हिन्दी से अथाह प्रेम रखने वाली कवयित्री अनीता कुमार की कविता 'मैं' पिछली बार पाँचवें स्थान पर थी, लेकिन इनकी 'खुली वसीयत' १३वें स्थान पर है। अंतिम २० में जगह बनाये रखना इनकी उत्कृष्टता को दर्शाता है।
कविता- खुली वसीयत
कवयित्री- अनीता कुमार, मुम्बई
खामोश होने से पहले ये पटर-पटर चलती जबाँ,
सुन मेरी वसीयत बेटा बैठ यहाँ,
कुछ बातें तुझ से कहनी हैं ,
जो मेरे मरने से पहले और मरने के बाद तुझे निभानी हैं,
जब जीवन धारा सूखने लगे,
करवट मोहताजी हो, आखें न खुले,
तुझसे मेरी विनती है,
ये रिसती साँसें सुइयों-नलियों के हवाले न हों,
किसी की रोजी-रोटी की तिकड़म का सामान न हो,
खिसका देना खटिया मेरी उस खिड़की के पास,
नजरों से आलिंगन कर लूँ अपनी अमराई का अंतिम बार,
मेरे गालों को चूमे मन्द-मन्द बयार,
ओढ़ूँ सावन की फ़ुहार,
दवाइयों की बदबू , ठंडे लोहे के बिस्तर,
एसी की बासी हवा,
इन अटकी सासों को मत देना ये सजा,
छूटे साँसें ,कटे सज़ा तो मेरी खुशियों में शामिल होना,
किसी अच्छे से होटल में सपरिवार स्वनिमत्रंण देना,
निर्जीव मिट्टी की खातिर जीवित पेड़ों की हत्या,
ये पाप न मेरे सर देना,
ये हरियाली भविष्य की धरोहर, मेरे लिए हुआ पराया,
न जलाना, न गाड़ना, न चील कौऔं को खिलाना,
मुझसे न हो मैली हवा, माटी, ये नदियाँ,
किसी मेडिकल कॉलेज में दे देना दान,
शिक्षक थी, शिक्षक हूँ, निभाऊँ मर कर भी शिक्षक धर्म
मेरे अंगों को चीर फ़ाड़ के जानें बच्चे मर्ज का मर्म,
जिस सखा से जीवन भर बतियाई हूँ,
उल्हाने दिए और मुस्काई हूँ,
उससे मिलने को पंडित के श्लोकों की दरकार कहाँ,
न सहेजना दीवारों पर मेरे निशाँ,
तू मेरी जीवंत निशानी है, फ़ोटो में वो बात कहाँ,
न याद कभी करना मुझको, आगे बढ़ना सिखलाया तुझको,
ले चली हूँ बस मैं इन एहसासों को, इस मन्थन को,
जिसने जीवन भर सताया मुझको,
अब मेरी बारी आयी,
सजाए-मौत देने की इनको
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ७, ६॰५, ८॰१५, ६॰४
औसत अंक- ७॰०१
स्थान- छठवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-७, ८॰३, ५॰३, ७॰०१ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९०२५
स्थान- ग्यारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-सुन्दर मनोभाव हैं, कवि के शब्द इतने सशक्त भावों को ढो नहीं सके हैं। कई जगह कविता लचर हुई है।
अंक- ५॰६
स्थान- तेरहवाँ
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
अनिता जी
काफ़ी दर्द भरी वसीयत है । बधाई स्वीकर करें ।
अनीता जी,
सच में दर्द भरी, करुणामय, व मर्म निहित किये हुये अच्छी कविता.. मर्णोपरांत भी परमार्थ की कामना प्रंसंशनीय..
शुभकामनायें
टची!!
इस कविता मे जहां वर्तमान के प्रति, अपने आसपास के प्रति मोह झलकता है वहीं
दूसरो के काम आने की भावना भी बलवती होती दिखाई पड़ती है।
यहां वह झिझक भी दिखाई देती है कि जो बात अपनी संतान से सीधे नही कही जा सकती वह एक
भावबंध मे शब्दो को बांध कर कह दिया गया।
कुल मिलाकर बहुत ही बढ़िया।
यह बढ़िया है कि मुझमे ऐसी योग्यता नही कि मै जज हो सकता, नही तो मै इसी कविता को ही प्रथम स्थान दे चुका होता!!
क्योंकि मेरी राय में शब्दबंधन से ज्यादा भाव मायने रखते हैं और जहां सामूहिकता या परमार्थ की भावना हो वहां बाकी सभी भावनाओं को परे कर उसे ही चुनना चाहिए!!
अनिता जी बहुत सुंदर ढंग से आपने अपनी बात कही है
बहुत अच्छा लगा आपका लिखा पढ़ना ...!!
शोभा जी, रंजू जी, भुपेंद्र जी और संजीत जी
मुझे अति प्रसन्न्ता है कि आप को मेरी रचना पसंद आयी, धन्यवाद्। पता नहीं क्यों और कैसे ये रचना दर्द भरी लगी आप लोगों को, नही जी मै मौत से दुखी नही, बल्कि खुश हूं कि मेरी जिन्दगी जीने की सजा खत्म हुई और मेरी मुक्ती हुई। फ़िर भी आगे से ध्यान रखूंगी कि कविता ऐसा कोई विपरीत संदेश न दे। एक बार फ़िर आप सभी को धन्यवाद
सजीत जी आप के विशेष प्रोत्साहन के लिए मै तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ।
koi kuch bhi kahe anita ji aapki yeh kavita koi mayano me ek utkrisht kriti hai, badhaai bahut bahut
सजीव जी बहुत बहुत धन्यवाद, आप जैसे दिग्गज कवी को भी मेरी रचना अच्छी लगी जान कर अति प्रसन्न्ता हो रही है। मै तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ
अनीता जी,
भाव भरी अच्छी वसीयत ...
मर्णोपरांत भी परमार्थ ....
बहुत बढ़िया।
शुभकामनायें
बधाई
मर्मस्पर्शी वसीयत है अनीता जी, आपकी एक और अच्छी रचना...बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अनीता जी आपकी यह कविता मै और मेरे पति कई बार पढ़ चुके..आपके ब्लोग पर भी पढ़ी थी...बहुत अच्छी और खूबसूरत रचना है...
एसा लगता है कि मौत के बाद भी बहुत कुछ कर जाने कि तमन्ना बरकरार है...और खूबसूरती यह है कि बातों बातों में हर बात कह डाली...दिल के तराजू में प्रथम कविता है यह जो सभी भावो को समेटे हुए है...एक ही कविता में इतना सब मिलना मुश्किल है...मगर आप शिक्षिका है आपके लिये सम्भव है यह सब...एक प्रेरणा दायक कविता के लिये बधाई स्वीकार करें...
सुनीता(शानू)
अनीता जी,
मर्मस्पर्शी कविता के लिये साधुवाद।
छूटे साँसें ,कटे सज़ा तो मेरी खुशियों में शामिल होना,
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जिस सखा से जीवन भर बतियाई हूँ,
उल्हाने दिए और मुस्काई हूँ,
उससे मिलने को पंडित के श्लोकों की दरकार कहाँ,
बहुत सुन्दर!!
गीता जी, सुनीता जी, रवि कांत जी,राजीव जी, मुझे बहुत खुशी है कि आप को मेरी ये रचना अच्छी लगी, ई-मेल पते के अभाव में आप को सामुहिक रूप से यहीं धन्यवाद कह रही हूँ पर यकीन मानिए मन से आप सब को व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद देना चाहूंगी। एक बार फ़िर आभारी हूँ
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