माँ
तुमने मुझे जब
उड़ना सिखाया था
क्या तुम्हें
एहसास था
एक दिन
तुमसे दूर
जा बसूँगी
अपने नए घोंसले में,
नए परिवार के साथ ?
तुम्हें खुशी हुई होगी
कि मेरे पंख अब
मुझे दूर तक
उड़ा ले जा सकते हैं,
अपने रास्ते
खुद तय कर सकूँगी
अकेले भी.. ।
पर संशय तो होगा तुम्हें
कहीं थक न जाऊँ,
गिर न जाऊँ ...
और डर भी होगा -
जल्दी ही
तुमसे दूर चली जाऊँगी ।
जब से मैं आई
तुम्हारी दुनिया
मेरे इर्द-गिर्द ही तो
घूमती रही है ।
दिल थाम तो लेती होगी
कि एक दिन
तुम्हारा यही केंद्र
विस्थापित हो जाएगा,
चला जाएगा
किसी और जीवन का
केंद्र बनने ।
फिर भी, माँ,
तुमने मुझे
पूरी तरह पंख फैलाकर,
स्वच्छंद होकर
उड़ना सिखाया ।
तुमसे दूर जाकर भी
तुम्हारा बसेरा
सदैव याद आता
और अकसर
अपनी यादें तलाशने
मैं लौट आती वहाँ ... ।
अब मेरी बारी है
उड़ान सिखाने की
और अब भी
तुम्हारी ज़रूरत है ...
तुम्हारे अनुभव की,
वात्सल्य की,
पथ-प्रदर्शन की,
ताकि मैं भी
बेहिचक हो,
निर्भय हो,
अपनी नन्हीं चिड़िया को
और भी ऊँचा उड़ना
सिखा सकूँ ।
- सीमा कुमार
३ अक्टूबर, २००७
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27 कविताप्रेमियों का कहना है :
सीमा जी,
सच कहूँ तो मन भर गया। मैंने दुबारा जब आपकी रचना को पढा तो अपनी बेटी को केंद्र में रख कर पढा और महसूस किया कि उसके पंख भी उडने को तत्पर हैं....
ताकि मैं भी
बेहिचक हो,
निर्भय हो,
अपनी नन्हीं चिड़िया को
और भी ऊँचा उड़ना
सिखा सकूँ ।
बहुत सार्थक रचना का आभार।
*** राजीव रंजन प्रसाद
bahut hi sundar rachana hai. peedhiyan yon hi udaan bharti hai pahali peedhi ke samvednaon ke aadhaar par woh bhaavi peedhi ki rachna kaa karya karti hai uttam rachna ke liye badhaai
बहुत खूब लिखा है सीमा जी, माँ निस्वार्थ पूर्ण जीवन बच्चों पर न्योछावर कर देती है इस लिए तो उसे भगवान का दर्जा दिया गया है…बहुत ही प्यारी रचना है।॥बधाई
सीमा जी,
आपकी रचना पढ कर एक लोकगीत याद आ गया...
साडा चिडिंयां दा चम्बा देश कि असां हुण उड जाणा..
बेटी हो या बेटा आज कल कह नहीं सकते कौन पास रहेगा और कौन कितनी दूर उडान भरेगा...फ़िर भी उनकी उडान को सही दिशा..पंखों को ताकत तो अपनो से ही मिलती है...
सुन्दर भाव भरी रचना के लिये बधाई
सीमा जी ,उड़ान कविता में वाकई आपने बहुत ऊँची उड़ान भरी है ...
तुमसे दूर जा कर भी
तुम्हारा बसेरा
सदैव याद आता
और अक्सर
अपनी यादें तलाशने
मैं लौट आती वहाँ ....!
एक मा की ममता का इस से बढ़ कर उदहारण और क्या हो सकता है !आपका प्रयास बहुत ही प्रशंसनीय है !बधाई स्वीकार करें !
