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Monday, November 26, 2007

क्षणिकाएँ


प्रश्न
मुस्कुराने की कोशिश में
कई बार आँखे भर आती हैं
न जाने ज़िन्दगी ने कैसे
सीख लिया है ख़ुद के लिये – उलटबांसियाँ ।

नैतिकता
कई दिनो से ताला लगा हुआ है
दरवाज़े के बाहर
हर दिन ताला कुछ बडा दिखता है
कोई भ्रम है या आँखे सिकुड जाती हैं
ताले को देखते वक़्त
जो भी हो ताले का बढना बदस्तूर जारी है और
ख़तरा बढ रहा है चोरी का।

क़िस्मत
उसे आज लौटना था घर
वह लौटा भी
पर वैसे नहीं जैसा उसकी माँ चाहती थी
पहले ..एक ख़बर बन कर...फिर
क़फ़न मे लिपटे हुए ।

हिम्मत
वह बूढी हर बार जा-जा कर बुला लाती है
बिना रोए-गाए पडोस से मर्दो को...
जब-जब उसके यहाँ कोई मरता है पर....
कल किसे...कौन...बुलाया ??

ओछापन
बडा होने से कहीं ज़्यादा बडा है
उसका एहसास
पता नही..वह अपने बचपन में
इस पालने में कैसे सोया होगा ?


बलात्कार
“जज सा’ब ....मज़ा बहुत आया लेकिन..
शिक़ायत आईन्दा उम्र को है” -----
सलमा ने बुर्के के अन्दर से
सुगबुगाते हुए कहा ।

शहीद
नज़रो से नश्तर....आवाज़ से पिघला सीसा
चुभोने-उडेलने वाले की मौत हुई.....
लोग कह रहे थे – ‘एक और क़ाफ़िर को हमने
मार डाला...क़मबख़्त..मोहर्रम के दिन ही हाथ लगा!

इंतज़ार
दरवाज़े पर दस्तक़ होगी और बेटा
अपने जूते उतारता हुआ बोलेगा -
‘आज बहुत थक गया हूँ’
वृद्धाश्रम की हर वृद्धा हर वक़्त इसी आस में
एक ही ओर देखती है ।

इहलीला
जिस दिन उसने ज़हर खाकर
कर ली आत्महत्या उसी दिन
प्रकाशित हुआ वह परिणाम
जिसमें उसे मिला अव्वल स्थान ।

निवृति
सरकार ने दस लाख का मुआवज़ा देकर
चाहा है निबाहना अपना दायित्व
दरअसल शक के आधार पर
कल असलम पुलिस के हाथों मारा गया है ।

सगी नियति
उसका भाई लाहौर में रहता था
और वह ख़ुद मुम्बई में
उस दिन दोनों एक विस्फोट में मारे गए
जब तीस सालों बाद मिल रहे थे दिल्ली में ।

वह भूत
बचपन में वह भूत बनकर डराने की कोशिश करता
अपने मौत के बाद
जब अपने सगों के विचार जानने का
उसे मौका मिला
तो आदमी नामक जानवर से ख़ुद डर गया वह भूत

जूझना
चुपचाप बैठे हुए किसी को जूझते देखा है ??
न..न..ख़ामोशी से नहीं
ऐसे क़िस्मत से जूझते हैं ।

थकान
बैठे-बैठे थकने के बाद..सो गया
सोता रहा..सोता रहा
जब सोने से भी थक गया
फिर उठकर बैठने के अलावा कुछ नहीं था ।

हाजमा
डॉक्टर ने कहा –
‘तुम्हें बदहजमी कैसे हो सकती है ?
उसके लिए ज़रूरत से ज़्यादा खाना पडता है।’
उसने पूछा –
‘फिर क्यों असहनीय लगने लगे हैं ताने ?’

छलिया
कभी लिखा करता था
अपनी संतुष्टि के लिए
आजकल लिख रहा हूँ
ख़ुद को छलने के लिए ।

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

हर क्षणिका सुंदर है.
वह बूढी हर बार जा-जा कर बुला लाती है
बिना रोए-गाए पडोस से मर्दो को...
जब-जब उसके यहाँ कोई मरता है पर....
कल किसे...कौन...बुलाया ??
--यह अधिक भाया
अवनीश तिवारी

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

"कोई भ्रम है या आँखे सिकुड जाती हैं
ताले को देखते वक़्त
जो भी हो ताले का बढना बदस्तूर जारी है और
ख़तरा बढ रहा है चोरी का।"

"कल किसे...कौन...बुलाया ??"

"पता नही..वह अपने बचपन में
इस पालने में कैसे सोया होगा ?"

"उस दिन दोनों एक विस्फोट में मारे गए
जब तीस सालों बाद मिल रहे थे दिल्ली में ।"

हर क्षणिका उत्कृष्ट है। अभिषेक जी आपने इस प्रस्तुति से मंच का स्तर बढा दिया है। उपर वे पंक्तियाँ उद्धरित कर रहा हूँ जिन्होंने बेहद स्पर्श किया मुझे।

*** राजीव रंजन प्रसाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

अभिषेक जी,

क्षणिकायें बेहद स्पर्शी एवं कबिले तारीफ..
एक से बढ़कर एक.

