धूप फैली है हरसू खिड़कियों से पर्दे हटाओ तो सही
बुझ गया पहला अगर दूसरा चिराग जलाओ तो सही
कब तलक गम का रोना लिये बैठे रहोगे तुम यूं ही
खुशी है रूबरू खड़ी तेरे अब जरा मुस्कराओ तो सही
न राहों की, न मंजिलों की कमी है इस दुनिया में
हौसला तुम भी करो, जरा चल के दिखाओ तो सही
हसरतों की शाख पर आज है फिर से बहारों का साया
प्यार के जज़्बे से आज नया गुँचा खिलाओ तो सही
किसी इक रात के चातक से पड़ा था पहले पाला तेरा
आखिरी सांस तक रहेगा साथ, हाथ मिलाओ तो सही
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
न राहों की, न मंजिलों की कमी है इस दुनिया में
हौंसला तुम भी करो, जरा चल के दिखाओ तो सही...
बहुत ही सही बात मोहिंदर जी ....बहुत अच्छी लगी आपकी यह गजल भी ..
बधाई
मोहिन्दर जी
पहला ही शेर कमजोर हुआ है| खास कर दूसरी पंक्ति "बुझ गया पहला अगर दूसरा चिराग जलाओ तो सही"| मार्गदर्शन प्रदान करने की यह उपदेशात्मक शैली साहित्य में अनेक बार पुनरावृत्तियों के बाद भी सफल है| ये शेर खास तौर पर इस दिशा में उद्धरित करूंगा:
कब तलक गम का रोना लिये बैठे रहोगे तुम यूंहीं
खुशी है रूबरू खडी तेरे अब जरा मुस्कराओ तो सही
न राहों की, न मंजिलों की कमी है इस दुनिया में
हौंसला तुम भी करो, जरा चल के दिखाओ तो सही
इस शेर का मतलब समझने में कठिनाई संभव है संभावना है कि कर पाठक अपना अपना अर्थ निकाल ले और कवि के अर्थ से दूर चला जाये:-
किसी इक रात के चातक से पडा था पहले पाला तेरा
आखिरी सांस तक रहेगा साथ, हाथ मिलाओ तो सही
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुंदर.
लाजवाब बना है... !!!!
दो राय है -
१. दूसरा शेर पहले होना चाहिए था. sheershak se mela khataa ?
2. apana upnaam de jisase "thakkhallus" kee kamee pura ho jaye..
सुंदर रचना....
बधाई
अवनीश तिवारी
मोहिन्दर जी
हसरतों की शाख पर आज है फिर से बहारों का साया
प्यार के जज़्बे से आज नया गुँचा खिलाओ तो सही
किसी इक रात के चातक से पड़ा था पहले पाला तेरा
आखिरी सांस तक रहेगा साथ, हाथ मिलाओ तो सही
दीपावली की शुभकामनाओं का दौर है
दीप से दीप जालाओ तो सही
रचना कमतर लगी ।
दूसरे, चौथे और पांचवे शेर ने उम्मीद को ज़िन्दा रखा ।
गज़ल जिस चीज़ के लिये जानी जाती है, वो भाव कहीं नही दिखे ।
लगा हर शब्द मे सिर्फ दोहराव हो रहा हो ।
क्षमा करें, पर ये मोहिन्दर जी की कलम महसूस नही होती।
आर्यमनु, उदयपुर ।
मोहिन्दर जी
बहुत अच्छी गज़ल लिखी है आपने । आशावादी स्वर ने गज़ल को प्रभावी बना दिया है । विशेष रूप से निम्न
पंक्तियाँ मुझे पसन्द आई--
किसी इक रात के चातक से पड़ा था पहले पाला तेरा
आखिरी सांस तक रहेगा साथ, हाथ मिलाओ तो सही
एक खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई ।
अपना ही एक शेर याद आ गया आप की प्रस्तुति देख कर -
खिड़कियाँ खोल दे, कुछ ठंढी हवा आने दे
शोला बुझता सा जो है, कुछ तो भड़क जाने दे ...........
बहुत अच्छा है. धन्यवाद.
मोहिन्दर भाई
थोडा और कसाव आ जाता तो ग़ज़ल जम जाती.
धूप फैली है हरसू खिड़कियों से पर्दे हटाओ तो सही
बुझ गया पहला अगर दूसरा चिराग जलाओ तो सही
मोहिन्दर जी, स्वागत-योग्य रचना! कथ्य बड़ा है और आज के समय की जरूरत भी तभी शिल्प में हल्की कमी होने पर भी खलती नही। बधाई।
धूप फैली है हरसू खिड़कियों से पर्दे हटाओ तो सही
बुझ गया पहला अगर दूसरा चिराग जलाओ तो सही
सुंदर ग़ज़ल....
मोहिन्दर जी,
बहुत बहुत बधाई.. दुरूहता हर जगह होती है.. टिप्प्णियाँ बता रही हैं. परंतु अच्छी गजल है
बधाई स्वीकारें
न राहों की, न मंजिलों की कमी है इस दुनिया में
हौसला तुम भी करो, जरा चल के दिखाओ तो सही
किसी इक रात के चातक से पड़ा था पहले पाला तेरा
आखिरी सांस तक रहेगा साथ, हाथ मिलाओ तो सही
मोहिन्दर जी,
बहुत हीं आशावादी रचना है। मुझे पसंद आई।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
आपकी ग़ज़ल का एक शे'र कालजयी बन सकता था॰॰॰कुछ सोचिए०
किसी इक रात के चातक से पड़ा था पहले पाला तेरा
आखिरी सांस तक रहेगा साथ, हाथ मिलाओ तो सही
मोहिन्दर जी!!
बहुत बधिया गजल है...प्रभावशील रचना है...
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कब तलक गम का रोना लिये बैठे रहोगे तुम यूं ही
खुशी है रूबरू खड़ी तेरे अब जरा मुस्कराओ तो सही
न राहों की, न मंजिलों की कमी है इस दुनिया में
हौसला तुम भी करो, जरा चल के दिखाओ तो सही
**--------बहुत सही बात कही है ....
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मुझे बहुत पसन्द आई आपकी रचना....
शुभकामनायें!!!!
आह बहुत सुन्दर प्रयास है.. कृपया जारी रखें.....
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