही जानें कहाँ हैं।
हे बुद्ददेव, हे ज्योतिपुंज
हे नास्त्रदमस की उत्तराधिकारी वृंद!!
यूं मार्क्स के शब्दों में अंगार लगा कर
कहाँ इस सर्दी में हाँथ सिक रहे हैं?
या कि धर्म की अफीम चख ही ली
आखिर वोट और विचार में
चरित्र और चेहरे जितना अंतर तो है।
तस्लीमा! तुमने सिद्ध कर दिया
कि विचारों की स्वतंत्रता
केवल माँ शारदा की नंगी तस्वीरें बनाने तक है
यही इस देश का असल धर्म-निर्पेक्ष चेहरा है
इसी तरह विचार खामोशी से सूली पर चढा दिये जाते हैं।
राजीव जी, हिला दिया आपने तो.समसामयिक विषय पर इतना अनूठा काव्य वाकई काबिले तारीफ है.
मेरे शब्द कंकालों में इतनी ताकत नहीं है की मैं आपको इतने ही प्यारे शब्दों में काउंटर करूँ परन्तु साधुवाद देने का हक तो मुझे है और वो मैं करूँगा. आंग्ल भान्षा में मिन्द्ब्लोविंग.
साधुवाद सहित
अलोक संघ "साहिल'
अच्छी प्रतिक्रिया है
अच्छी और प्रासंगिक रचना है जो इस देश के नेताओं के दोगलेपन को उजागर करती है.
मित्रवर,
रचना तो अच्छी है। पर माजरा क्या है: कौन हैं ये महिला ? ( मुझे करन्ट ऐफ़ेयरस के बारे में कुछ अधिक नहीं पता ).
प्रकाश डालें
राजीव जी,
अच्छी कविता के लिए बधाई। सच है, लेखकीय स्वतन्त्रता, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, जैसे नेताओं के लिए बेकार की चीजें हैं। ईनसे उनका कुछ नहीं बनता, शायद इसीलिए।
फिर एकबार बधाई।
कुमुद अधिकारी।
wow kya sujhaav diya hai.....maza aa gaya.....
एक सुझाव है तस्लीमा
कि फिर वीजा मिलता भी रहेगा, बढता भी रहेगा
और मुफ्त में प्रवक्ता भी मिल जायेंगे
बदल कर अपना नाम तस्लीमा ‘राम’ रखना।
The best line...punch line
मीडिया, गर्दभराज के मस्तक का सींग।
हाँ बुद्धूबक्से पर तुम्हारे हकाले जाने की खबर
यदाकदा चाट पकौडी बना कर परोसी जा रही है।
यूं मार्क्स के शब्दों में अंगार लगा कर
कहाँ इस सर्दी में हाँथ सिक रहे हैं?
कि विचारों की स्वतंत्रता
केवल माँ शारदा की नंगी तस्वीरें बनाने तक है
बदल कर अपना नाम तस्लीमा ‘राम’ रखना।
राजीव जी,
बहुत हीं गहरा कटाक्ष है। बंगाल से तस्लीमा को निकाला जाना यहाँ की लोकतांत्रिक स्थिति का नग्न चेहरा दिखाता है।
इस कविता की इस लिए भी प्रशंसा की जानी चाहिए क्योंकि इसमें आपने कई सारे मुद्दों को जगह दिया है। इस कला में आप यकीनन माहिर हैं।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
बढ़िया कविता ... परन्तु जैसा कि भूपेन्द्र जी ने कहा अगर कविता थोड़ी और लय में होती तो सोने पे सुहागा होता।
"खुजेली दाढी वाले
दुम दबा कर निकल रहे हैं
विचारधारा की लाल पोटली कांख में दबाये।"
Bahut sahi baat aap ne likha hai.
Sukriya aap ka.
यदि कट्टरवाद का विरोध और सृजनकर्मियों की अभिव्यक्ति का समर्थन आपका सरोकार है तो इस कविता को हुसैन के पक्ष में भी बोलना चाहिए था. जबकि यहाँ हुसैन के विरोध में बाते हैं.
दोहरा मानदंड गलत है.
