सुनो भूखा मरा कोई, मगर वो राम जपता है,
कहीं दिखता नहीं ईश्वर, वो किसकी राह तकता है,
ये आशाओं का झूठा एक बवंडर है चला आता,
ये क्या आदेश भगवन का कि भाई को जला जाता,
चलो उस छ: दिसम्बर को ही बारम्बार दोहराएँ,
यहाँ उगने न दें सूरज, चलो भारत को बंटवाएँ।
हमें आदर्श प्यारे हैं, ये बच्चे भूल न जाएँ,
जला दें रेल फिर कोई, इन्हें गुजरात दिखलाएँ,
अजानों में, भजन में हम यही अब रोज दोहराएँ,
गाँधी ग़र कोई आए तो नाथूराम बन जाएँ,
बहुत हँसने लगा है देश, अँधेरा खोज कर लाएँ,
यहाँ उगने न दें सूरज, चलो भारत को बंटवाएँ।
मंदिर बचा लें और जन गण मन जला डालें,
असम वालों, चलो हिन्दी को जड़ से मिटा डालें,
महाराष्ट्र में घुसने न पाए कोई बिहारी,
चलो एक खेल खेलें, चीर डालें ये जमीं सारी,
चलो अब मन नहीं लगता, पाकिस्तान दोहराएँ,
यहाँ उगने न दें सूरज, चलो भारत को बंटवाएँ।
चलो हम पुल को पूजेंगे कि भारत भाड़ में जाए,
कोई बच्चा मरे भूखा तो अपना कर्म-फल पाए,
हमारा बस वही सच है जो तुलसीदास लिख देंगे,
कहाँ विज्ञान की ज़ुर्रत कि हमसे तर्क को आए,
अब आँखें चौंधियाती हैं, दिवाकर को ही खा जाएँ,
यहाँ उगने न दें सूरज, चलो भारत को बंटवाएँ।
चलो तकनीक को कोसें, सभी जंगल में बस जाएँ,
युगों से जो भी है पाया, उसे अभिशाप बतलाएँ,
कहाँ सेंसेक्स की हिम्मत कि हमसे तेज चल पाए,
हो चुप अब आँख हम मींचें कि कोई राम आ जाए,
चलो पत्थर घिसें फिर से, दिलों में आग लग जाए,
यहाँ उगने न दें सूरज, चलो भारत को बंटवाएँ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
25 कविताप्रेमियों का कहना है :
A confused poem. some lines are really good but some sounds like coming from the mouth of Bukhari or Singhal what do you want to proove? I feel you have written this poem in continuation to rajeev jees poem on ramsetu? try to generate some thing of your own rather then getting irritated and writing such things. these hidden SAAMPRADAYIK are more dangerous. your lines are contradictory
चलो तकनीक को कोसें, सभी जंगल में बस जाएँ,
युगों से जो भी है पाया, उसे अभिशाप बतलाएँ,
change abhishap with sabakuch to justify yout thoughts.
गौरव चलो तुमने अपनी बात काव्यात्मक अंदाज़ में कह दी, वास्तविक तर्क ऐसे ही होने चाहिए, बस राजीव जी का पैटर्न उठा कर अच्छा नही किया, वैसे अंदाज़ और तेवर अच्छे हैं, पर कविता जल्दबाजी में लिखी गयी लगती है, थोड़ा और शिल्प मे मेहनत की जरुरत लगती है....
गौरव,
ये आपकी कविता है!
विश्वास नही हो रहा।
सस्नेह,
श्रवण
अगर मात्र कविता की सज्जा एवं लय की बात की जाए तो मैं कहूंगा कि एक अचम्भा ही हुआ है। प्रतीत ही नहीं होता कि यह गौरव जी की कविता है। परन्तु कविता की निरन्तरता बहुत ही रोचक एवं सराहनीय है।बधाई।
हां अगर भावों की बात करें तो लगता है कवि महोदय कई दिनों से सो नहीं पा रहें हैं। स्पष्ट प्रतीत होता है यह कविता राजीव जी की पू्र्व में लिखी गई रामसेतु की कविता से छिडे विवाद को जारी रखने का प्रयास है। कटाक्ष करने का प्रयत्न तो किया गया है परन्तु स्वनिन्दा का अपराधबोध इसे बचाब की श्रेणी में खडा करता है।
कविता ने चेहरे पर एक विस्तृत मुस्कान ला कर रख दी है।
ऍक हिंदुवादी होकर तुम ही हमारे प्यारे देश को क्यों बंटवा रहे हो भाई।
क्या बात अच्छा नहीं लगता देश आगे बढता, धीमा ही सही ,बढ तो रहा है।
इसकी जगह ये कहते कि आऒ पाकिस्तान बंग्लादेश को भारत में मिलाऍ ।
कितना अच्छा लगता ??????
