है सख्त हथेली बड़ा दिल जिसका नरम है
उस पर यकीन मानिए मालिक का करम है
लायक नहीं कहलाने के इंसान वो जिसमें
ना सच है ना इमां ना शराफत ना शरम है
एक पत्ता हिलाने की भी ताकत नहीं जिसमें
दुनिया को चलाने का महज़ उसको भरम है
जो चुक गए मजबूर वो सहने को सितम हैं
पर क्यों सहें वो खून अभी जिनका गरम है
महसूस गर किया है तो फिर मान जाओगे
मिटने का अपनी बात पे आनंद परम है
मासूम की मुस्कान में मौजूद है हरदम
तुम उसको ढूढते हो जहाँ दैरो - हरम है
गीता कुरान ग्रन्थ सभी पढ़ के रह गए
"नीरज" ना जान पाये क्या इंसां का धरम है
- यूनिकवि "नीरज गोस्वामी"
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
its awesome
नीरज जी
बहुत इन्तजार के बाद कुछ पद!ने को मिला .
धन्यवाद .
नीरज जी,
अच्छी गज़ल है। कुछ शेर दमदार हैं मसलन:
जो चुक गए मजबूर वो सहने को सितम हैं
पर क्यों सहें वो खून अभी जिनका गरम है
मासूम की मुस्कान में मौजूद है हरदम
तुम उसको ढूढते हो जहाँ दैरो - हरम है
*** राजीव रंजन प्रसाद
Its good.
GazalooN ke niyam palan ka accha prayas hai.
Arth bhi damdar hai.
Badhayee.
Avaneesh
नीरज जी,
बहुत अच्छा!
लायक नहीं कहलाने के इंसान वो जिसमें
ना सच है ना इमां ना शराफत ना शरम है
*******
मासूम की मुस्कान में मौजूद है हरदम
तुम उसको ढूढते हो जहाँ दैरो - हरम है
ये शेर विशेष पसंद आये।
बहुत खूब लिखा है आपने नीरज जी
जो चुक गए मजबूर वो सहने को सितम हैं
पर क्यों सहें वो खून अभी जिनका गरम है
वाह बहुत खूब.
बिल्कुल ताज़गी लिये हुए है ये गज़ल और मीटर में भी है।
ये शे़र बेहतरीन लगा;
है सख्त हथेली बड़ा दिल जिसका नरम है
उस पर यकीन मानिए मालिक का करम है।
मासूम की मुस्कान में मौजूद है हरदम
तुम उसको ढूढते हो जहाँ दैरो - हरम है
गीता कुरान ग्रन्थ सभी पढ़ के रह गए
"नीरज" ना जान पाये क्या इंसां का धरम है
सुंदर गज़ल है नीरज जी। बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
लायक नहीं कहलाने के इंसान वो जिसमें
ना सच है ना इमां ना शराफत ना शरम है
बहुत खूब...बधाई
नीरज जी
अच्छी गज़ल है।
धन्यवाद .
बधाई स्वीकारें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)