अवनीश जी
जो बात आप कह रहे हैं वही बात कविता भी कह रही है। एक की बात अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरे की......? दोहरा मापदंड रचना में नहीं हमारे समाज में ही है। मेरा प्रहार इसी सोच पर है। तभी तो कहा है मैनें कि:
एक सुझाव है तस्लीमा
कि फिर वीजा मिलता भी रहेगा, बढता भी रहेगा
और मुफ्त में प्रवक्ता भी मिल जायेंगे
बदल कर अपना नाम तस्लीमा ‘राम’ रखना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
राजीवजी, आपसे परिचय तो नही है. कविता के मध्यम से ही आपको जाना है. मैं भी आदरणीय तसलीमा नसरीन जी का बहुत बड़ा फेन हूँ.उनकी आत्मकथा के हिन्दी वर्सन के चारों भाग पढ़ चुका हूँ. सचमुच आप ने उनपर कविता लिख कर (जो बहुत ही सुंदर है) एक प्रकार से बुद्धिजीवी जगत का ध्यानाकर्षण किया है. यह बुद्धिजीवी जगत भी आजकल सुविधाभोगी और राजनितिक हो गया है.चाहते हुए भी सच की पैरवी हेतु खड़ा होने से पहले किसी की पहल का इन्तेजार करता है. कितनी ताज्जुब की बात है की बंगाल(जो कवि और लेखकों की उर्वरा भूमि है वहीं पर माननीय तसलीमा जी का विरोध हो रहा है. राजीवजी आपकी इस कविता के लिया साधुवाद. और मैं श्री गिरिराज जोशीजी का हृदय से आभारी हूँ की उन्होंने मुझे आपकी कविता को पड़ने के लिए प्रेरित किया उन्हें भी साधुवाद.
-----राम चरण वर्मा "राजेश"
अवनीश जी, मुझे आपत्ति है कि कोई एक मानसिक रूप से असामान्य Nymphomaniac बूढ़े के पक्ष में क्यों बोले?
आप एम.एफ. हुसैन और तस्लीमा की तुलना कैसे कर सकते हैं?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ सत्य कहना है पर मर्यादा का चीरहरण मात्र नहीं...
mudde ki bat hai
कभी-कभी लगता है कि आप वो लिख रहे हैं जो मैं कई दिनों से लिखना चाह रहा था...शायद अपरिपक्वता या समय अभाव के चलते नहीं लिख सका...... एक उम्दा रचना वही है जो हर पाठक को अपना बयान लगे....
इस लिहाज से आपकी ये रचना सफल कही जायेगी........
सबसे बड़ी बात कि जिस आडम्बर तले देश में एक "सुडो-विचारकों" की एक पौध खा-पचा रही है, आप उन पर चोट करते हैं, तो मुझे अच्छा लगता है....
हालांकि, शिल्प की दृष्टि से कविता में विशेष प्रभाव नहीं है, जिसकी आपसे उम्मीद की जाती है......
एक सच्ची रचना के लिए बधाई...
निखिल
राजीवजी !! समसामयिक विषयों को आधार बनाकर लिखना तो कोई आपसे सीखे!! अतुलनीय रचना.....बहुत बहुत बधाई...
हे नास्त्रदमस की उत्तराधिकारी वृंद!! -यहाँ "वृन्दा" के साथ "की" का प्रयोग सही होता, नहीं तो "के" उपयुक्त शब्द है.
पुनश्च, "यदि कट्टरवाद..........हुसैन के विरोध में बाते हैं.दोहरा मानदंड गलत है."
टिप्पणीकार महोदय!! क्या आप बता सकते हैं कि किस आधार पर आप तस्लीमा एवं हुसैन को एकसाथ रख रहे हैं? तस्लीमा का विरोध करने वाले क्या "लज्जा" लिखने के कारण ही उसका विरोध नहीं कर रहे हैं? हिन्दुओं के ऊपर हुए अत्याचार का वर्णन छोड़कर आखिर तस्लीमा ने लिखा क्या है? क्या उन्होने पैगम्बर और अल्लाह के ऊपर कुछ भी आपत्तिजनक बातें लिखीं हैं?
और हाँ, जहाँ तक हुसैन साहब के समर्थन में आपकी आवाज उठाने की की बात है तो शायद उनके द्वारा जनमानस की आस्था में विद्यमान देवी-देवताओं के बनाए गए नग्नचित्रों से प्रभावित होना तो नहीं !!
