हिन्द-युग्म हिन्दी-साहित्य की हर विधा के बहुआयामी विकास का पक्षधर है। हमने कविता से शुरूआत की थी। कविता को संगीत, गायन, चित्रकारी, विडियोग्राफ़ी आदि से पहले ही जोड़ चुके हैं। अनुवाद साहित्य पर अभी तक हमने कुछ नहीं किया था। काफ़ी दिनों से हम इस पर लगे हुए थे।
आखिरकार आज वो दिन आ गया है कि हम हिन्द-युग्म पर अनूदित कविताओं का एक स्तम्भ आरम्भ कर रहे हैं। शुरूआत हम अपने मित्र देश नेपाल से कर रहे हैं।
नेपाल से नेपाली और हिन्दी दोनों भाषाओं में मासिक साहित्यिक वेबपत्रिका (साहित्यसरिता व हिन्दी-साहित्यसरिता ) निकालने वाले कुमुद अधिकारी ही ने गौरव सोलंकी की कविता 'बाज़ार जा रही हो तो' का नेपाली अनुवाद कर लिया है। और इस कविता को अपनी दोनों पत्रिकाओं के आगामी अंक (२०वें अंक में जो कि आश्विन माह में आयेगा) में स्थान दे रहे हैं। साहित्यसरिता के संपादक कुमुद अधिकारी इटहरी (नेपाल) में हर महीने कविता-गोष्ठी करते हैं जहाँ वो अनूदित कविताएँ ही सुनाते हैं। आगे से हर माह की माह २०वीं तारीख को हम नेपाली से अनूदित कविताएँ प्रकाशित करेंगे।
आज ही हम नेपाली भाषा के युवा कवि मनु मञ्जिल की अनूदित कविता 'पुरखों के प्रति... ' प्रकाशित कर रहे हैं।
हमारे इस प्रयास पर हिन्द-युग्म के पाठकों की सलाह अपेक्षित है ताकि हम अन्य भारतीय तथा गैर भारतीय भाषाओं से युवा कवियों की कविताएँ जोड़ सकें।
नामः मनु मन्जिल
जन्म सालः 1969
प्रकाशित पुस्तकः आँधीको आवेग(कविता संग्रह)
पुरस्कारः प्रतिभा पुरस्कार
आबद्धताः
- संस्थापक अध्यक्ष, साहित्यसञ्चार प्रतिष्ठान इटहरी, सुनसरी, नेपाल।
- वाणी प्रकाशन, विराटनगर, नेपाल।
- जीवन स्मृति प्रतिष्ठान, दमक, नेपाल।
सम्पादनः
- अंग्रेजी जाल पत्रिका पेनहिमालय (www.penhimalaya.netfirms.com)
- साहित्यिक कोशेढुङ्गा (त्रैमासिक नेपाली पत्रिका)
पुरखों के प्रति...
मनु मन्जिल
मैं पुरखों के बनाए छत से बरसात को रोकता हूँ
पुरखों के बनाए दीवारों से आँधी को रोकता हूँ
मेरे पास एक घर है जो मेरा बनाया नहीं है
एक ऐश्वर्य है जो मेरा कमाया नहीं है।
मैं उन्हीं की खिड़की से इन्द्रधनुष देखता हूँ
उन्हीं के बरामदे से बादलों के मेले निहारता हूँ
सबेरे जागकर
सुनहरे हिम के चादर से ढँके शिखर देखता हूँ
शाम को तारों का सम्मेलन देखता हूँ
रात को कमरे में ही उतर आते हैं रंगीन सपने
अपने से लगनेवाले उन प्रिय सपनों को देखता हूँ।
हवा को मालूम है मेरा पता
वन के पक्षियों को मालूम है
सूरज को भी मालूम है
प्रेम से पोता गया मेरा आँगन कहाँ है,
मुझे मालूम होने से पहले
दूर से आते बुज़ुर्ग डाकिये को मालूम है मेरा पता
मेरा पता जो मैंने कभी नहीं बताया
मेरा परिचय जो मैंने कभी नहीं बनाया
अपरिचित बहुतों को पता है।
मेरे पास एक बाग़ भी है जो मैंने कभी नहीं लगाया
एक सब्जी का खेत भी है जिसमें मैंने कभी फावड़ा नहीं चलाया
मेरे पुरखों के द्वारा सृजित रंग ही है
जो तुम मेरे बग़ीचे में खेलकर निकलते हुए किरणों में देखते हो
मेरे पुरखों द्वारा जलाए गए दीये का उजाला ही है
जो तुम मेरे घर-आँगन में बिखरे देखते हो
उन्हीं के लय, उन्हीं की ध्वनि, उन्हीं के बोल
तुम मेरी कविताओं में सुनते हो
और मेरे पुरखों द्वारा बनाया गया देश ही है
जहाँ की यात्रा में तुम
बुद्ध और हिमाल के पास खड़े होते हो।
नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
सराहनीय प्रयास है
हर पहला कदम बड़ी मंजिल का घोतक होता है
सच है पुरखो से ही देश, इतिहास और हमारी पहचान बनती है. बहुत अच्छी कविता. अच्छी बात यह है कि इस कविता में पुरखो की वही बातें आई है जो जीवन को जीने के बारे में आश्वशत करती उसे मूल्यवान बनाती हैं. बहुत मामूली चीजों के बडे अर्थ. बढिया.
