हमसे कब आ के हाले दिल पूछा तुमने
और हमने भी किसी को बताया ही नहीं
दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं
दुशमनी हमसे प्यार में ऐसी निभाई तुमने
फ़िर किसी को कभी दोस्त बनाया ही नहीं
दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं
"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं
"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
बहुत अच्छी गज़ल है खास कर उपर उद्धरित दोनों शेर। बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
वाह मोहिन्दर जी वाह..
कमाल कि गजल..
दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं
"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
सच में गहरे शेर हैं
मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
बहुत बढ़िया अंदाज़
बहुत ही अच्छा लिखा है.
खिजायें - इसका अर्थ क्या होता है?
इस मनमोहक ग़ज़ल के लिए बधाई.
अवनीश तिवारी
दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं
बहुत ही सुंदर ..
दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं
"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
बेहद पसंद आई आपकी यह गजल मुझको मोहिंदर जी ..!!
मोहिन्दर जी
बहुत प्यारी गज़ल लिखी है । विशैष रूप से निम्न शेर सुन्दर बन पड़े हैं -
दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं
दुशमनी हमसे प्यार में ऐसी निभाई तुमने
फ़िर किसी को कभी दोस्त बनाया ही नहीं
दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं
गुनगुनाने पर मज़बूर किया इस गज़ल ने । बधाई स्वीकरें ।
बहुत गहरी बात करी है आप ने अपने शेरों के माध्यम से
बधाई
नीरज
मोहिन्दर जी
दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं
मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
बहुत सुंदर ...
दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं
दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं
"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
kya baat hai aandaaz aapka khaas hai....wakaai maza aa gaya :)
दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं
मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
अच्छी गज़ल है मोहिन्दर जी। लिखते रहिए।
दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं
"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
बहुत हीं खूबसूरत गज़ल है मोहिंदर जी। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
बहुत अच्छी गजल है.. हर पंक्ति अच्छी है
ग़ज़ल गेय भी होनी चाहिए, और गेयता केवल तुकांतता नहीं निर्धारित करते, बल्कि शब्द चुनाव तय करते हैं। ज़रा गाकर देखिएगा, कुछ शब्द अटकेंगे।
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