अस्तु, ये पंक्तियाँ अच्छी लगीं-
तस्लीमा! तुमने सिद्ध कर दिया
कि विचारों की स्वतंत्रता
केवल माँ शारदा की नंगी तस्वीरें बनाने तक है
यही इस देश का असल धर्म-निर्पेक्ष (निरपेक्ष) चेहरा है
इसी तरह विचार खामोशी से सूली पर चढा दिये जाते हैं।
...कला और उसके संदर्भों की समझ ज्यादा परिपक्व सोच को विकसित करती है. हुसैन को गाली देने से पहले भारतीय चित्रकला का सम्यक ज्ञान आवश्यक है.
दृश्यकला का छात्र होने के कारण मैं इसे बेहतर समझ पाता हूँ कि प्रतीक क्या हैं और सौन्दर्य शास्त्र क्या हैं.. और हुसैन क्या हैं..और एक कलाकार की आजादी क्या है. और धार्मिक विषयों पर बनाए गये चित्रों का इतिहास और उन्हें पूजने की परम्परा क्या है.
एक बात और यहाँ मै स्पष्ट करना चाहता हूँ कि कट्टरपंथी चाहे वो कोई भी हों उनका विरोध आवश्यक है. ताकी सृजनकर्मी अपना काम भयमुक्त हो कर सकें चाहे वह तस्लीमा हों या हुसैन.
अवनीश जी
मुझे लगता है कि आप पुन: कविता के मर्म से भटक गये हैं। कविता तस्लीमा की बात करती है और जहाँ तक हुसैन का संबंध है, विकृत मानसिकता और अभिव्यक्ति के बीच कुछ तो अंतर है ही? हुसैन को वो विषय क्यों नहीं दिखे जिसकी कलात्मकता उन्हें अभिव्यक्ति का ठोस धरातल देती? हुसैन पर मेरी कविता है भी नहीं।
आप वही मर्म देखें कि "तस्लीमा 'राम'" को मुफ्त में प्रवक्ता मिल ही जायेंगे जैसे हुसैन को शारदा की नग्न तस्वीरों पर आपकी वकालत हासिल है?
तसलीमा होने के लिये पक्का कलेजा चाहिये 'मनोरोगी कूची नहीं'
*** राजीव रंजन प्रसाद
राजीव जी फिर तो आपको यह भी मनना चाहिये कि तस्लीमा भी पागल हो गईं हैं क्योकि काफ़ी तादात में मुस्लिम तस्लीमा के बारे में यही मानते हैं...
नही अवनीश जी
मैं आपकी टिप्पणी को अपनी कविता की आखिरी पंक्तियों से ही जोडता हूँ, पुन: उद्धरित कर रहा :-
एक सुझाव है तस्लीमा
कि फिर वीजा मिलता भी रहेगा, बढता भी रहेगा
और मुफ्त में प्रवक्ता भी मिल जायेंगे
बदल कर अपना नाम तस्लीमा ‘राम’ रखना।
शेष मानसिकता तुष्टीकरण भर है। हाँ मानता हूँ तस्लीमा पागल हो गयी है। पागल और विक्षिप्त के अंतर पर फिर कभी चर्चा कर लेंगे। इस कविता से इसका संबंध तो नहीं....?
*** राजीव रंजन प्रसाद
चलिये राजीव जी आप जो भी कहें मैं तस्लीमा और हुसैन दोनो का बराबर समर्थन करूगाँ क्योंकि दोनों कट्टरपंथियों के सताए हुए हैं
अवनीश जी, मैंने हुसैन के वे सब चित्र देखे हैं, जिन पर विवाद हुआ, लज्जा भी पढ़ी है, तस्लीमा की आत्मकथा भी पढ़ी है और कुछ ऐसे लेख भी जिनमें तस्लीमा इस्लाम के ख़िलाफ लिखती हैं ( दिवाकर जी, उन्होंने पैगम्बर और इस्लाम सबके ख़िलाफ कहा है) लेकिन जब भी, जो भी कहा, उसके साथ सबूत रखा और कभी किसी की 'माँ' की नग्न तस्वीरें या अश्लील कहानियाँ यह कहकर नहीं रची की यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
हुसैन साहब ने जो तस्वीरें बनाई हैं, मैं नहीं जानता कि आपको उनमें कला के कौनसे अलग अर्थ नज़र आते हैं लेकिन जो व्यक्ति दुर्गा को, गणेश को पूजता हो, उन्हें सर्वोपरि मानता हो, उसकी इसमें क्या गलती है?