हिन्द युग्म पर अनुऊदित साहित्य का आरंभ एक सकारात्मक कदम है। नेपाली कविताओं का हिन्दी में आस्वादन स्वागत योग्य है। कुमुद अधिकारी जी का प्रयास अय्र साथ हिन्द युग्म को एक और नयी उँचायी प्रदान करेगा।
इस कविता के लिये मनु मंजिल जी प्रसंशा के पात्र है। रचना हृदय स्पर्शी है। कुमुद जी इस अनुवाद के लिये बधाई के पात्र हैं।
*** राजीव रंजन प्रसाद
कविता, कहानी, बाल साहित्य, संगीत, चित्रकारी और अब अनूदित कवितायें। कमाल है! हिंद युग्म कदम दर कदम बढ़ते चले जा रहा हैं, बहुत अच्छा। अंदाजा ही नहीं था कि इतना सब कुछ होगा और लोगों का स्नेह इतना ज्यादा है जो युग्म को प्रोत्साहित करता है नई नई विधायें और लोगों की कला सामने लाने के लिये। मुझे नहीं पता था अनुवाद करने की विधा को अनूदित भी कहते हैं। धन्यवाद युग्म।
नेपाल से कुमुद जी और मनु जी, दोनों को धन्यवाद। उनके बिना ये मुमकिन नहीं था। बहुत कुछ सीखने को मिलेगा अनूदित से, ये बात तो पक्की है।
तपन शर्मा
वाह बहुत ही अच्छी शुरुवात, आशा है जल्द ही और भी भाषावो और प्रांतीय कवियों का युग्म मी समागम हो पायेगा, रचना तो बेहद सुंदर है ही, साथ ही गौरव को बहुत बहुत बधाओयाँ भी
बहुत हीं बेहतरीन प्रयास है। गौरव के बारे में जान कर अच्छा लगा। उसे बहुत-बहुत बधाई। साथ हीं साथ मनु जी और कुमुद जी को भी बहुत-बहुत बधाई। हिन्द-युग्म और हिन्दी की प्रगति में यह प्रयास मील का पत्थर साबित हो , यही कामना करता हूँ।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
यह बात हिंद युग्म लिए बहुत ही सुखद है और यह रचना बहुत ही प्यारी लगी गौरव को बहुत बहुत बधाई
सन्नी, अविनाश, राजीव, तपन, संजीव सारथी और विश्व दीपक- आप सभीको तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं। हम सबका संयुक्त प्रयास ही साहित्यको सफलताके सोपान चढ़ाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
कुमुद अधिकारी, नेपाल।
मैं इस बात का अंदाज़ा करता रहा कि जब यह अनूदित कविता इतनी सुंदर है तो फ़िर मूल कविता कितनी खूबसूरत होगी! या फ़िर यह अनुवाद का जादू है! मुझे लगता है कि कुमुद जी आप हिन्द-युग्म के कवियों और पाठकों को बहुत उम्दा काव्य-कार्यशाला देने वाले हैं। हिन्दी साहित्य का आप भला करने वाले हैं, आपको नमन।
इस प्रयास को शुरू करने में आपके योगदान को हिन्द-युग्म कभी नहीं भूला पायेगा। मनु मञ्जिल जी यदि हिन्द-युग्म पढ़ते हों तो कृपया वो भी यहाँ अपने उद्गार लिखें ताकि हम अपने प्रयासों में और धार ला सकें।
Sunny, Avinash, Rajiv Ranjan, Tapan Sharma, Sajeev Sarathi, Tanha kavi, Ranju, Shailesh Bharatwasi aur, Kumud jee bhi aap sabhi ko naman.
Kavita prem ki bhasa hai.Log acchhe dil me us bhasa ko janate hain. Aaplogon ka valamanasi aadaryogya hai.
Aap sab ki pratikriyaen mera marga darshankarengi.
Manu Manjil, Nepal
हिंद युग्म के प्रयास को बधाई लेकिन कुमुद अपनी कविता में किन पुरखों की बात कर रहे हैं, खासकर पिछले कुछ सालों से ताजा दम हो रहे नेपाल के वर्तमान से रूबरू होते हुए?
मैं कहना चाहता हूँ कि अनुदित कविताएं विशेषकर नेपाली कविताएं-मूल नेपाली में भी प्रकाशित हों-तो अधिक अच्छा हो। कारण कि जैसे बहुत से नेपाली-प्रेमी हिन्दी कविता को अच्छी तरह समझते हैं वैसे ही बहुत से हिन्दी-प्रेमी -नेपाली कविता को भी अच्छी तरह समझते हैं। यदि नहीं भी समझते तो समझने लग जाएंगे-यदि दोनो ही भाषाऒं में कविता प्रकाशित होंगी। ---इस तरह दोनों ही भाषाऒं की एक देवनागरी लीपी होने का लाभ -हिन्दी-नेपाली प्रेमी- साहित्यकारों को बराबर मिलेगा।----------देवेन्द्र पाण्डेय-सारनाथ-वाराणसी।
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