प्रिय गौरव
अपनी बात को तुमने कविता के ढ़ंग से कहा । कुछ बातें काफी सच भी लगीं । अपना-अपना दृष्टिकोण है ।
मुझे तो लगता है कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर भी रहे और देश में व्यवस्था भी रहे । यह मेरा व्यक्तिगत
मत है । ज़रूरी नहीं कि बाकी लोग सहमत हों । सस्नेह
गौरव , मुझे तो तुम्हारी कविता अच्छी लगी !कहते हैं न कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं ! शायद मैंने दूसरा पहलू देखा होगा !अगर हम आज कल अखबार पढ़ें तो यही ख़बर देखते हैं कि आज रेल जला दी ,आज मस्जिद तोड़ दी ,आज मन्दिर तोड़ दिया ,दो भिन्न समुदायों के बीच लडाई हो गई ,आज पार्लियामेंट में आतंकी हमले की नाकाम कोशिश की गई !ये सब क्या है मेरे ख्याल से आप अपनी कविता के मध्यम से कहना चाहते थे की अगर हम भारतवासी एकता नही बाना सकते तो भारत को बंटवा दे शायद तभी कुछ शान्ति मिल सके !शायद आपकी ये कविता आज के हालात पर एक कटाक्ष था !मैं ऐसा समझती हूँ !इस दृष्टि से देखने से मुझे तो कविता अच्छी लगी !
प्रिय गौरव जी !
आपकी कविता में कुछ बिन्दुओं पर किसी का भी मतभेद हो सकता है. किन्तु एक सशक्त एवं समृद्धशाली भारत के स्थान पर देश में व्याप्त धर्मांधता एवं उद्देश्यहीन स्वार्थ परक राजनीति के कारण उपजे आपके आक्रोश की सदाशयता पर किसी को भी विवाद नहीं होगा। आपकी कविता इन बिन्दुओं पर पाठक को झकझोरने के अपने लक्ष्य को पाने में पूरि तरह सफल प्रतीत होती है।
शुभकामनायें
gud effort to awwake other people but sumtimes it's luk like there r sum time postive points which u r making negative .you have pointed out right thing but it needs more thinking to solve these problems.
so one pem shd be on solution side .
waitiing
गौरव...बहुत अच्छी कविता....तीखा कटाक्ष् आज के हालत पर..एक-एक शब्द जैसे सीधा मन से निकला हो...हमारे संकीर्ण मानसिकता के लिए कुछ मुश्किल है इसे स्वीकार् करना....मगर हुम ऐसे ही उलझे रहे तो वो दिन दूर नही
चलो तकनीक को कोसें, सभी जंगल में बस जाएँ,
युगों से जो भी है पाया, उसे अभिशाप बतलाएँ,
शायद तुम भविश्य को देख पा रहे हो....जाने कितने पाकिस्तान बनने अभी बाकी है.....तुम्हारा विद्रोह अच्छा लगा...
अभी तक हिन्द-युग्म पर जितना मैंने गौरव को पढ़ा है, उतना किसी और को नहीं. और हिन्द-युग्म से परिचय कराने का श्रेय भी "गौरव" को ही हैं.
इनकी हर रचना में एक नवीनता होती है, प्रस्तुत कविता भी उसी शृंखला की अगली कड़ी है. अस्तु, शिल्प के दृष्टिकोण से कविता प्रशंसनीय है एवं गेयता को धारण किए हुए है. शब्द-प्रयोग रुचिकर एवं सरल हैं.
कथ्य पर ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहता किन्तु ऐसा आभास होता है इस कविता की उत्पत्ति गर्म-वातावरण में हुई है. खैर, रचना से असहमत हुआ जा सकता है किन्तु खारिज नहीं किया जा सकता.