यह तो उसी तरह हुआ न कि आपकी 'माँ' के विषय में विचारधारा औरों से अलग है या आप इस कंसेप्ट में विश्वास ही नहीं करते तो क्या आप दूसरों की माँ को गाली देने के लिए आज़ाद हो जाएँगे?
मैं ऐसे चित्र देखता हूँ तो नए अर्थ नहीं खोज पाता। आपको कुछ पता हों तो कृपया बताएँ।
यदि आप लोग चाहें तो मैं उन चित्रों का लिंक भी यहाँ दे सकता हूँ...पर वह शायद किसी को भी अच्छा न लगे।
पूर्वपक्ष-एक बात और यहाँ मै स्पष्ट करना चाहता हूँ कि कट्टरपंथी चाहे वो कोई भी हों उनका विरोध आवश्यक है. ताकी सृजनकर्मी अपना काम भयमुक्त हो कर सकें चाहे वह तस्लीमा हों या हुसैन.
उत्तर- बात तो सही है किन्तु आधार क्या है, कट्टरपन्थी प्रमाणित करने का? क्या सिर्फ इसलिए कि कला के नाम पर उटपटांग चित्र बनाने वाले का विरोध किया जा रहा है! माफ कीजिए अगर यही बात है तो फिर आप कुछ और भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं.
दूसरी बात कि "तस्लीमा" का यदि मैं समर्थन करता हुँ तो सिर्फ़ इसलिए कि उन्होने बांग्लादेश में हिन्दुओं पर होने वाले भयावह अत्याचारों का अपनी रचना के माध्यम से प्रतिरोध किया है.
सन 1972 में बनाई गई सरस्वती की एक पेंटिग 1995-96 के आस-पास ही विवादास्पद क्यों हो उठती है. जरा सोचियेगा. एक बात. दूसरी बात मुझे वह पेंटिग कहीं से भी अश्लील नहीं लगती है और वह उतनी ही आदरणीय लगती है जितनी कि सरस्वती की कोई अन्य तस्वीर, पेंटिग, या मूर्ति. पता नहीं नग्नता कैसे देख पाते है आप लोग. मनोविकृति किसमें है यह आप लोग देखें. और किस मुँह से हम माँ बहनों की इज्जत की बात करते हैं
. यहाँ हमारे इसी महान भारतीय समाज में माँ बहन और साले की गालियाँ रोजमर्रा की बोलचाल का हिस्सा है. कितने लोग हैं यहाँ जो यह कह सकते हैं कि उन्होनें कभी इन गालियों का प्रयोग नहीं किया. पाखंड मत कीजिये.
अवनीश जी,
चर्चा बहुत गलत दिशा में चली गयी। हुसैन का विरोध कट्टरपंथ का विरोध नहीं है यह बात बहुत साफ है, केवल वे ही यह सत्य नहीं स्वीकारते जिन्हें कला और काला का फर्क नही ज्ञात है। पाखंड हुसैन जैसे लोग करते हैं और अपने दिमागी दीवालियेपन से लाखों मे बिकने वाला कीचड खोखलों को परोसते हैं। जैसा कि मैने लिखा है:-
कि विचारों की स्वतंत्रता
केवल माँ शारदा की नंगी तस्वीरें बनाने तक है
यही इस देश का असल धर्म-निर्पेक्ष चेहरा है
बना कर देखे एक एसी ही तस्वीर हुसैन अपने पंथ से जुडे किसी आदरणीय की.....? या अब तक बना पाने का जो दुस्साहस जो नही किया....? मैं अश्लीलता की बात परे हटा देता हूँ, अभिव्यक्ति के दुस्साहस की ही बात करता हूँ तो हुसैन मुझे उन प्रतीकों पर थूकता नजर आता है जो एक खास सम्प्रदाय के आदरणीय हैं। अब साम्प्रदायिकता खुजा कर फैलानेवाले लोग अभिव्यक्ति का झंडा बुलंद करेंगे..कमाल है।
हुसैन ने 'राम' को टारगेट में रखा है इस लिये उसके पास प्रवक्ताओं की भीड है 'रहीम' पर कूची वह 'हुसैन' हो कर भी नही चला सका न चला सकेगा। पाखंड इसे कहते हैं।
अभिव्यक्ति उसे कहते हैं तो कबीर की वाणी हो, हुसैन की कूची.....शर्म।
*** राजीव रंजन प्रसाद
हुसैन की महाभारत और रामायण सीरीज़ भी एक बार देख लिजिये.
