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Sunday, October 21, 2007

श्रमिक (मजदूर)


हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता में पिछले कई माहों से कवि संतोष कुमार सिंह अपनी कविताएं भेज रहे हैं और हर माह इनकी कविताएँ हिन्द-युग्म पर प्रकाशित भी हुई हैं। हम इनकी रचनाधर्मिता को नमन करते हैं। इस बार इनकी कविता श्रमिक (मजदूर) १४वें स्थान पर है।

कविता- श्रमिक (मज़दूर)

कवयिता- संतोष कुमार सिंह, मथुरा(यूपी)



बढ़ें पग देख गगन में अर्क।
नहीं है किंचित उर में दर्प।।
होय नित नई भोर से शाम।
श्रमिक कब करता है विश्राम।।
पसीना से होता अभिषेक।
पड़े हाथों-पावों में ठेक।।
श्रमिक कब करता है अभिमान।
त्रस्त हो फिर भी ओंठों गान।।
तोड़कर नितवासर चट्टान।
हृदय है मोम, नहीं पाषाण।।
प्रगति की श्रमिक-शक्ति आलम्ब।
नहीं तो बन जाती निरलम्ब।।
कभी पथ आता है तम तेज।
करे उसको श्रम से निस्तेज।।
व्योम में प्रस्फुटित होय मयंक।
छटा जब फैले भू के अंक।।
श्रमिक तब लौटे होकर क्लान्त।
पड़े निश्चल निद्रा में शान्त।।
नींद में डाल सके नहीं बिघ्न।
रूपहले, रम्य कहाँ बन स्वप्न।।
हाय पर जीवन बड़ा अराल।
कुण्डली मार बैठ धनव्याल।।
क्लान्ति को करते हैं वे सद्य।
बैठ बीबी-बच्चों के मध्य।।
धर्म है कर्म, श्रमिक उपनाम।
दिए हैं जिसने बहु आयाम।।
धवल नित दमके ताजमहल।
खड़े बहु नद्य-बाँध निश्चल।।
बहाये खून पसीना मुफ्त।
उन्हीं के नाम हुए हैं लुप्त।।

रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६, ८॰५, ६, ८, ८॰६
औसत अंक- ७॰४२
स्थान- चौथा
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-६॰२५, ७॰७, ६॰६, ७॰४२ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९९२५
स्थान- नौवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कविता श्रमिक का विवरण सी प्रतीत होती है कवि का संदेश स्पष्ट नहीं है। जिन शब्दों में इस विषय को उठाया गया है उससे कविता कमजोर ही हुई है।
अंक- ५॰५
स्थान- चौदहवाँ
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

संतोष जी,

आपकी भाषा पर पकड की तारीफ करनी होगी। जिनके लिये आपने कविता लिखी है उसे समझने में कठिनाई होगी, यह इस कविता का कमजोर पहलू है। तथापि भाव और शिल्प दोनों अच्छे हैं।

*** राजीव रंजन प्रसाद

शोभा का कहना है कि -

संतोष जी
अच्छा लिखा है . बधाई

RAVI KANT का कहना है कि -

संतोष जी,
अच्छी रचना। आपके सश्क्त शब्दकोष का प्रमाण देती हुई।

गीता पंडित का कहना है कि -

संतोष जी,


आपका शब्द-कोष बहुत प्रभावी है...लय और ताल में बद्ध .......कविता.....

आपकी कविता मुझे बहुत अच्छी लगी...
भाषा का सौन्दर्य ...वाह....अद्भुत...........अनूठा ....
बहुत सुंदर................मैं एक साँस में पढती
चली गई....

आभार
बधाई

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