मज़ा नहीं आया | कई बिंदू हैं जिन पर बहस हो सकती है |
"हमारा बस वही सच है जो तुलसीदास लिख देंगे,
कहाँ विज्ञान की ज़ुर्रत कि हमसे तर्क को आए,"
कविता व्यंगात्मक लहज़े में लिखी है पर इन दो पंक्तियों से आप क्या कहना चाहते हैं यह अच्छी तरह नही समझ पा रहा | आप इस तरफ़ हैं या उस तरफ़?
वैसे कई पंक्तियों या यूँ कहूँ के आपके कई बिंदुओं ने प्रभावित भी किया ..
असम वालों, चलो हिन्दी को जड़ से मिटा डालें,
चलो तकनीक को कोसें, सभी जंगल में बस जाएँ,
भडास निकालने अच्छा माध्यम है इस प्रकार की कविता लिख भेजना. परन्तु इस कविता को समस्या गान कहना उचित होगा. क्यूं लेखक वर्ग सिर्फ समस्याओं को ही लिखता है, सुझाव कि दिशा कहा खो गयी है.....रचनात्मक्ता सिर्फ समस्या को उजागर करने में ही लगायी जा रही है. ऐसे में तो समस्या को और बढावा मिलेगा.........और इस कविता को तो जैसे बस अभी लिख देना है, जैसे लिखा गया है....निराशा हुयी.......
जब समसामयिक विषयों पर कुछ लिखा जाये तो सारे पहलू टटोल कर लिखें तो बेहतर होगा............
आगे के लिये शुभसंशा......
.....सिद्धार्थ
गौरव जी,
पहली बात कि कविता प्रतिक्रिया में लिखी गई है। दूसरे कई जगह परस्पर विरोधी भावों का समावेश हुआ है। विशेष कुछ कहकर मै विवाद को जन्म देना नही चाहता लेकिन एक संकेत जरूर देना चाहुँगा। आप कहते हैं-
गाँधी ग़र कोई आए तो नाथूराम बन जाएँ,
तो आखिर आपको गाँधी और नाथूराम में कौन प्यारा है???
हमें आदर्श प्यारे हैं, ये बच्चे भूल न जाएँ,
तो आदर्श गाँधी जी को भी प्यारे थे क्या इससे आप इन्कार करेंगे??
पहली बात- विपुल जी, आपको मज़ा नहीं आया। कविता मज़े के लिये लिखी भी नहीं गई थी।
आपने पूछा कि मैं किस तरफ हूं...तो मैं किसी भी तरफ नहीं हूँ।
विकास जी, मैं हिन्दूवादी हूं, ऐसी गलतफहमी न पालें। न ही मैं भारत को बंटवाना चाहता हूँ।
यह कविता उनके लिए नहीं थी, जिन्हें व्यंग्य, कविता और भारत की समझ नहीं है।
आदरणीय सिद्धार्थ जी,
यह भड़ास नहीं थी। यदि आपको केवल भड़ास लगी, तो मैं कुछ नहीं कर सकता।
और यहाँ मैं शरतचन्द्र के कुछ शब्द कहना चाहूँगा- समाधान मुझे नहीं आते, मैं समस्याएँ ही लिख पाता हूँ, इसके लिए आप क्षमा कीजिए।
रविकांत जी,
मैं चीख चीख कर कहता हूँ कि मैं गाँधी के पक्ष में हूं। यदि आप उस व्यंग्य को नहीं समझ पाए, तो क्षमा कीजिए।
ज़ालिम साहब,
पहले सोचा था कि आपको उत्तर न दूँ और दूँ भी तो क्या?
आप खुश रहिए कि कवि सो नहीं पाया, उसके मन में अपराधबोध है आदि आदि...
आपके चेहरे की मुस्कान और भी विस्तृत हो और मैं कभी सो न पाऊँ, यही कामना है।
अंत में कविता के लिए अफ़सोस...........!
गौरव जी!