खैर मैं आप सभी महान भारतपुत्रों से माफी चाहता हूँ. आप देश है जैसा चाहे बनाएँ. मै आप लोगों से बिलाँग नहीं करता.
धन्यवाद!
नमस्कार!
तस्लीमा अगर आपकी सलाह मान लें तब तो उन्हें नुकसान ही होगा। हमेशा व्यवस्था के अंग बने रहकर उसका विरोध करने वालों की चर्चा होती है।
हिन्दू हिन्दूतत्वों की आलोचना करें और मुस्लिम अपने तत्वों की, तभी ध्यान देने वाली बात होती है। और तब ही बवाल होता है। वैसे तस्लीमा का विवाद हो या चाहे हुसैन का सब राजनीति को भुनाने की कोशिश है मात्र। क्योंकि जिन्होंने तस्लीमा का पूरा लेखन पढ़ा हो उन्हें पता होगा कि उन्होंने हमेशा से समान अधिकारों की व्यवहारिकता की वकालत की है। उन्होंने किसी विशेष संप्रदाय या विशेष मजहब को विशेष गाली नहीं दी है बल्कि जहाँ-जहाँ, जिस-जिस संप्रदाय में स्त्री विरोधी नियम हैं, उनकी अवहेलना है, उसकी भर्त्सना की है। अपने सुझाव दिये है।
मैं एक बार भारत कला संग्रहालय (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय) गया हूँ, बहुत समय देकर विभिन्न शैलियों व कालखंडों के चित्रों को देखा है। निवस्त्र चित्रकारी हमारी परम्पराओं में है (इसीलिए 'नग्न' और 'निवस्त्र' का फ़र्क भी हमें समझना चाहिए।)।
बनारस के ही 'सारनाथ संग्रहालय' में हर कालखंड की मूर्तियाँ रखी गई हैं, वहाँ भी निवस्त्र, अर्धनिवस्त्र मूर्तियाँ लगी हुई हैं।
मैंने हुसैन का वह चित्र नहीं देखा है, इसलिए यह कह पाना मुश्किल है कि उन्होंने वो चित्र अपमान करने के लिए बनाया था या बदनाम करने के लिए। लेकिन भारतीय कला परम्परा में निवस्त्रता को सुंदरता से जोड़ा जाता है। या यूँ कहिए कि सचाई, वास्तविकता में उतरने का एक माध्यम चुना जाता है।
शिवलिंग पूजा इस आधार पर अभद्र पूजा कही जायेगी। अगर मैं अमृतलाल नागर के उपन्यास 'बूँद और समुंद्र' का एक उद्दरण सही मानूँ तो यमराज के बेटे 'यम' और बेटी 'यमी' में शारिरिक संबंध थे और भरी सभा में वो एक दूसरे लिपट जाते थे और प्यार करने लगते थे, और आपको आश्चर्य होगा कि भारतीय मनीषियों ने इसे भी नंगा सच मानकर स्वीकारा है। (इसलिए बुद्धिजीवियों को हुसैन वाले मसले को राजनीति के चंगुल से बाहर आकर पुनः देखने की कोशिश करनी चाहिए)
आपने जो तुलना प्रस्तुत किये हैं (कि विचारों की स्वतंत्रता
केवल माँ शारदा की नंगी तस्वीरें बनाने तक है), उससे यह लगता है कि आप पुरानी प्रतिक्रिया तस्लीमा के नाम से बाहर ला रहे हैं। मेरे हिसाब से कविता में जल्दीबाजी नहीं होनी चाहिए।
शैलेष जी,
जो चर्चा मेरी कविता पर चल निकली है उसपर मुझे घोर आपत्ति है। हुसैन की पब्लिसिटी मेरी कविता करे, इसलिये मैनें अपनी सोच जाया नहीं की थी। विवाद राजनीति को भुनाने के लिये होते हैं यह सत्य है किंतु मैनें उस राजनीतिक चुप्पी की ओर इशारा किया था जो एक साजिश प्रतीत हुआ मुझे, और किस सूझ बूझ से एक स्वर का गला घोंट दिया गया जिसपर कोई आवाज भी नहीं उठी। इस मंच से मैंने आवाज उठाई भी तो कविता के मुख पर हुसैन का टेप लगा दिया गया...अफसोस।
हुसैन के चित्र नहीं देखें हैं तो कृपया अवश्य देखें। भारतीय कला के साथ हुसैन को जोडना मै "भारतीयता" और "कला" दोनों की ही हत्या मानता हूँ। नग्नता और अश्लीलता में जो फर्क है वह हुसैन को गहरे समझ कर स्पष्ट हो जाता है इसके लिये पुरानी पुस्तको के उद्धरण बरबाद करने की आवश्यकता नहीं।
हाँ विचारों की स्वतंत्रता शारदा की नग्न तस्वीरें बनाने तक ही है ( हुसैन के सारे चित्र तो एक साथ उद्धरित नही कर सकता था न, बिम्ब की सीमा भी समझें) वरना हुसैन भी तस्लीमा की तरह बेदख्ल होते..। हमारा युग अधिक अहिष्णु है यहा कबीर की खैर नहीं...