सीमा जी
बहुत ही प्यारी और भाव विभोर कर देने वाली कविता लिखी है । इसको पढ़कर अपनी माँ भी याद आई और
बेटी भी । अब मेरी बारी है
उड़ान सिखाने की
और अब भी
तुम्हारी ज़रूरत है ...
तुम्हारे अनुभव की,
वात्सल्य की,
पथ-प्रदर्शन की,
ताकि मैं भी
बेहिचक हो,
निर्भय हो,
अपनी नन्हीं चिड़िया को
और भी ऊँचा उड़ना
सिखा सकूँ ।
हार्दिक बधाई ।
आप सभी को टिप्पणियों के लिए धन्यवाद ।
आज सुबह-सुबह यहाँ कविता पोस्ट करना था और मैं अपनी डायरी भूल आई थी घर पर । सोचा कुछ नया लिखूँ तो एक्दम से माँ की याद आई और यह कविता लिखी । अधिक विश्लेशण नहीं किया, इसलिए कमियों को माफ कीजिएगा ।
एक मित्र, जिसे हिन्दी पूरी तरह समझ नहीं आती, ने इस कविता का मतलब पूछा .. और अर्थ बताते-बताते इसे अंग्रेज़ी में अनुवाद कर दिया जो यहाँ है: http://seemakumar.blogspot.com/2007/10/flight.html
- सीमा कुमार
nice poem
bahut hi achcha rachna hai..itne din baad hind yugm par aa kar..aisi pyaari se rachna padhne ko mili...seema ji dhanyavad...
seemaji
bbhaut hi pyari rachna .badhiyana
सीमा जी,
आपकी रचना किसी भी भावप्रवण व्यक्ति की आंखों में आंसू ला सकती है। मां एवं मातृत्व के इस अनूठे रिश्ते के बीच में पिता कहां रह जाता है मैं स्वयं नहीं जानता किन्तु अपनी सारी मां बहनों को बिना उपालम्भ के कुछ निःशब्द कहना चाहता हूं कि मेरी आंखें इस कविता के साथ नम हैं। जरा इन पंक्तियों पर ध्यान दें
तुम्हें खुशी हुई होगी
कि मेरे पंख अब
मुझे दूर तक
उड़ा ले जा सकते हैं,
अपने रास्ते
खुद तय कर सकूँगी
अकेले भी.. ।
तुम्हारी दुनिया
मेरे इर्द-गिर्द ही तो
घूमती रही है ।
फिर भी, माँ,
तुमने मुझे
पूरी तरह पंख फैलाकर,
स्वच्छंद होकर
उड़ना सिखाया ।
और अब भी
तुम्हारी ज़रूरत है ...
तुम्हारे अनुभव की,
वात्सल्य की,
पथ-प्रदर्शन की,
ताकि मैं भी
बेहिचक हो,
निर्भय हो,
अपनी नन्हीं चिड़िया को
और भी ऊँचा उड़ना
सिखा सकूँ ।
अब और कुछ कहने को बाकी है क्या ....
आदरणीया शोभा जी की टिप्पणी पर टिप्पणी की प्रतीक्षा कर रहा हूं।
शुभकामनायें
सीमा जी,
उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई। सुन्दर भावों को अत्यंत सहजता से प्रस्तुत किया है आपने।
माँ
तुमने मुझे जब
उड़ना सिखाया था
क्या तुम्हें
एहसास था
एक दिन
तुमसे दूर
जा बसूँगी
अपने नए घोंसले में,
नए परिवार के साथ ?
बहुत सुन्दर!!
दिल थाम तो लेती होगी
कि एक दिन
तुम्हारा यही केंद्र
विस्थापित हो जाएगा,
चला जाएगा
किसी और जीवन का
केंद्र बनने ।
भाव-विभोर कर दिया आपने।
BEAUTIFULLY WRITTEN DEAR...............TRULY A MOTHER SPEAKING TO A MOTHER. TODAY MYSELF BEING A MOTHER OF A DARLING DAUGHTER CAN REALLY APPRECIATE IT FROM THE CORE OF MY HEART. GUD WORK, KEEP IT UP SEEMA.