आप हिन्द-युग्म के भी 'गौरव' हैं,इसमे कोई शक नहीं।
ऐसा हो सकता है कई बातों को कम शब्दों मे कहने की कोशिश में
आप चूक गये हों।
आशा है जल्दी ही आप अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करायेंगे।
आदरणीय गौरव जी, कृप्या मन में गलतफहमियां ना पालें। हम आपके शुभचितंक हैं, अहितकारी नहीं।
गौरव जी, कुछ आपके लिये;
......चीख-चीख के बयान करने से कोई पक्ष सिद्ध नहीं होता...
....शरतचन्द्र के कुछ शब्द...... इतने बडे संदर्भ की आवश्यकता यहां उचित नहीं लगी........
अंतत: सभी से,
गौरव जी ने बहुत सार्थक कविता लिखी है, और इसकी सार्थकता सिद्ध करने में उनका सहयोग करें......
कृपया सभी लोग तारीफ करें...........धन्यवाद्.
hi gaurav though not completly,but 2 some extent i could understand what u want to convey...i could understand the aggresion in your heart of terrorism and dirty politics in our country...hope everyone tries to get the inference from your poem...
गौरव जी!
आपकी कविता बहुत देर से पढ़ पाया, इसके लिये माफी चाहूँगा. कट्टरपंथी विचारधारा पर बहुत ही करारा प्रहार किया है आपने. हाँ, शायद आक्रोश की अधिकता में कुछ जगह आप शब्द-प्रयोग में चूके हैं और इसी कारण कुछ पाठकों को कविता के भाव ग्रहण करने में दिक्कत हुई है.
एक अच्छी रचना के लिये बधाई!
गौरव कविता अच्छी है। शिल्प बढिया है। भाव के बारे में मैं कुछ कह न पाऊँगा।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
बिना किसी विवाद में पड़े मैं केवल इस कविता की बात करता हूँ।
इस गीत का निम्न अंतरा बहुत ही भयानक सच छुपाए हुए है। जिस तरह का भेदभाव व्याप्त है, उसकी परिणीति ऐसी हो आश्चर्य नहीं-
मंदिर बचा लें और जन गण मन जला डालें,
असम वालों, चलो हिन्दी को जड़ से मिटा डालें,
महाराष्ट्र में घुसने न पाए कोई बिहारी,
चलो एक खेल खेलें, चीर डालें ये जमीं सारी,
चलो अब मन नहीं लगता, पाकिस्तान दोहराएँ,
यहाँ उगने न दें सूरज, चलो भारत को बंटवाएँ।
वैसे एक बात कहना चाहूँगा कि भले ही तुलसीदास के चरित्र समाज में ज़रूर अधिक प्रचलित हैं (शायद वो इसलिए क्योंकि मूल साहित्य का संस्कृत में होने व ब्राहम्णों के अतिरिक्त औरों का इस भाषा का ज्ञान न होने के कारण अवधी भाषी चरित लोगों सरलता से उतर गये), लेकिन आदिकवियों के चरित्र कम दूषित लगते हैं। और वैसे भी सब गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं तो यह ज़रूरी नहीं कि आप भी वैसी ही बात करें।
जागरूक हमेशा इस बात की दुहाई देते हैं कि लोकआदर्शों की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए।
और यदि 'कहाँ विज्ञान की ज़ुर्रत कि हमसे तर्क को आए,' रामसेतु के संदर्भ में लिखी गई है तो यह भी मुझे नहीं जँचता क्योंकि वहाँ केवल विज्ञान का ही तर्क नहीं है, सुरक्षा से जुड़े मसले भी हैं।
प्रवाह उत्तम है। हाँ, इतना ज़रूर कहूँगा कि यह हर साहित्यकार का धर्म होता है कि वो अपनी रचनाओं के संदर्भ में इतना जरूर विचारे कि उसकी बातें समाज में किस तरह का दूरगामी परिवर्तन ला सकती हैं। जिनबातों की उपादेयता पर संदेह हों, उनकी मीमांसा खुद कर लें।
कथ्य के स्तर पर बिल्कुल ठीक बात कही है गौरव. शिल्प में थोडा और काम होता तो ज्यादा मज़ा आ जाता.
बहुत् ही अच्छी कविता लिखी अब् लगने लगा हे कि कोई परिपक्व् कवि लिख् रहा हे
behad badhyia bahut khushi huiki desh ke dard ko aapne itne achchhe se jahir kiya
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)