मैं पुरानी प्रतिक्रिया तस्लीमा के नाम से बाहर नहीं ला रहा बल्कि प्रतिक्रिया करने की कोशिश कर रहा हूँ। हुसैन पर जैसे कलाविद पिल पडे हैं, कोई तो अभिव्यक्ति की इस प्रतीक को भी समर्थन दे....? कविता में जल्दबाजी नहीं है शैलेश जी, लेकिन अगर खामोशी के स्वर जल्द न टूटे तो अंधेरा और गहरा होगा...।
*** राजीव रंजन प्रसाद
राजीव जी कॊ एक सुन्दर भावॊं से परिपूर्ण कविता लिखने के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद। यहां मैं यह कहना चाहता हूं तसलीमा नसरीन और मकबूल फिदा हुसैन दॊ अलग अलग मुद्दे हैं उनका एकीकरण चर्चा कॊ भटकाता है।
यहां मैं भारतवासी जी से खिन्न हूं क्यॊंकि उन्हॊने शिवलिंग का अर्थ जाने बिना ही टिप्पणी कर दी। यहां इसका प्रचलित शाब्दिक अर्थ नहीं है। हां उनके बाकि तर्क जरूर सही हैं।
विवेचकॊं से उम्मीद है कि साम्प्रदायिक्ता से उपर उठें।
राजीव जी आपसे मैं यही कहना चाहूँगा की आप प्रतिक्रियाओं को सकारात्मक रूप मी ले.
सम्भव है कुछ लोगों के विचार आपके विचार से इत्तफाक न रखते हों, परन्तु यह काफी हद तक जरुरी है किसी के भी कथ्य और शिल्प की गुणवत्ता मे सुधर के लिए.
खैर, मैं तो समीक्षा ko पसंद करता हूँ,परन्तु एक अनुरोध मैं जरुर करना चाहूँगा की जरा नरमी बरतें क्योंकि सम्भव है की किसी को बुरी लग जाए.