Seema ji, aapki kavita ka teaser padh kar raha nahin gaya aur main turant poori kavita padhne yahaan chala aaya.
Parantu thodi si disappointment haath lagi kyunki mere khayaal se kavita apne pahle paragraph ke baad aage nahin badh paayi zyada. Aapne pahli kuchh panktiyon mein hi itni badi aur gehri baat kah di ki aage ki panktiyaan keval uss badi baat ka 'expansion' aur 'explanation' lagti hain.
Uske baad ki panktiyon mein vyakt Maa ka sanshay, darr aur kavyitri ka apni beti ko lekar waisa hi darr, sab kuchh ussi dharaatal pe rah jaata hai jahaan se kavita ki shuruaat huyi thi.
Aur agar shuruaat ki baat ki jaaye, toh sach mein itna gehra sawaal uthaaya hai ki ek baar ko har paathak apne ghar, apne parivaar aur apni limitations ke baare mein sochne lagta hai. Bahut bahut badhaayi...
वाह सीमा जी तारीफ़ जितनी भी की जाए कम है, सच्चे भाव हैं जो उमड़ आए हैं इन बोलों में, बहुत ही सुंदर
सीमा जी यही जिन्दगी का दस्तूर है ,बहुत सुंदर लफ्जों में आपने भावों को ढाला है !!
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपको
श्रीकान्त जी
मैने माँ की भावनाओं को समझा क्योंकि मैं माँ हूँ । पिता की भावनाएँ मैं कल्पना ही कर सकती हूँ ।
वैसे जानती हूँ कि पिता का प्रेम माता से कुछ अधिक ही होता है और बेटी के जाने का दर्द दोनो को ही
होता है ।
जो हमारे आँगन में एक लम्बे समय तक एक हिस्सा बनकर रहती है उसे अलग करना बहुत कठिन है
जानती हूँ । आपके कोमल हृदय को मैं जानती हूँ । बेटी के पिता हैं ना । यह ऐसा रिश्ता है जिसकी कोई
तुलना नहीं और जिसका शब्दों में वर्णन होना सम्भव नहीं ।
सस्नेह
seema ji is shaandar rachna ke liye badhaiee..............
beti walon ke liye ek sakaratmak soch di hai aapne .........
mere bhi ek beti hai .... isiliye bahut maza aaya ...
ye panktiya to kya kahane ..
अब मेरी बारी है
उड़ान सिखाने की
और अब भी
तुम्हारी ज़रूरत है ...
तुम्हारे अनुभव की,
वात्सल्य की,
पथ-प्रदर्शन की,
ताकि मैं भी
बेहिचक हो,
निर्भय हो,
अपनी नन्हीं चिड़िया को
और भी ऊँचा उड़ना
सिखा सकूँ ।
regards
सीमा जी!
एक कोमल सी भावना को जिस सहजता से जिया आपने अपनी कविता में
वो प्रशंसनीय है।एक आम सी बात को ख़ास बना दिया है आपने।
आशा है
आप यूं ही हिन्द-युग्म को समृद्ध करती रहेंगी।
सीमा जी!
देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ. रचना के विषय में पहले ही अन्य साथी बहुत कुछ कह चुके हैं. मेरा कुछ भी कहना शायद पुनरावृति ही होगी.
बधाई स्वीकारें!
सीमा जी,
बहुत हीं सुंदर रचना है। नारी-मन में उठती भावनाओं को आपने बखूबी शब्द दिए हैं। इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
अच्छी कविता
Hi Seema.
Its a beautiful poem , very touching.When I was reading this poem , I was continuously remembering my mother.It is true that we will always need our mother's blessings,love and guidance.I became very emotional and I want to thank you for writing this sweet poem.
Hi Didi...
Verry sweet and touching...I liked it sooooooooo much...aankho me paani aa gaya...Sach didi ye poem har ladki ne aapni ma ko sunani chahiyem :)
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A timeless evergreen poem I can read it many times it's really a great poetry.
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