फटाफट (25 नई पोस्ट):

Tuesday, November 27, 2007

कोयला आज भी हूं



हमसे कब आ के हाले दिल पूछा तुमने
और हमने भी किसी को बताया ही नहीं

दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं

दुशमनी हमसे प्यार में ऐसी निभाई तुमने
फ़िर किसी को कभी दोस्त बनाया ही नहीं

दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं

"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

13 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं

"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं

बहुत अच्छी गज़ल है खास कर उपर उद्धरित दोनों शेर। बधाई।

*** राजीव रंजन प्रसाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वाह मोहिन्दर जी वाह..
कमाल कि गजल..

दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं

"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं

सच में गहरे शेर हैं

Sajeev का कहना है कि -

मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं
बहुत बढ़िया अंदाज़

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत ही अच्छा लिखा है.
खिजायें - इसका अर्थ क्या होता है?

इस मनमोहक ग़ज़ल के लिए बधाई.
अवनीश तिवारी

रंजू भाटिया का कहना है कि -

दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं

बहुत ही सुंदर ..

दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं

"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं

बेहद पसंद आई आपकी यह गजल मुझको मोहिंदर जी ..!!

शोभा का कहना है कि -

मोहिन्दर जी
बहुत प्यारी गज़ल लिखी है । विशैष रूप से निम्न शेर सुन्दर बन पड़े हैं -
दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं

दुशमनी हमसे प्यार में ऐसी निभाई तुमने
फ़िर किसी को कभी दोस्त बनाया ही नहीं

दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं
गुनगुनाने पर मज़बूर किया इस गज़ल ने । बधाई स्वीकरें ।

नीरज गोस्वामी का कहना है कि -

बहुत गहरी बात करी है आप ने अपने शेरों के माध्यम से
बधाई
नीरज

Unknown का कहना है कि -

मोहिन्दर जी

दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं

मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं

बहुत सुंदर ...

Anupama का कहना है कि -

दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं

दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं

"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं

kya baat hai aandaaz aapka khaas hai....wakaai maza aa gaya :)

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

दर्द के इस दिल पर लगे थे पहरे इतने
बाद तेरे इस जानिब कोई आया ही नहीं

मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं

अच्छी गज़ल है मोहिन्दर जी। लिखते रहिए।

विश्व दीपक का कहना है कि -

दिले-नादान को भा गई खिजायें इस कदर
फ़िर बहारों में भी कोई गुल खिलाया ही नहीं

"मोह"सुलगा और सब ने धुंआ भर देखा
कोयला आज भी हूं राख बन पाया ही नहीं

बहुत हीं खूबसूरत गज़ल है मोहिंदर जी। बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

बहुत अच्छी गजल है.. हर पंक्ति अच्छी है

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

ग़ज़ल गेय भी होनी चाहिए, और गेयता केवल तुकांतता नहीं निर्धारित करते, बल्कि शब्द चुनाव तय करते हैं। ज़रा गाकर देखिएगा, कुछ शब्द अटकेंगे।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)