वैसे एक बार फ़िर मैं राजीव जी को अच्छी रचना के लिए बधाई देना चाहूँगा
अलोक सिंह "sahil"
मुझे यह देखकर बेहद दुख हुआ है कि हिन्द युग्म पर सार्थक चर्चा के बदले निरर्थक चर्चाओं का दौर चल पड़ा है । कविता एक कवि की स्वतंत्र विचारधारा है । उसने किसी भी विशेष समय पर जो अनुभव किया लिखा किन्तु पाठक उस मनः स्थिति को भूल विवाद कर रहे हैं ।
अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए शैलेष जी ने जो कुछ कहा वह हैरान करने वाला है । सच वही नहीं होता जो आप जानते हैं । कृपया स्व धर्म निन्दा से बचें । हिन्दू धर्म में ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनका अर्थ सब नहीं समझते । अतः उनका तर्क देकर अपना पक्ष सबल ना बनाएँ ।
राजीव जी की कविता एक प्रतिक्रिया है और इस मौलिक अधिकार को मत छीनिए। व्यक्तिगत रूप से मैं राजीव जी से सहमत हूँ पर जरूरी नहीं कि और सब भी हों । कृपया अनावश्यक विवाद से बचें । सस्नेह
जालिम जी,
मैं शिवलिंग, भारतीय विवाह परम्परा की प्रतीक पूजा, व अन्य सभी कर्मकांडों के अर्थ समझता हूँ। (यह मेरा दंभ नहीं है बल्कि स्पष्टीकरण है)। मैंने यह लिखा था कि यदि निवस्त्र चित्रकारी को अभद्रता और संस्कृति विरोधी मानें तो भारत के सृष्टिकारकों को पूजना बेमानी लगने लगेगा (शायद मैंने भाषा की व्यवहारिकता को नहीं समझा और 'पर', 'लेकिन' आगे पीछे लग गये)।
तसलीमा का पीछे हटना हम कैसे कलमकारों को डरा सा दिया है, या यूँ कहें कि अभिव्यक्ति की परम्परा का बलात् कर दिया है। अपने स्वार्थ की खातिर हारने वालों को पूजा नहीं जा सकता। अभी तक हम नेताओं से तो इस तरह के बहुरूपियेपन की उम्मीद करते थे, लेकिन लेखकों से नहीं। लेकिन अब अदीब भी इन झुंडों का शिकार हो गया। हमारा अपना नेता मर गया।
शैलेश जी आपकी बात से दु:ख हुआ, कि आपकी सोच ऐसी है/
अगर आपको हुसैन के चित्र को देखने की बहुत इच्छा है जल्द ही आपको उपलब्ध करवाये जाने का प्रबन्ध करता हूँ।
राजीव जी ,,
एक बिलकुल अलग विषय पर और वह भी इतनी रचनात्मक कविता लिखने पर मैं आपको बधाई देता हूँ ...तसलीमा नसरीन को देखा जाये तो वह एक बहुत ही शशक्त नारी है ..जो हालत के आगे झुकना नहीं जानती ..घर छुटा, परिवार छुटा , फिर देश छुटा ...मगर फिर भी उसने हिम्मत नहीं हरी ...जब संसार छुटने( लगातार जान से मार देने की मिल रही धमकी) की बारी आई तब कहीं जाकर उसने समझोता किया..वो भी यह सोचकर की जिनको उसका साथ देना चाहिए वही उसका साथ छोड़ रहे है ..अतः मैं उसके लिए हुए फेसले को गलत नहीं मानता ...हाँ एक बात को जरुर गलत मानता हूँ ..वह है हमारे मित्रों का आपस मैं किसी ऐसे मुद्दे पर चर्चा करना जिसका कविता से कोई संबंध नहीं ...
मैंने आपकी ...शेलेश जी ...तथा जालिम जी ..सभी की बातों को ध्यान से पढ़ ..उसको पढ़ने के पश्चात् मैं अपनी राय भी देना चाहूँगा जो इस प्रकार है ...
जिस तरह से आपने लिखा की विचारों की स्वतंत्रता शारदा की नग्न तस्वीर बनाने तक है ...बहुत ही उपयुक्त टिप्पणी है आप की समाज पर ...मगर आप शायद शेलेश जी की बात को भी गलत समझ रहे है ...वो हुसैन के समर्थक नहीं ..बल्कि वे भी समाज की असलियत को बताना चाहते है ..वे बताना चाहते हैं की समाज मैं नंगी तस्वीरों को अपमान की दृष्टि से नहीं देखा जाता ..उनको हमारी परम्परा मैं शामिल किया जाता है ..जैसे की खजुराहो के मंदिर की नग्न तस्वीरें ...
शेलेश जी को कहना चाहूँगा की मैं उनकी दूरदृष्टि की कद्र करता हूँ ..उनका तर्क बिलकुल सही है ..मगर उन्होने शिवलिंग की जो बात छेड़ी..वह मुझे थोडी नागवार लगी ..उनको उसकी चर्चा से बचना चाहिए था ....
रही जालिम जी की बात तो उनके बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता ...वे विद्वान आदमी है ..उन्होने उसी बात का विरोध किया जो मेरी दृष्टि से भी गलत है ...
बस ..मुझे यही कहना था ..यदि कुछ गलत कह दिया हो तो माफ कीजियेगा..
कविता के लिए पुनः बधाई ...इसी प्रकार लिखते रहिएगा ...
आपका शुभचिंतक
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