पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
दर्दों की हैं परतें दर परतें
और यादों के लगे हैं जाले
खुद भी जहां, नहीं जाता मैं
तुम्हें कैसे ले जाऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
चांद सरीखा उसका चेहरा
मेरी आंखे थी भर बैठी
नित नया सपना मुझे रुलाये
ऊपर से मुस्काऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
ना खत हैं, ना तस्वीरें
ना सूखे फ़ूल किताबों में
साथ है मेरे ईक बीता कल
जिसे भूल न पाऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं.
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
बहुत ही प्यारा गीत मोहिंदर जी ....!
पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं
उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
पहली बार मिले और वह भी इतने गहरे..बहुत अच्छी रचना मोहिन्दर जी। बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
वाह वाह
दर्दों की हैं परतें दर परतें
और यादों के लगे हैं जाले
खुद भी जहां, नहीं जाता मैं
तुम्हें कैसे ले जाऊं मैं
बहुत सुंदर बनी है.
बधाई
अवनीश तिवारी
बढिया है मोहिन्दर भाई!
तुसी ग्रेट ओ जी,
कमाल कित्ता सी,
इक इक शब्द मोती जी मोती..
पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं
सही कहा बन्द दरवाजे खोल पाना
ही बड़ी बात है
bahut pyara geet likha hai aapne
दर्दों की हैं परतें दर परतें
और यादों के लगे हैं जाले
खुद भी जहां, नहीं जाता मैं
तुम्हें कैसे ले जाऊं मैं
ना खत हैं, ना तस्वीरें
ना सूखे फ़ूल किताबों में
साथ है मेरे ईक बीता कल
जिसे भूल न पाऊं मैं
ultimate lines hain....kahete hain na der aaye durust aaye....so hum durust aa gaye...
उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
पहली बार मिले हो मुझसे
पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं.
मोहिन्दर जी !
एक प्यारा लयात्मक गीत बधाई बन्धु
मोहिंदर जी कमाल कर दिया आपने
पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं
सच है पहली बार में कैसे खोल दे दर्द गहरे दिल के
दर्दों की हैं परतें दर परतें
और यादों के लगे हैं जाले
खुद भी जहां, नहीं जाता मैं
तुम्हें कैसे ले जाऊं मैं
हम सब यही तो करते हैं रोज
नित नया सपना मुझे रुलाये
ऊपर से मुस्काऊं मैं
बहुत सुंदर
ना खत हैं, ना तस्वीरें
ना सूखे फ़ूल किताबों में
और अन्तिम पक्तियों में किसी नए रिश्ते से लगने वाले डर को कितने अच्छे शब्दों में बंधा है आपने -
उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
बहुत बहुत बधाई
मोहिन्दर जी
गीत बहुत प्यारा बना है । इसे स्वर बद्ध कर लीजिए ।
उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
बहुत बढ़िया । बधाई स्वीकारें ।
ना खत हैं, ना तस्वीरें
ना सूखे फ़ूल किताबों में
साथ है मेरे ईक बीता कल
जिसे भूल न पाऊं मैं
वाह-वाह! बहुत अच्छा!
उतना मज़ा नहीं आया मोहिन्दर जी।
अगली बार सही...
पहली बार मिले हो मुझसे
तुमको क्या बतलाऊं मैं
भीतर से हैं बंद दरवाजे
जिन्हें खोल न पाऊं मैं
उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
बढिया है
बहुत अच्छा
बधाई।
सुनीता
दर्दों की हैं परतें दर परतें
और यादों के लगे हैं जाले
खुद भी जहां, नहीं जाता मैं
तुम्हें कैसे ले जाऊं मैं
उम्मीदों से मुझे है दहशत
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्से, टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
अच्छी रचना है मोहिन्दर जी। पहली नज़र के प्यार को चरितार्थ कर रहे हैं आप। पहली बार मिलने पर हीं आपने इतने सारे ख्वाब गढ डालें,और क्या चाहिए!
बधाई स्वीकारें।
हिस्से, टुकडों मे बँटा हुआ हूँ ख़ुद को जोड़ न paun मैं
क्या खूब लिखी है सिर जी आपने.इतने बेहतरीन काव्य के लिए बधाई
गीत लिखें तो शिल्प का ख़ास ध्यान रखें। बारम्बार अभ्यास से यह सम्भव है।
जैसे-
चांद सरीखा उसका चेहरा
मेरी आंखे थी भर बैठी
नित नया सपना मुझे रुलाये
ऊपर से मुस्काऊं मैं
की तीसरी पंक्ति में 'मुझे' की कोई ज़रूरत नहीं है।
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