तीसरे चरण में पहुँचने वाली अंतिम कविता यानी १५वीं कविता की बात करते हैं। इसकी रचयिता सीमा गुप्ता भी हिन्द-युग्म के लिए नई हैं। अभी इन्हें देवनागरी टंकण नहीं आता मगर इनका मानना है कि जल्द ही सीख लेंगी। हिन्द-युग्म में इनका स्वागत है।
कविता- क्या दूँ
कवयित्री- सीमा गुप्ता
मुझे फुरसत कहाँ तेरे खयाल से, जो तुझे मैं सब्रो-करार दूँ
मेरी ज़िन्दगी वीरान है, तुझे कौन सी शाम उधार दूँ
मेरा आशियाना सब उजड़ गया, तुमसे ज़ुदाई के गम में
मेरा रूप-रंग सब उड़ गया, तुझे कौन सा अब मैं सिंगार दूँ
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा, तेरे हाल से मैं बेहाल हूँ
मेरा दामन भी तार-तार है, तुझे कैसे अब मैं सँवार दूँ
तेरा वास्ता भी न रह गया, जब मेरे कब्रो-ख्यालात से
खुद इस कदर हूँ मैं बेकरार, तुझे कैसे अब मैं करार दूँ
मेरी शाम है तेरी आरज़ू, मेरी सुबह तेरा ख्याल है
मुझे खुद का कोई होश नहीं, तुझे किस तरह से निखार दूँ
अँधेरे घर के दीवार-ओ-दर सजे हैं तेरे ही महफ़िल से
हर रात गुज़री है वहीं, तेरे साथ कैसे रात गुज़ार दूँ
मेरा रोज़-रोज़ का है वास्ता, तेरे उस चाँद की तहरीर से
करता रहा है तेरी बात वो, तुझे कैसे अपने दिल से उतार दूँ
मुझे फुरसत कहाँ तेरे खयाल से, जो तुझे मैं सब्रो-करार दूँ
मेरी ज़िन्दगी वीरान है, तुझे कौन सी शाम उधार दूँ
रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५, ७॰५, ६, ७॰५, ६॰९
औसत अंक- ६॰५८
स्थान- उन्नीसवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-७, ७॰२, ६॰०५, ६॰५८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰७०७५
स्थान- पंद्रहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-साधारण गज़ल है और कवि का समय माँगती है। कोई भी शे'र विशेष प्रभावित नहीं करता। कवि इसे तराशे....
अंक- ४
स्थान- पंद्रहवाँ
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुन्दर तो है, लेकिन और भी निखारा जा सकता है.
और लिखे और भेजे.
बधाई.
अवनीश तिवरी
सीमाजी
अच्छी गज़ल लिखी है । कुछ शेर ज़रूर विचारणीय हैं । बधाई स्वीकारें ।
सीमा जी,
अच्छी गज़ल है। अपेक्षा है कि आप जल्द ही युनिकोड से परिचित हो कर युग्म को अपनी बेहतरीन रचनाओं से परिचित करायेंगी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
behad sadharan si gazal hai....ek purane geet..tujhe kya sunaauu a dilruba..tere saamne mera haal hai...se poori tarah prabhavit (?) lagti hai....do teen lines to bilkul hi milti julti hain....thora aur prayaas kare seema ji.....
सीमा जी !
गज़ल अच्छी है।
और लिखे
बधाई.
सीमा जी,
लिखते रहिये... सुन्दर लिखा है..सोना जितना तपेगा उतना निखार आता जायेगा... हम भी अभी भट्टी में ही हैं.
बेहद अच्छा लिखा हे, हमेशा की ही तरह
हम तौ आपके फेन हो चुके :)
Amit Verma
congrates keep it up, why u idnt told me same day
Hi Mam,
Keep it up. Good going. May god always shower his blessing on u so that u'll always remain a shining star.
With Love
Nimmi Sandhu
:-)
Hi Ms Seema,
Congrats!A very good gazal. Hope you keeep writing.
Arun Kalra
बहुत खूबसूरत ख्याल हैं
लेकिन शायद जिस सांचे में डाल कर ग़ज़ल को पेश किया है वो थोडा सा कमजोर रहा है
आप ने ये ग़ज़ल एक दिन में पूरी की है
यदि थोडा सा समय और दिया जाता तो और भी सुन्दर हो जाती
बाकी आप को सलाह देने की गुस्ताखी नहीं कर रहा हूँ क्युकी आप को देख कर ही लिखना सीखा है
आप मुझ से बेहतर अपनी कमियों को पहचान सकते हैं
अगले अंक में आप से बहुत ज्यादा आशाएं हैं
पूरी जरूर कीजियेगा
शेष शुभ
विपिन चौहान "मन"
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