"कोई भ्रम है या आँखे सिकुड जाती हैं
ताले को देखते वक़्त
जो भी हो ताले का बढना बदस्तूर जारी है और
ख़तरा बढ रहा है चोरी का।"

"कल किसे...कौन...बुलाया ??"

"पता नही..वह अपने बचपन में
इस पालने में कैसे सोया होगा ?"

"उस दिन दोनों एक विस्फोट में मारे गए
जब तीस सालों बाद मिल रहे थे दिल्ली में ।"

सरकार ने दस लाख का मुआवज़ा देकर
चाहा है निबाहना अपना दायित्व
दरअसल शक के आधार पर
कल असलम पुलिस के हाथों मारा गया है ।
बैठे-बैठे थकने के बाद..सो गया
सोता रहा..सोता रहा
जब सोने से भी थक गया
फिर उठकर बैठने के अलावा कुछ नहीं था ।

बहुत बढिया

Harihar Jha का कहना है कि -

चुपचाप बैठे हुए किसी को जूझते देखा है ??
न..न..ख़ामोशी से नहीं
ऐसे क़िस्मत से जूझते हैं ।
बहुत खूब अभिषेक जी

विपुल का कहना है कि -

अभिषेक जी,
अपनी बताऊं तो काव्य की सारी विधाओं में सबसे अच्छी क्षणिकाएँ लगती हैं मुझे और अगर ऐसी क्षणिकाएँ पढ़ने को मिल जाएँ तो मज़ा आ जाता है|
हर एक पंक्ति लाजवाब है,मस्तिष्क को झंझोड कर रख देती है यह !
वाह! बहुत बहुत धन्यवाद..ख़ूबसूरत रचना
पढ़वाने के लिए ..

रंजू भाटिया का कहना है कि -

अभिषेक जी हर क्षणिका बहुत अच्छी लगी ...खासतौर पर यह बहुत पसन्द आई ..प्रश्न,ओछापन,जूझना
बहुत ख़ूबसूरत !!

Anonymous का कहना है कि -

अभिषेक जी, मैने आज तक किसी भी कविता पर comments नही दिये है, क्योंकी मुझे लगता है की.... या मै इस कबिल नही हुआ हुं की कोई comment लिखु या ये सोच कर की इस से बेहतर लिखा जा सकता था... पर आज जब आपकी क्षणिकाएँ पढी तो, खुद को रोक नही पाया....और मै ज्यादा नही लिखुगां.... बस इतना कहुंगा....बेहतरीन...AWESOME... आपके कलम को सलाम

Mohinder56 का कहना है कि -

अभिषेक जी,

किसी भी रचना के प्राण भाव होते हैं और आपकी हर क्षणिका में एक सुन्दर कोमल मन को छूने मे सक्षम भाव छुपा है... बधाई.

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

सब क्षणिकाएँ बहुत अच्छी हैं अभिषेक जी, अलग अलग भाव और अन्दाज़ लिए।
लेकिन जिस तरह की क्षणिकाएँ मुझे व्यक्तिगत रूप से पसंद हैं, वैसी दो-चार ही हैं-

मुस्कुराने की कोशिश में
कई बार आँखे भर आती हैं
न जाने ज़िन्दगी ने कैसे
सीख लिया है ख़ुद के लिये – उलटबांसियाँ ।

चुपचाप बैठे हुए किसी को जूझते देखा है ??
न..न..ख़ामोशी से नहीं
ऐसे क़िस्मत से जूझते हैं ।

कई जगह क्षणिका छोटी रखने के प्रयास में अर्थ का प्रवाह नहीं हो पाया है। उस पर ध्यान दीजिएगा।
आप बहुत अच्छा लिखते हैं। और भी अच्छा लिख सकते हैं। :)

नीरज गोस्वामी का कहना है कि -

बेहतरीन क्षणिकाएँ. सीधी दिल से निकल कर दिल तक पहुँचती हुई.
बधाई
नीरज

Avanish Gautam का कहना है कि -

जैसे कहते है जीते रहो वैसे ही कहता हूँ लिखते रहो!

विश्व दीपक का कहना है कि -

जो भी हो ताले का बढना बदस्तूर जारी है और
ख़तरा बढ रहा है चोरी का।

पहले ..एक ख़बर बन कर...फिर
क़फ़न मे लिपटे हुए ।

पता नही..वह अपने बचपन में
इस पालने में कैसे सोया होगा ?

क़मबख़्त..मोहर्रम के दिन ही हाथ लगा!

तो आदमी नामक जानवर से ख़ुद डर गया वह भूत

पाटनी जी,
आपकी हर क्षणिका बेहतरीन है। भाव बड़ी हीं खूबसूरती से उकेरे हैं आपने। मुझे सबसे अच्छी "हाजमा" लगी।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कुछ क्षणिकाएँ मुझे बेहद पसंद आईं।

इंतज़ार
वह भूत
हाजमा

शेष क्षणिकाओं में मुझे कलात्मकता का अभाव दिखता है।

Soni का कहना है कि -

अति उत्तम. उम्मीद से बड़कर.
पढ़कर आनंद आ गया..सचमुच
- सोनी, जर्मनी से

mona का कहना है कि -

Hamesha ki tarak saare chanikayain ek se badd kar ek hain.

دريم هاوس का कहना है कि -

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