सुनील डोगरा 'ज़ालिम' ने हिन्द-युग्म को हर तरह की सौगात दी है। कभी यूनिपाठक रहे, कभी प्रचारक, कभी कार्यकर्ता और कभी कर्ता-धर्ता। कभी-कभी नाराज़ भी हो जाते हैं, जब हम उनकी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते। अक्टूबर माह की प्रतियोगिता में भी इन्होंने भाग लिया था। जहाँ इनकी कविता 'वो बूढ़ा लँगोटधारी' १५ वें स्थान पर थी। गाँधी जी से ये प्रभावित हैं, इसलिए इनकी कविता में भी गाँधी जी की चर्चा कोई बड़ी बात नहीं।
कविता - वो बूढ़ा लँगोटधारी
कवि- सुनील डोगरा 'ज़ालिम', नई दिल्ली
उचटती निगाहों की भीड़ में
यह कैसा शौर मचा
वो आएगा वो आएगा
चहुंदिशाओं में शोर मचा
पर यह क्या
यह कौन आ गया
बूढा लंगोटधारी
अधनंगा सा भिखारी
लाठी के बल चलता हुआ
यह क्या कर सकेगा
मेरा भूखा पेट भर सकेगा
ये तो खुद नंगा है
मुझे क्या वस्त्र दिलाएगा
क्या यी सचमुच वही है
जो नील के जख्मों को सहलाएगा
और भी बहुतेरे प्रश्न
निकल रहे थे उस दिन
पर वो आया
कर ना देने का फरमान सुनाया
पर हुकूमत कहां मानती है
हाय रे मन
फिरंगियों ने मुकदमा चलाया
उस दिन चंपारण मर गया था
उनका उद्धारक कैद हुआ था
पर कहां, वो तो अड़ियल था
उसने फिरंगियों को ही झुका दिया
अन्याय को झुकना ही पडेगा
फिर से विश्व को बता दिया
और चंपारण जी उठा था
नील का बोझ हटा था
और वो फकीर
मुकदमे में विजयी हुआ था
पर था कोन
वो बूढा लंगोटघारी
अरे वही सत्य का पुजारी
उड गए फिरंगी जब आई थी उसकी आँधी
नहीं समझे वो थे सबके प्यारे बापू गाँधी
जजों की दृष्टि-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰५, ६॰५, ६॰२
औसत अंक- ६॰०७
स्थान- उन्नीसवाँ
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ४॰६, ५॰६
औसत अंक- ५॰१०
स्थान- पंद्रहवाँ
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपके गाँधी प्रेम को सलाम.
सुन्दरता से वर्णन किया है.
सरल है. सहज है.
अवनीश तिवारी
सुंदर लगी आपकी रचना सुनील जी
प्रयास अच्छा है , पर अभी काफ़ी मेहनत की जरूरत है । प्रस्तुति , शब्द चयन … सभी जगह सुधार चाहिये । आपने सिर्फ़ एक खयाल या, एक लाईन को पूरी कविता में खींचने की कोशिश की है । एक भाव को लम्बा खींचने से कविता नहीं बनती … पूरी कविता के भाव को दो - चार पंक्तियों में भी लिखा जा सकता था, ठीक तरह से सँवारी हुई चार लाईनें खींच कर लिखी गई पूरी कविता से बेहतर हैं । और फ़िर गाँधी जैसे विषय पर इतना कुछ है कि कविता में सागर भरा जा सकता था । ये सुझाव आपके स्तर में सुधार के लिये ही हैं॥ अगली बार लिखते समय कविता को 5-7 दिन के लिये छोड़ दें । फ़िर भी अगर आपको कविता पूर्ण लगे … तो उसे देखें … आपको स्वयं अन्तर नजर आयेगा ।
सस्नेह
आलोक
eसुनील जी,
कविता आदर्शों की ओर इंगित करती है, जो आपके सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है....
एक पाठक की दृष्टि से यही कहूँगा कि पूरी कविता में पाठक को बाँधने के लिए जिस कसाव या सौंदर्य की जरुरत पड़ती है, उसमें कुछ कमी रह गई.......
आपसे बेहद उम्मीदें हैं....
निखिल आनंद गिरि
डोगरा जी ,
जैसे की उम्मीद थी आप ने गाँधी जी के आदर्श पर ही कविता लिखी ...बहुत अच्छा प्रयास है ..सरल शब्दों में अच्छे भाव को दर्शाने की आपकी कोशिश सचमुच काफी सराहनीय है ...ऐसे ही लिखते रहिये ..आपसे हमारी काफी उम्मीदें जुड़ी है ..
आलोक जी नें कुछ बातों की ओर इशारा किया है उसे अपनी रचनात्मकता में स्थान दे कर अपने शब्दों की आग को दिशा प्रदान कर सकते हैं। संपूर्णता में रचना बहुत अच्छी है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुनील उम्मीद है भविष्य में और भी उम्दा पढने को मिलेगा।
सुंदर कविता है जालिम जी, आपकी गाँधी भक्ति को सलाम, पर आपकी वो किताब मुझे आज तक नही मिली जो आप मुझे भेजने वाले थे, मैंने वो आत्मकथा वाली पुस्तक नही पढी है, अगर भेज पाएं तो मुझे भी मुझे भी मदद मिलेगी महात्मा को बेहतर रूप से समझने में
ज़ालिम जी,
गाँधी जी के साथ यह अन्याय क्यों, और भी बहुत कुछ था जिसे आपको इस कविता में समेटना चाहिए था। यही कविता फ़िर से लिखिएगा।
सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद. संजीव जी मैं शर्मिन्दा हूँ लेकिन आप चिंता ना करें
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