पहली दफा में हर किसी का
काम नहीं होता है
दिवानों कि तरह खुदपर गुस्सा
थोडे हि हुआ जाता है
शांति से आँख मुँद कर
दीर्ध श्वास लिजिये
होगा होगा जरूर होगा
खुदको विश्वास दिजिये
फिर प्रयास करने के लिये
जिद पर डटे रहिये
नये नये तरीकों से
वही वही करते रहिये
क्षितिज के उस पार भी
और आकाश होता है
दिवानों कि तरह खुदपर गुस्सा
थोडे हि हुआ जाता है
पहली दफा में हर किसी का
काम नहीं होता है
दिवानों कि तरह खुदपर गुस्सा
थोडे हि हुआ जाता है
निश्चत और दृढता से
जब पाँव रखते जाओगे
कोहरा सारा छटने लगेगा
रास्ता देख पाओगे
आसानी से जो मिलता है
छूट भी सकता है
कष्ट का फल मगर हमेशा
पास में टिकता है
ध्यान किजिये मन में शक्ति का
असिमित भांडार होता है
दिवानों कि तरह खुदपर गुस्सा
थोडे हि हुआ जाता है
पहली दफा में हर किसी का
काम नहीं होता है
दिवानों कि तरह खुदपर गुस्सा
थोडे हि हुआ जाता है
तुषार जोशी, नागपुर
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रवचन ज्यादा. कविता कम.
तुषार जी
विचार अच्छा है किंतु इसमें कविता का आनंद नहीं आया
tusharji,
vichar man ko bhaa gaye. aam kavitaki taraha nahi hai ye kavita. thodeesee alag hai. achhi lagi.
tushaar ji wahi kahunga jo shobha ji ne kaha kavya ras nahi hai , bas bhaav jarur achhe hain
तुषार जी,
बात बनती नजर नहीं आती.. शायद आजकल आप इस और समय नहीं दे पा रहे.
तुषार जी ,
विचार अच्छा है...
विचार अच्छे हैं, शिल्प कवि का समय माँग रहा है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
तुषार जी,
मेरे पूर्व के टिप्पणीकारों ने लगभग सबकुछ कह दिया है. उनसे सहमति रखते हुए केवल इतना कहना चाहूँगा कि व्याकरणिक-वर्तनी संबंधी अशुद्धियों से बचें. कविता में एक ही बात की बारंबार पुनरावृति भी खली. आशा है, आगे ध्यान देंगे.
धन्यवाद...
मणि
तुषार जी,
ऊपर पाठकों ने जो टिप्पणियाँ की हैं मैं उनसे सहमत हुँ।
पहली दफा में हर किसी का
काम नहीं होता है
आपने कहीं इस कविता को पहली ही दफा लिखकर तो नही छोड़ दिया :) :)
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)