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Tuesday, October 30, 2007

ख्वाहिश




मैं हर कहे शब्द को लेख से जोड़ना चाहता हूँ
मैं आश्वासनों को आरोप से जोडना चाहता हूँ
जो धारायें सघन घाटियों की ओर बह रही हैं
उन्हें मरुस्थलों की तरफ़ मोड़ना चाहता हूँ

जो उसके व मेरे धर्म के बीच आ खड़ी है
जो दिखती नहीं मगर बांटती हर घड़ी हैं
जो हर दिल में इक फ़ांस बन चुभ रही है
वह उलझन हटा इक सुकूं ओढ़ना चाहता हूँ

हर संशय को न पालो दिल में इस तरह से
हर डर को न बांधो कस कर अपनी गिरह से
कहीं परछाईं ही भूत बन कर न डराने लगे
मैं हर एक जाला, हर भरम तोड़ना चाहता हूँ

जो खिल कर बिखेरे खुशबू हर किसी के लिये
जो जल कर बिखेरे रोशनी हर किसी के लिये
मैं एक ऐसी शम्मा जला कर
मैं एक ऐसा गुलशन खिला कर
हर आम रहगुजर के लिये छोड़ना चाहता हूँ

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

जो धारायें सघन घाटियों की ओर बह रही हैं
उन्हें मरूस्थलों की तरफ़ मोडना चाहता हूं

जो उसके व मेरे धर्म के बीच आ खडी है
जो दिखती नहीं मगर बांटती हर घडी है

जो खिल कर बिखेरे खुशबू हर किसी के लिये
जो जल कर बिखेरे रोशनी हर किसी के लिये
मैं एक ऐसी शम्मा जला कर
मैं एक ऐसा गुलशन खिला कर
हर आम रहगुजर के लिये छोडना चाहता हूं

आपकी परिचित शैली में अच्छी रचना।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Avanish Gautam का कहना है कि -

बढिया है!

Sanjay Gulati Musafir का कहना है कि -

मोहिन्दर हमेशा की तरह गहरा और पैना लिखा है । बधाई स्वीकार करें ।

कविता के माध्यम से उठाए सवाल विचरणीय हैं ।

संजय गुलाटी मुसाफिर

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत खूब.

लेकिन आखिरी छ्न्द मे ५ पन्क्तियां आ गयी है जो और सब से अलग लग रही है.

बाकी अर्थ बेजोद है.

अवनीश तिवारी

vipin chauhan का कहना है कि -

मोहिंदर जी
बहुत खूब बहुत सुन्दर विचार आप लेकर आये हैं अपनी इस रचना में
बहुत सुन्दर
बधाई स्वीकार करें
जो खिल कर बिखेरे खुशबू हर किसी के लिये
जो जल कर बिखेरे रोशनी हर किसी के लिये
मैं एक ऐसी शम्मा जला कर
मैं एक ऐसा गुलशन खिला कर
हर आम रहगुजर के लिये छोडना चाहता हूं
वाह......

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

मोहिन्दर जी,

जो धारायें सघन घाटियों की ओर बह रही हैं
उन्हें मरूस्थलों की तरफ़ मोडना चाहता हूं

जो उसके व मेरे धर्म के बीच आ खडी है
जो दिखती नहीं मगर बांटती हर घडी है


बहुत अच्छा लिखा है,
अच्छी सोच को कव्यगत करने के लिये बधाई

शोभा का कहना है कि -

मोहिन्दर जी
आप व्यवस्था से विद्रोह क्यों करना चाहते हैं ? यह सृष्टि ऐसे ही चल रही है । हम कितना भी चाहें कुछ नहीं बदलेगा ।इसी में जीने की आदत डाल लो ।वैसे कल्पना में यह सब आता जरूर है ।
हर संशय को न पालो दिल में इस तरह से
हर डर को न बांधो कस कर अपनी गिरह से
कहीं परछाईं ही भूत बन कर न डराने लगे
मैं हर एक जाला, हर भरम तोड़ना चाहता हूँ
शुभकामनाएँ स्वीकार करें ।

SahityaShilpi का कहना है कि -

जो धारायें सघन घाटियों की ओर बह रही हैं
उन्हें मरुस्थलों की तरफ़ मोड़ना चाहता हूँ

बहुत सुंदर! बधाई स्वीकारें!

Sajeev का कहना है कि -

जो खिल कर बिखेरे खुशबू हर किसी के लिये
जो जल कर बिखेरे रोशनी हर किसी के लिये
मैं एक ऐसी शम्मा जला कर
मैं एक ऐसा गुलशन खिला कर
हर आम रहगुजर के लिये छोड़ना चाहता हूँ
bahut sundar bhaav

विश्व दीपक का कहना है कि -

जो खिल कर बिखेरे खुशबू हर किसी के लिये
जो जल कर बिखेरे रोशनी हर किसी के लिये
मैं एक ऐसी शम्मा जला कर
मैं एक ऐसा गुलशन खिला कर
हर आम रहगुजर के लिये छोड़ना चाहता हूँ

मोहिंदर जी,
अच्छी ख्वाहिशें हैं। उम्मीद करता हूँ कि आपके ख्वाब कभी हकीकत बनेंगे।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

ईश्वर करे कि आपकी मनोकामना पूरी हो।

इस बार आपकी कविता बहुत पसंद आई।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

जो खिल कर बिखेरे खुशबू हर किसी के लिये
जो जल कर बिखेरे रोशनी हर किसी के लिये
मैं एक ऐसी शम्मा जला कर
मैं एक ऐसा गुलशन खिला कर
हर आम रहगुजर के लिये छोड़ना चाहता हूँ

बहुत सुंदर मोहिंदर जी ....बधाई आपको सुंदर रचना के लिए

गीता पंडित का कहना है कि -

मोहिंदर जी,


बहुत सुन्दर ..

बधाई स्वीकार करें

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