नीलाम जब तुम्हारा इमान हुआ तो
करना गुरुर क्या फ़िर सम्मान हुआ तो
सीधे सरल औ सच्चे हो मानते हैं लेकिन
कल गर तुम्हे इसीका अभिमान हुआ तो
मन्दिर की मस्जिदों की चौखट हो चूमते
इंसानियत का फ़िर भी ना ज्ञान हुआ तो
इन्सान पर भरोसा इनता ना आप कीजे
समझे जिसे खुदा वों शैतान हुआ तो
तुमने ये तम्बू गहरे क्यों गाड़ लिए हैं
चलने का गर अचानक फरमान हुआ तो
यारों बड़े जतन से घर तो सजा लिया
किस्मत मैं रहना बनके मेहमान हुआ तो
सच बोलने की हिम्मत करना तू सोच "नीरज"
जिनका रसूख उनका अपमान हुआ तो
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपने एकदम सच कहा नीरज जी । हम आन्तरिक गुणों को भूल भौतिक सुखों की ओर दौड़े जा रहे है ।
किन्तु कविता में काव्यानन्द का होना भी बहुत जरूरी है वरना वह महज़ एक उपदेश बन जाता है ।
निम्न पंक्तियाँ सुन्दर हैं -
तुमने ये तम्बू गहरे क्यों गाड़ लिए हैं
चलने का गर अचानक फरमान हुआ तो
सस्नेह
तो क्या! कुछ और कविताएं लिख लिजियेगा! :)
कुछ पंक्तियां पसन्द आईं!
इन्सान पर भरोसा इनता ना आप कीजे
समझे जिसे खुदा वों शैतान हुआ तो
waah bahut achhe -
नीलाम जब तुम्हारा इमान हुआ तो
करना गुरुर क्या फ़िर सम्मान हुआ तो
सीधे सरल औ सच्चे हो मानते हैं लेकिन
कल गर तुम्हे इसीका अभिमान हुआ तो
hindi shabdon ka istemaal kar bahut achhi ghazal likhi hai aape neeraj ji
नीरज जी
मन्दिर की मस्जिदों की चौखट हो चूमते
इंसानियत का फ़िर भी ना ज्ञान हुआ तो
इन्सान पर भरोसा इनता ना आप कीजे
समझे जिसे खुदा वों शैतान हुआ तो
आपको दुबारा पढ़ना बहुत अच्छा लगा
नीरज जी,
बहुत ही गहरी बात कही है आपने अपनी कविता के माद्यम से...
मन्दिर की मस्जिदों की चौखट हो चूमते
इंसानियत का फ़िर भी ना ज्ञान हुआ तो
तुमने ये तम्बू गहरे क्यों गाड़ लिए हैं
चलने का गर अचानक फरमान हुआ तो
यारों बड़े जतन से घर तो सजा लिया
किस्मत मैं रहना बनके मेहमान हुआ
नीरज जी
तुमने ये तम्बू गहरे क्यों गाड़ लिए हैं
चलने का गर अचानक फरमान हुआ तो
बहुत गहरी बात ....
सस्नेह
इन्सान पर भरोसा इनता ना आप कीजे
समझे जिसे खुदा वों शैतान हुआ तो
यारों बड़े जतन से घर तो सजा लिया
किस्मत मैं रहना बनके मेहमान हुआ तो
नीरज आपकी कलम का पैनापन स्तुत्य है। बहुत अच्छी रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
नीरज जी,
सही कहा आपने-
सीधे सरल औ सच्चे हो मानते हैं लेकिन
कल गर तुम्हे इसीका अभिमान हुआ तो
*****
तुमने ये तम्बू गहरे क्यों गाड़ लिए हैं
चलने का गर अचानक फरमान हुआ तो
मन को छू गये ये शेर।
हर एक शे़र लाजवाब है।
क्या बात है।
नीरज की, कहना ही होगा कि गज़ल विधा पर आप की अच्छी पकड़ है।
निरज जी,
बहुत सुन्दर बतया हॆ भावी संभावना को .
शेर अच्छे बन पडे हैं
सस्नेह
अवनीश तिवरी
नीरज जी,
सादर नमस्कार. आपकी रचना बहुत अच्छी लगी. समय के अनुसार भी.
मै वर्तमान में जर्मनी में पदस्थ हूँ और इस ग्लोबल रेसेसन के समय, जब कभी भी भारत बुलावा आ सकता है, आपकी ये पंक्तियाँ बहुत सटीक लगती है
" तुमने ये तम्बू गहरे क्यों गाड़ लिए हैं
चलने का गर अचानक फरमान हुआ तो "
- सोनी, जर्मनी से
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